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तुम्हारी पहली बीवी जो भी है, जैसी भी है, तुम्हें क्यों बर्दाश्त कर रही है? तुमने उसके साथ भी नाइंसाफी की है और मुझे भी तुमने धोखा दिया।
वह सज धज कर खड़ी थी ऋषि के इंतजार में। करवा चौथ उसे बचपन से ही बहुत लुभाता था। वह टीवी में जब देखती थी सुहागिन महिलाएँ सज-धज कर करवा चौथ करती हैं, तो चाँद भी जैसे थम सा जाता है।
जबकि उसकी मां ने बताया भी था, “बिटिया हमारी तरफ करवा चौथ नहीं होता है।”
“क्यों नहीं माँ? यह तो सुहागिन औरतों का व्रत है। मेरी शादी हो जाएगी तो मैं निश्चित ही करवा चौथ करूंगी। मुझे साज-श्रृंगार, पर्व-त्योहार और पति का प्यार, सब चाहिए।”
मां अपनी चहकती बिटिया के सपनों को सुनकर, “अपनी बिटिया के लिए बस मुस्कुरा दी।”
मंजू की शादी ऋषि के साथ, करवा चौथ के ठीक 4 दिन बाद हुई थी। इस साल भी उसने करवा चौथ का व्रत रखा था। पर बिना ऋषि को देखे ही उसने व्रत खोला था। अगले साल की करवा चौथ का व्रत वह ऋषि को देखकर खोलेगी। इस बात से मंजू बहुत उत्साहित थी।
मंजू शादी के बाद ऋषि के साथ हनीमून के लिए शिमला चली गई। हर लड़की का शादी के बाद नया अनुभव होता है। उसे पति का प्यार कितना मिलना चाहिए? कितना मिलता है? घर-परिवार, नए रिश्ते, सब कुछ उसके लिए नया होता है।
वह जो पहली बार अनुभव करती है, कभी-कभी उसे लगता है कि शादी के बाद यही दुनिया है उसकी। इतना ही प्यार मिलता होगा। ऐसे ही लोग अपनी जिम्मेदारियां निभाते होंगे।
मंजू ने भी खुद को ऋषि के लिए समर्पित कर दिया। लेकिन उसे यह महसूस होता था कि ऋषि संपूर्ण नहीं है मेरा। फिर उसने सोचा यह मेरे मन का भ्रम है। अपनी शादीशुदा जिंदगी में मंजू खुश रहने लगी। सभी बड़ों का सम्मान करती। पति का भी पूरा ख्याल रखती थी। लेकिन कभी-कभी उसे अजीब लगता, जैसे वह अपनापन उसे नहीं मिल पा रहा था, जिसकी उसे उम्मीद थी।
मंजू ने फोन पर अपनी मां से पूछा, “माँ, शादी के बाद पति के साथ कैसा महसूस होता है?”
माँ ने कहा, “सारी दुनिया से अलग। बस वह हमारे और हम उनके हो जाते हैं। अपने पापा को देख, आज भी मेरे कितना ख्याल रखते हैं और मैं उनका। लेकिन क्या बात है? तुम यह सब क्यों पूछ रही हो? ऋषि के साथ कोई दिक्कत है क्या?”
“नहीं माँ बस ऐसे ही…”
मंजू ने ऋषि से बात करने की सोची।
“ऋषि जी, क्या मैं आपको पसंद नहीं हूं?”
ऋषि ने कुछ भी जवाब नहीं दिया।
“क्या आप मुझसे शादी करना नहीं चाहते थे? क्या आपने परिवार वालों की इच्छा के कारण मुझसे शादी की?”
ऋषि ने कहा, “नहीं ऐसी कोई बात नहीं।”
मंजू को भी जब स्पष्ट कुछ जवाब नहीं मिला, तो उसने सोचना छोड़ दिया।
आज करवा चौथ है, वह एक दिन पहले से ही करवा चौथ की तैयारी में लग गई। मेहंदी, ज्वेलरी, लंहगा और न जाने क्या-क्या? आज उसके अरमान पूरे होने वाले थे।
उसकी सास ने भी करवा चौथ के व्रत करने में उसका पूरा साथ दिया। जो भी नियम होते हैं, उन्होंने बखूबी निभाए।
ऋषि के ऑफिस जाते समय ही मंजू ने कह दिया, “आज जल्दी आइएगा। आज करवा चौथ का व्रत रखा है मैंने आपके लिए।”
ऋषि ने कहा, “व्रत रखने की क्या जरूरत है?”
“क्यों न रखूं?”
“मेरे लिए परेशान मत हो।”
“ऐसी बात नहीं है। मैं इंतजार करूंगी।”
मंजू पूरी उत्साह, उमंग के साथ चाँद और अपने पति के साथ करवा-चौथ के लिए सोलह-श्रृंगार करके, जल, फूल, दूध, मिठाई, चलनी, दीप से सजी थाल लेकर छत पर ऋषि का इंतजार करने लगी।
चांद निकल आया था। लइकन ऋषि का कहीं अता-पता ही नहीं था। उसने ऋषि को फोन लगाया। ऋषि ने फोन पिक नहीं किया।
अब मंजू और ज्यादा परेशान होने लगी, ‘पता नहीं क्या बात है? ऋषि जी को याद भी है या नहीं?’
वह अपने विचारों में खोई, इधर-उधर छत पर ही घूमने लगी। तभी उसकी नजर अपने घर के आगे रुकी एक कार पर पड़ी। उसने देखा ऋषि कार से उतरा। एक खूबसूरत सी महिला साज-श्रृंगार किए हुए, उस कार में थी। ऋषि ने उतारते हुए हंस कर उसे हाथ हिलाया और वह कार आगे बढ़ गयी।
ऋषि को आते देख वह झट छत से उतर गई। ऋषि कमरे में कपड़े चेंज करने लगा, तो मंजू ने पूछा, “जिस कार से आप उतरे, उस कार में जो आपके साथ महिला थी, वह कौन थी?”
ऋषि ने कुछ नहीं कहा।
“मैं पूछ रही हूं कि वह कौन थी?”
ऋषि ने कहा, “घर से बाहर की बातों से तुम्हें क्या लेना देना? मैं आ गया ना?”
“मैं आपकी पत्नी हूं, मुझे सब कुछ जानने का हक है।”
“यदि तुम सब कुछ जानना चाहती हो, तो सुन लो, वह मेरी पत्नी है। उसने करवा चौथ का व्रत रखा था, और उसी को व्रत तुड़वाने में मुझे लेट हो गया।”
मंजू के तो जैसे होश ही उड़ गए!
“यह क्या कह रहे हैं आप? आपकी पत्नी तो मैं हूं?”
“तुम मेरी दूसरी बीवी हो।”
“क्या!”
मंजू के जैसे पैरों तले जमीन खिसक गयी। तब तक उसकी सास भी कमरे में आ गई। मंजू ने आंखों ही आंखों में सास से सवाल किए तो सास ने बहू के सामने हाथ जोड़ लिया।
“यह क्या कह रही है मां जी? मुझसे इतना बड़ा सच क्यों छुपाया गया? मेरे साथ धोखा क्यों किया गया?”
सास बोलने लगी, “बेटा, ऋषि ने जिस से शादी की है, वह हमारे बिरादरी की नहीं है। हमारे लायक नहीं है। हमारी पसन्द नहीं है। इस परिवार, इस घर से उसका कोई लेना-देना नहीं है। वह हमारी बहु नहीं है। हमारी बहु तुम हो।”
“आपके बिरादरी की नहीं है? आपकी बहु नहीं है? फिर भी वो ऋषि की पत्नी है। तो फिर आपने उसकी दूसरी शादी क्यों करवाई? किस सदी में जी रही हैं माँजी? जाति बिरादरी की बात करती हैं, और औरत की ज़िंदगी से खेलती हैं?
मांजी, आपके पूरे परिवार ने मेरे साथ धोखा किया है। साथ ही ऋषि तुम प्यार, सम्मान, इज्जत और व्रत के लायक तो बिल्कुल नहीं हो। पता नहीं तुम्हारी पहली बीवी जो भी है, कैसी है? तुम्हें क्यों बर्दाश्त कर रही है? क्यों व्रत रख रही है तुम्हारे लिए? तुमने उसके साथ भी नाइंसाफी की है। और मुझे तो सभी ने धोखा दिया है। मेरे परिवार वालों को भी सब कुछ पता करके मेरी शादी करनी चाहिए।”
मंजू ने पर्स लिया और घर से निकल गई।
सास ने आवाज दी, “बहू, व्रत तो खोल लो। कहां जा रही हो?”
“माँजी, कौन सा व्रत? महिला साज-श्रृंगार, व्रत-त्योहार, अपने मन से करती है। उसे अच्छा लगता है इसलिए ना कि उसकी कोई मजबूरी होती है। मैं पुलिस स्टेशन जा रही हूं, अपने न्याय के लिए।”
ऋषि भी अपने दोहरे जीवन से तंग आ चुका था। उसने मंजू को रोकने की कोशिश नहीं की। लेकिन करवा चौथ के लिए सजा थाल, ऋषि को मुंह चिढ़ा रहा था। उसके अस्तित्व पर सवाल उठा रहा था। वह न अपने परिवार का हो सका, ना ही अपनी पहली पत्नी का। आज उसे अपना अस्तित्व नगण्य लग रहा था।
आज मंजू अपने स्वाभिमान के साथ और भी खिल रही थी और सास बुदबुदा रही थी, “क्या आज करवा-चौथ के दिन ही यह सब होना था? इतने दिन छुपा के रखा था और छुपा लेता!”
इमेज सोर्स: Still from short film Methi Ke Laddu/Blush, YouTube
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