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काग़ज़ के रावण बहुत जलाए कब मन के रावण फूँकोगे…

इन प्रश्नों के उत्तर लेने हर वर्ष मैं आता हूँ, एक दुष्कर्म की सजा आज तक पाता हूँ, पर धरती पर चहुँ ओर कितने ही रावण पाता हूँ, सीता से भी बुरी दशा में लाखों को मैं पाता हूँ।

इन प्रश्नों के उत्तर लेने हर वर्ष मैं आता हूँ, एक दुष्कर्म की सजा आज तक पाता हूँ, पर धरती पर चहुँ ओर कितने ही रावण पाता हूँ, सीता से भी बुरी दशा में लाखों को मैं पाता हूँ।

एक संवाद राम और रावण के बीच ऐसा हुआ
पूछता है रावण राम से मैंने ऐसा क्या किया?
जलता हूँ सदियों से और कितने रावण फूँकोगे,
काग़ज़ के रावण बहुत जलाए कब मन के रावण फूँकोगे?

एक संवाद राम और रावण के बीच ऐसा हुआ
पूछता है रावण राम से मैंने ऐसा क्या किया?
हाहाकार मचा अब खुद तुम्हारी बस्ती में
मैंने तो पावन रखा सीता को अपनी नगरी में
पर कितनी निर्भया कलंकित हो रहीं तुम्हारी अपनी नगरी में!

जलता हूँ सदियों से और कितने रावण फूँकोगे,
काग़ज़ के रावण बहुत जलाए कब मन के रावण फूँकोगे?

अर्थ सारे व्यर्थ हो रहे, लोभी, पापी भरे पड़े हैं
मानवता चीत्कार कर उठी अब, कैसी ये कमजोरी है
बहन के स्नेह में  हुई भूल की सज़ाआज भी पाता हूँ
जलता हूँ सदियों से और रोज़ पछताता हूँ!

इन प्रश्नों के उत्तर लेने हर वर्ष मैं आता हूँ,
एक दुष्कर्म की सजा आज तक पाता हूँ।
पर धरती पर चहुँ ओर कितने ही रावण पाता हूँ,
सीता से भी बुरी दशा में लाखों को मैं पाता हूँ।

जलता हूँ सदियों से और कितने रावण फूँकोगे,
काग़ज़ के रावण बहुत जलाए कब मन के रावण फूँकोगे?

मुझे फूँकना अब तुम छोड़ो, बातों की जगह काम करो
राम राज्य के लिए सब मिल कोई पहल करो
काग़ज़ के रावण बहुत जला लिए अब धरती उत्थान करो
ज़िंदा रावण को पकड़ो और उनका अब संहार करो।

इमेज सोर्स : Sandip 224 for Getty Images via Canva Pro

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About the Author

SHALINI VERMA

I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...

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