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लेकिन माँ, तोहफ़े तो मायके से आते हैं ससुराल से नहीं…

"ये कौन सी नई रीत शुरू कर रही है बहु? तोहफ़े तो बहुओं के मायके से आते हैं, ना कि ससुराल से भेजे जाते हैं", बहू ऐसा कहती थीं मेरी सासु माँ...

“ये कौन सी नई रीत शुरू कर रही है बहु? तोहफ़े तो बहुओं के मायके से आते हैं, ना कि ससुराल से भेजे जाते हैं”, बहू ऐसा कहती थीं मेरी सासु माँ…

नेहा की शादी एक पढ़े लिखें परिवार में हुई थी। घर में सास-ससुर और एक छोटी नन्द और पति समीर थे। ससुर कॉलेज में प्रोफेसर के पद पे थे और सासूमाँ एक घरेलु महिला।

समीर की जॉब दिल्ली में थी तो शादी के तुरंत बाद अपने पति समीर के साथ नेहा दिल्ली चली गई थी। शादी में एक साथ ढेर सारी छुट्टियां लेने के कारण समीर को जल्दी छुट्टी ही नहीं मिल रही थी इसलिए उन्हें घर जाने में छः महीने का वक़्त लग गया।

नेहा को ससुराल जाने की ख़ुशी थी तो थोड़ी घबराहट भी। आखिर ससुराल तो ससुराल ही होता है! और अभी तो किसी को ठीक से जान भी नहीं पायी थी नेहा।

फ्लाइट जब लखनऊ एयरपोर्ट पे लैंड हुयी तो एक साथ सभी को एयरपोर्ट पे देख नेहा सुखद आश्चर्य से भर उठी। नेहा को तो लगा था कि सिर्फ ड्राइवर गाड़ी ले कर आया होगा।

सबसे मिल नेहा बहुत ख़ुश हुई। घर पे भी मम्मीजी ने बहुत सी तैयारी कर रखी थी। खाते-पीते, हँसते एक हफ्ता कैसे निकल गया नेहा को पता ही नहीं चला। हफ्ते दिन बाद समीर वापस चले गए क्यूंकि नेहा को कुछ दिन अपने मायके भी जाना था।

मायके जाने से पहले सासूमाँ ने ढेरों तोहफों से नेहा को लाद दिया।

“नेहा, बेटा सबके तोहफ़े रख लिये ना? और हां ये कश्मीरी शाल अपनी दादी जी को देना और मेरा प्रणाम भी कहना और ये लिफाफा भी रखो। वहाँ छोटे भाई बहन होंगे, जरुरत पड़ेगी।”

अपनी सासूमाँ का ऐसा प्यारा रूप देख नेहा भावुक हो उठी।

“इतने सारे कीमती तोहफ़े क्यों मम्मीजी? उपहार तो बेटियों के मायके से आते हैं ना कि ससुराल से दिये जाते हैं।”

“यही सोच तो मुझे पसंद नहीं बेटा। जानती हो जब मेरी शादी हुई थी, हर बार मेरे घर से तोहफ़े भर भर के आते थे। लेकिन जब भी मैं मायके जाती तो मेरी सासूमाँ कभी कुछ नहीं देतीं। खाली हाथ मायके जाने में बहुत शर्म आती। मेरा भी दिल करता की अपने माता-पिता और छोटे भाई-बहनों के किये कुछ उपहार ले कर जाऊँ।

एक बार अपनी सासूमाँ से इस बात का जिक्र भी किया तो उल्टा उन्होंने मुझे ही डपट दिया, “ये कौन सी नई रीत शुरू कर रही है बहु? तोहफ़े तो बहुओं के मायके से आते हैं, ना कि ससुराल से भेजे जाते हैं।”

“वो तो तुम्हारे पापाजी थे जो हमेशा कुछ पैसे चुपके से मुझे दे देते थे जिससे मैं भाई बहनों को कुछ उपहार दे देती।”

“क्या मैं जानती नहीं मायके खाली हाथ जाना कितना बुरा लगता है? किस बेटी का दिल नहीं करता अपने घरवालों के लिये कुछ उपहार ले कर जाये। जो मैंने महसूस किया है वो मेरी बहु कभी नहीं करेंगी बेटा। तू बस ख़ुशी ख़ुशी जा और जल्दी वापस अपने घर वापस आ जा।”

सासूमाँ की बात सुन नेहा के दिल में उनके लिये इज़्ज़त दुगनी हो गई। आज जहाँ दहेज़ के लालची और उपहारों के नाम पे बेटी के माता पिता को परेशान किया जाता है वहाँ ऐसी सुलझी सासूमाँ को पा नेहा को खुद के किस्मत पे रस्क हो आया। सासूमाँ के गले लग जल्दी वापस आने का वादा कर निकल पड़ी नेहा अपनी मायके की ओर।

इमेज सोर्स : Still from Short Film Sanskaari Bahu, Vinu Motion Pictures via YouTube

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