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तैयार होके उसने शीशे में स्वयं को निहारा तो देखती ही रह गई। 'कितने दिन बाद आज अच्छी लग रही हूँ!' खुद को देख कर उसे अच्छा महसूस हुआ।
तैयार होके उसने शीशे में स्वयं को निहारा तो देखती ही रह गई। ‘कितने दिन बाद आज अच्छी लग रही हूँ!’ खुद को देख कर उसे अच्छा महसूस हुआ।
“सीमा जल्दी से मेरा नाश्ता लगा दो और पापाजी को स्प्राउट और ग्रीन टी दे दो।”
विजय ने सीमा को आवाज़ लगाई। पसीने-पसीने होती सीमा सुबह से काम में लगी थी।
“हे भगवान! कब हालात नार्मल होंगे और मुझे थोड़ी सांस मिलेगी!” सोचते हुए उसने ससुर जी और पतिदेव का नाश्ता उनके कमरे में पहुँचाया।
दरवाज़ा खोल कर जैसे ही वह नाश्ते की ट्रे को देने विजय की ओर बढ़ी, अपने पति विजय की तेज़ आवाज़ से ठिठक कर रह गई!
“सीमा देख नहीं सकती थीं मेरा कैमरा ऑन था? कब अक्ल आएगी तुम्हें? बिज़नेस मीटिंग चल रही है…”
अपनी भूल समझते हुए दरवाज़ा धीरे से बंद करके वह बाहर निकल आई और सोच में डूब गई।
इतने महीनों से बच्चे घर के एक कमरे में ऑनलाइन क्लास में सुबह से बैठ जाते थे और हस्बैंड का ऑफिस भी बेडरूम में चालू रहता। एक कमरे में ननद की कॉलेज की क्लास चलती। सास-ससुर अपने कमरे में धार्मिक प्रोग्राम देखने में व्यस्त हो जाते और एक वह रह जाती चक्करघिन्नी बन के।
सीमा का दिन सबकी फरमाइश पूरी करने में निकल जाता। पूरा दिन वह एक कमरे से दूसरे कमरे खाने का सामान पहुँचाने और खाली बर्तन उठाने में लगी रहती।
लॉकडाउन लगने से पहले उसके दो किटी ग्रुप थे। एक सोसाइटी की महिलाओं का भी ग्रुप भी था जिनके साथ वो महीने दो तीन बार बाहर जाती। थोड़ा बहुत तैयार होती, तो उसे भी अच्छा लगता। पर पिछले एक साल से यह कभी-कभी का सजना-धजना भी बंद हो गया।
सुबह से एक मेक्सी पहन कर जो वो काम में लगती तो रात के 11 बजे ही फुर्सत मिलती। किसी-किसी दिन तो बाल भी कंघी नहीं कर पाती थी ढंग से। उठाते ही बस जैसे काम की बाद आ जाती थी। कभी बच्चों के मनपसंद चाइनीज़ तो कभी बाकि सभी के पसंद के व्यंजन बनाने में पूरा दिन निकल जाता।
आज उसका मूड बहुत अच्छा था, तो उसकी सभी सहेलियों ने प्लान बनाया कि सभी ज़ूम मीटिंग में मिलेंगे। सीमा ने भी सोचा आज तो अच्छे से तैयार होती हूँ।
उसने अपनी एक मल्टी कलर साड़ी निकाली और बहुत अच्छे से मेकअप किया। ज़ूम फोटो और सेल्फी शेयर करें का प्लान था सबका। तैयार होके उसने शीशे में स्वयं को निहारा तो देखती ही रह गई। कितने दिन बाद आज अच्छी लग रही हूँ खुद को देख कर उसे अच्छा महसूस हुआ।
वह जैसे ही कमरे से बाहर आई, उसकी ननद मुद्रा ने उसे देखा और ज़ोर जोर से हँसने लगी।
“भाभी यह क्या शक्ल बनाई है आपने? घर में कौन इतनी हैवी साड़ी और इतना ब्राइट मेकअप करता है? आपको इतना सजने-धजने की क्या ज़रूरत है? आपको कौन सी मीटिंग अटेंड करनी है?”
मुद्रा की हँसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। तभी विजय भी बाहर निकल आए तो मुद्रा उनसे कहने लगी, “भाई, भाभी को देखो घर में रह कर भी क्या बनी घूम रही हैं।”
विजय ने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और कहने लगे, “क्या हुआ? तुम्हारी तबियत ख़राब है क्या? घर में कौन इतना सजता धजता है? प्लीज़ मेरे कमरे में मत आ जाना आज।”
सीमा भौचक्की सी उन दोनों को देखती रह गई। थोड़ी देर वो चुप रही लेकिन फिर उसने चुप न रहने का इरादा किया।
उसे दोनों को अपने पास बुलाया और कहा, “आप सब तो ऑनलाइन मीटिंग और क्लास के लिए ड्रेसअप होते हो, पर मेरे बारे में कभी सोचा कि पूरे साल से घर के कपड़ों में ही रहते रहते मुझे कैसा लगता होगा? सुबह से आप सब को काढ़ा देते, सभी की हेल्थ का ध्यान रखते रखते खुद को भूल गई हूँ। दिन भर उन घर के कपड़ों में रहते मेरा भी दम घुटने लगा है।
अब मैंने भी सोच लिया है जैसे आप सब ऑनलाइन क्लास और ऑफिस के लिए रेडी होते हैं मैं भी पहले तैयार होंगी और फिर बाकी काम करुँगी। दिखने से ज्यादा ज़रूरी खुद को अच्छा महसूस करना होता है। अब मैं नए कपड़े भी पहनूँगी और मेकअप भी करुँगी, हर वो काम करुँगी जिससे मुझे फील गुड हो। और हाँ तुम दोनों की तरह, मुझे यह सब किसी को दिखाने के लिए, नहीं बल्कि अपने लिए करना है। समझे?”
मुद्रा और विजय बगलें झाँकने लगे!अ
पने पाठकों से यही कहूँगी यदि औरतें कहीं जाती नहीं तो इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि उन्हें तैयार होने का हक नहीं है। उन्हें जो पसंद है उसे पहनने का पूरा निर्णय उनका होना चाहिए न कि किसी और का। शादी और बच्चों का अर्थ यह नहीं है कि वे अपने बारे में सोच नहीं सकतीं। किसी को भी अच्छे से रहने, कपड़े पहनने से खुद पर यकीन बढ़ता है उसके आत्मसम्मान में बढ़ोत्तरी होती है। तो महिलाओं को भी पूरा अधिकार है कि वे अच्छे से तैयार हों।
इमेज सोर्स: Still from Short Film Khwaishein/Six Sigma Films, YouTube
I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...
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