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"आज मैंने आपसे आज सीखा है। दादी जी के स्वर्गीय होते ही जैसे बुआ जी का मायका खत्म हो गया, ठीक वैसे ही कल को जब मेरी बेटी होगी तब..."
“आज मैंने आपसे आज सीखा है। दादी जी के स्वर्गीय होते ही जैसे बुआ जी का मायका खत्म हो गया, ठीक वैसे ही कल को जब मेरी बेटी होगी तब…”
“बहु, कल जल्दी तैयार हो जाना गहने लेने चलना है।”
“मुझे भी चलना होगा क्या मम्मीजी?”
“हां बेटा तुम बहु हो मेरी तो फिर गहने भी तुम्हारी पसंद के ही लेंगे। और फिर आज कल का फैशन भी तो तुम लड़कियों को ही पता होता है। तुम्हारी शादी में जो गहने रिया और दिया के लिये लिये थे उन्हें तो वो बहुत भारी और ओल्ड फैशन के लगे। अच्छा है इस बार तुम हो तो अच्छे अच्छे डिज़ाइन पसंद कर लेना खुद के भी और इस घर की बेटियों के लिये भी।”
सीमा की शादी उदय के साथ हुई थी। सीमा के ससुराल में सब सीमा का मान करते थे ख़ास कर उसकी सासूमाँ। अपनी सासूमाँ रमा जी के मीठे बोल सुन सीमा बहुत ख़ुश हुई थी। ख़ुश होना लाजमी भी थी सीमा की शादी के अभी दिन ही कितने हुए थे? मात्र छः महीने! वो तो छोटे देवर अजय की नौकरी विदेश में लग गई थी तो घर में सबकी इच्छा थी की उनकी शादी भी जल्दी से हो जाये और अपनी दुल्हन ले कर ही वो विदेश जाये इसलिए जल्दी-जल्दी ये शादी हो रही थी। छोटे देवर की शादी का उत्साह सीमा को भी बहुत था।
अलगे दिन बाज़ार जाने वक़्त कुछ काम निकल आया तो रमा जी ने सीमा को उदय के साथ ही गहने लेने भेज दिया और जाते जाते फिर से याद दिला दिया की सुन्दर और नये डिज़ाइन ही ले घर की बेटियों के लिये।
“देखिये ना उदय ये सेट कैसा लग रहा है रिया दीदी और दिया दीदी के लिये? और ये पेंडेंट सेट बुआ जी के लिये उनकी उम्र है तो बहुत भारी लेना ठीक नहीं होगा ना।”
“तुम्हें जो ठीक लगे ले लो सीमा। अब ये गहने मेरे समझ से तो बाहर हैं। मेरे काम तो अपनी सुन्दर बीवी के शॉपिंग बैग्स उठाना है!”
अपनी उत्साहित पत्नी को देख हँसते हुए उदय ने कहा तो सीमा भी खिलखिला उठी।
गहनों की शॉपिंग ख़ुशी ख़ुशी कर सीमा और उदय घर आ गये।
“मम्मीजी, आइये ना देख लीजिये कैसे गहने हैं और सबको पसंद तो आयेंगे ना?”
“पसंद क्यों नहीं आयेंगे? मेरी बहु की पसंद तो सबसे अच्छी है! चल दिखा क्या क्या लिया?”
“ये देखिये मम्मीजी! ये दोनों गोल्ड सेट रिया और दिया दीदी के लिये और ये डायमंड पेंडेंट सेट बुआ जी के लिये।”
“बुआ जी के लिये? लेकिन मैंने तुम्हें कब कहाँ जीजी के लिये लेने को? अरे अभी तो तुम्हारी शादी में अंगूठी दी थी और इतनी जल्दी डायमंड का पेंडेंट का सेट?”
हमेशा मीठी बोली बोलने वाली सासूमाँ की कड़क आवाज़ सुन एक बार तो सीमा डर ही गई फिर किसी तरह हिम्मत बटोर कहा, “लेकिन मम्मीजी आपने ही तो कहा था खुद के पसंद से गहने ले आऊँ।”
“हाँ, लेकिन इस घर की बेटियों के लिये मेरी नन्द के लिये नहीं। फालतू के पैसे बर्बाद कर दिये बहु तुमने।”
गुस्से से रमा जी ने ये कहा तो सीमा आश्चर्य में पड़ गई।
“ये क्या कह रही हैं मम्मीजी? आप क्या बुआ जी इस घर की बेटी नहीं, जैसे रिया और दिया दीदी है? आपने बार-बार कहा की घर की बेटियों के लिये गहने ले आओ, तभी मैंने घर की तीनों बेटियों के लिये गहने लिये। माना बुआ जी आपकी बेटी नहीं नन्द हैं, लेकिन हैं तो वो भी इस घर की ही बेटी जैसे रिया दीदी और दिया दीदी? और फिर दादी जी के ना रहने के बाद उनका मायका आपसे और इस घर से ही तो जुड़ा है।”
“अब तुम मुझे सिखाओगी रिश्ते कैसे निभाते है?” व्यंग से रमा जी हॅंस पड़ी।
“माफ़ कीजियेगा मम्मीजी, मैं तो छोटी हूँ! आपको मैं क्या सिखा सकती हूँ? लेकिन हाँ रिश्ते निभाना भी तो बच्चे बड़ों से ही तो सीखते हैं। जैसे आज मैंने आपसे आज सीखा है। दादी जी के स्वर्गीय होते ही जैसे बुआ जी का मायका खत्म हो गया, ठीक वैसे ही कल को जब मेरी बेटी होगी तब आपकी तरह मैं भी सिर्फ उसे ही तीज-त्योहारों में नेग दूंगी सिर्फ उसके ही मायके के लाड उठाउंगी। क्यूंकि सिर्फ मेरी बेटी ही तो होगी इस घर की बेटी। रिया दीदी और दिया दीदी का मायका भी तक तक ही होगा जब तक आप हैं।”
सीमा की बात कड़वी थी, लेकिन थी सौ फीसदी सच्ची। एक पल को तो रमा जी ठगी खड़ी रह गईं। क्या कहें और क्या करें, उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था। अपनी नन्द का चेहरा आँखो के सामने आ गया। हँसती मुस्कुराती उनकी नन्द ने हमेशा नन्द और घर की बेटी होने का फ़र्ज निभाया था। फिर वो कैसे एक भाभी के फ़र्ज निभाने में पीछे रह गई?
एक ओर जहाँ उनकी बहु ने उनकी गलतियों को दिखलाया था वहीं दिल को इस बात का सुकून भी मिला की उनकी बेटियों का मायका कभी खत्म नहीं होगा जैसे उनकी नन्द का हुआ था।
बिना कुछ बोले रमा जी ने सीमा को गले लगा लिया।
“इतनी छोटी हो कर भी मुझसे ज्यादा रिश्तों की समझ है तुझमें बहु। सच कहा तुमने, माँजी के बाद मेरी जिम्मेदारी थी जीजी का ख्याल रखने की लेकिन मैंने नहीं किया। मुझसे भूल हुई है। वो बीते पल अब वापस तो नहीं आ सकते लेकिन अब भी देर नहीं हुई। पिछली सारी कसर मैं अजय की शादी में पूरी करुँगी और अपनी नन्द का मायका भी कभी खत्म नहीं होने दूंगी।”
अपनी सासूमाँ की बातें सुन सीमा भी समझ गई की बुआ जी का मायका उन्हें वापस मिल गया था।
इमेज सोर्स: Still from Sabhyata Diwali ad, YouTube (for representational ppurpose only)
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