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करवा चौथ का व्रत त्योहार की तरह क्यों मनाया जाता है?

करवा चौथ का व्रत! पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाने वाला निर्जल व्रत, अनंतकाल से औरतें जिसका पालन करती आ रही हैं और संभवतः करती रहेंगी।

करवा चौथ का व्रत! पति की लंबी उम्र की कामना में रखा जाने वाला निर्जल व्रत। जिसका अनंतकाल से औरतें पालन करती आ रही हैं और संभवतः अनंतकाल तक करती रहेंगी।

करवा चौथ… हिन्दू धर्म के अंतर्गत हर साल शरद पूर्णिमा के बाद तीज भेदी चौथ को पड़ने वाला त्योहार है। नई नवेली दुल्हनें और शादी-शुदा औरतें इस दिन को त्योहार की तरह मनाती हैं। पति की लंबी उम्र की कामना में रखा जाने वाला निर्जल व्रत। जिसका अनंतकाल से औरतें पालन करती आ रही हैं और संभवतः अनंतकाल तक करती रहेंगी।

कमाल की बात है न! पति, बेटा, या भाई, हर रूप में पुरुष को स्वस्थ्य और सुरक्षित रहने के लिए स्त्री के त्याग और तपस्या की आवश्यकता पड़ती है। साल में ऐसे कई व्रत और उपवास आते हैं जब स्त्री अपने पति, बेटे या भाई के लिए भोजन त्याग दिन भर भूखी रहती है। यानी एक जीवन में हर एक स्त्री कम से कम 3 पुरुषों के लिए प्रति वर्ष एक बार जल और भोजन त्यागती है।

पहले पिता, फिर भाई, फिर पति और फिर बेटा, हर स्त्री के जीवन में उसे एक-एक करके चार भाग्यविधताओं का संरक्षण मिलता है। पैदा होते ही वो अपने कंधों पर जीवन, समाज और मर्यादा का बोझ लादकर बढ़ना शुरू करती है।

बचपन से ही बेटियों को सिखाया जाता है कि वो शरीर और मन से कोमल हैं और पुरुष से कमतर हैं। उनका दायरा घर और घरवालों की देखभाल तक सीमित है। सारे व्रत-उपवास नियम से निभाने हैं और घर की सभी ज़िम्मेदारियाँ भी संभालनी है। क्योंकि यही स्त्री का धर्म है।

करवा चौथ का व्रत बढ़ाता है स्त्री के उत्तरदायित्व

करवा चौथ से जुड़ी कई तरह की कहानियाँ हैं, और हर कहानी का सार है पति की लंबी उम्र की कामना। नई दुल्हनें और शादी-शुदा स्त्रियाँ इस दिन भूखी-प्यासी रहकर, रात को चंद्रोदय होने पर, चाँद को अर्ध्य देने के बाद अपना व्रत तोड़ती हैं और फिर पति के हाथ से जल और भोजन गृहण करती हैं।

व्रत के दिन भी उसका ख्याल कौन रख रहा है?

हालांकि सारा दिन भूखा-प्यासा रहने के बाद भी औरत के कार्यभार में कोई अंतर नहीं आता। उसे रोज़ की तरह सारे काम करने ही होते हैं। पति और घरवालों के लिए खाना भी बनाना होता है और बाकी काम भी निपटाने होते हैं। ऊपर से अगर स्त्री नौकरीपेशा महिला है तो उसे अपनी नौकरी भी करनी होती है। इस सब के बाद शाम को तरह-तरह के पकवान भी बनाकर तैयार करने होते हैं और पूजा की तैयारी भी करनी होती है।

क्या पति को इस दिन पत्नी के भूखे-प्यासे रहने से कोई भी फ़र्क़ पड़ता है?

पूरे दिन के कार्य और अतिरिक्त उत्तरदायित्वों को निभाने के बाद दिन भर की भूखी-प्यासी स्त्री को फिर शृंगारकर चाँद निकलने का इंतज़ार भी करना होता है। ये सब कुछ उस पति के लिए जिसके जीवन में उस दिन किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं आता न ही उसे कोई फर्क पड़ता है। वो बस रोज़ की तरह ही अपनी नियमित दिनचर्या निभाता रहता है।

क्या करवा चौथ का व्रत किसी की इम्युनिटी बढ़ाता है जो हर साल उसे बूस्टर डोज़ चाहिए?

मुझे कभी समझ नहीं आया कि किसी भी औरत के भूखे-प्यासे रहने से किसी पुरुष की उम्र कैसे बढ़ सकती है? अगर ऐसा सचमुच है भी तो फिर सिर्फ़ पुरुष को ही इसकी ज़रूरत क्यों? स्त्री के स्वास्थ्य और उम्र के लिए क्या? क्या स्त्री और पुरुष को समांतर अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र की आवश्यकता नहीं होती?

क्या पुरुष की शारीरक और मानसिक स्वस्थ्य में यह किस प्रकार का डिफ़ेक्ट है जो सिर्फ स्त्रियों के भूखे-प्यासे रहने से ठीक हो जाता है और इसे हर साल दोहराना पड़ता है?

समझें आख़िर ये व्रत और उपवास होता क्या है?

हमेशा से ही व्रत और उपवास इन दोनों शब्दों को गलत तरह से समझा और समझाया गया है।

व्रत का अर्थ होता है संकल्प लेना। जैसे “आज मैं पूरा दिन झूठ नहीं बोलूँगी” या “आज सारा दिन मैं मौन रहूँगी” या फिर “आज शाम तक मैं अन्न और जल गृहण नहीं करूँगी”। यह संकल्प किसी भी प्रकार का हो सकता है इसका ईश्वर के लिए भूखे रहने से कोई सीधा संबंध नहीं है।

इसी तरह उपवास का अर्थ होता है ईश्वर के समीप निवास करना। यहाँ उप का अर्थ है समीप और वास का अर्थ है निवास करना या पास रहना। इसका मतलब यह हुआ कि इस शब्द का भी भूखे या प्यासे रहने से कोई सीधा संबंध नहीं है। जिस दिन आप उपवास करते हैं उस दिन आप सात्विक रहने का व्रत या संकल्प करते हैं और सत्विक्ता का भी भूखे-प्यासे रहने से कोई संबंध नहीं होता।

करवा चौथ का व्रत त्योहार नहीं केवल स्त्री दमन का परिचायक है

औरत के भूखे-प्यासे रहने से उसके घर में सुख-समृद्धि आएगी, यह विचारधारा अनंतकाल से उसके मन में कील की तरह ठोंकी गई है। यही कारण है की औरतें खुशी-खुशी इसे निभाती चली आ रही हैं। जहाँ बात धर्म और अध्यात्म से जोड़ दी जाती है वहाँ सवाल करना या तर्क देने की गुंजाइश ही नहीं बचती। इसलिए अक्सर स्त्रियॉं भी यह समझ नहीं पातीं कि करवा चौथ कोई त्योहार नहीं बल्कि उनके दमन का परिचायक मात्र है।

ईश्वर में विश्वास करना या पूजा-पाठ करना गलत नहीं है, लेकिन…

ईश्वर में विश्वास करना या पूजा-पाठ करना गलत नहीं है। हम सबको जीवन में एक उम्मीद की ज़रूरत है। एक अदृश्य शक्ति जो संसार और प्रकृति पर काबू रखती है, उस पर विश्वास की ज़रूरत है। पर वो शक्ति किसी भी रूप में पूजी जाए, उसे औरत के भूखे और प्यासे रहने से कैसे प्रसन्न किया जा सकता है?

समय के साथ आया है कुछ परिवर्तन

हालांकि धीरे-धीरे समय के साथ कुछ परिवर्तन आया है। हाई प्रोफ़ाइल जोड़े करवाचौथ के दिन बड़े होटलों में इकट्ठे होकर पार्टी करते हैं या बाहर जाकर खाना खाते हैं और इस दिन को वाकई त्योहार की तरह मानते हैं। पर इस तरह का ख़र्चा और दिखावा कर पाना एक सीमित जनसंख्या के लिए संभव है। हर जोड़ा या परिवार इस तरह की आर्थिक स्वछंदता वहन नहीं कर सकता।

मैंने अक्सर पुरुषों को इस बात पर दंभ से सीना फुलाते देखा है कि उनकी पत्नी उनके लिए करवाचौथ के व्रत में सारा दिन भूखी और प्यासी रहेगी। क्या यह प्रताड़णा का एक रूप नहीं है? क्यों औरत इस वेदना को खुशी-खुशी सहती है?

मैं जब भी इस विषय पर कहीं बात करती हूँ या लिखती हूँ तो मुझे अनेकानेक आलोचनाओं से दो चार होना पड़ता है और वो आलोचनाएँ पुरुषों से कम स्त्रियों से अधिक मिलती हैं। कारण वही है कि बात जब धर्म और अंधविश्वास से जुड़ जाती है तो किसी तर्क की कोई जगह नहीं बचती।

पर मैं इस विषय पर बोलती रहूँगी। जब तक समाज और स्वयं स्त्रियाँ यह स्वीकार न कर लें कि वो भी पुरुष के समान ही केवल एक मानवीय शरीर और आत्मा हैं। कोई दिव्यात्मा नहीं जिसका जन्म केवल पुरुष के जीवन और स्वास्थ्य की कामना में भूखे-प्यासे रहने के लिए हुआ है।

स्त्रियाँ चाहें तो करवाचौथ के दिन को अपने लिए सुरक्षित कर, बिना भूखे रहे आराम और सुख से व्यतीत कर सकती हैं। शाम को बिना खुद को थकाए शृंगार कर प्रसन्नता से पति और परिवार के साथ यह त्योहार भी मना सकती हैं। इस सकारात्मक परिवर्तन की मुझे अधीरता के साथ प्रतीक्षा है।

इमेज सोर्स: Sachin Awasthi from Getty Images via Canva Pro

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