कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

माँजी, बहुएं काम करने की मशीन नहीं होतीं हैं…

"दरअसल गलती इनकी भी नहीं। इनको इनके माता-पिता पढ़ा लिखाकर आत्मनिर्भर तो बना देते हैं, लेकिन संस्कार देना और घर के काम सीखाना भूल जाते हैं।"

“दरअसल गलती इनकी भी नहीं। इनको इनके माता-पिता पढ़ा लिखाकर आत्मनिर्भर तो बना देते हैं, लेकिन संस्कार देना और घर के काम सीखाना भूल जाते हैं।”

“रचना, रात के नौ बजे गए! अभी तक तुम्हारा खाना तैयार नहीं हुआ? और तुम माँ की दवाई क्यों नहीं लेकर आयीं? और ना ही तुमने उनको सुबह दवा खाने के लिए दी थी! तुम्हें पता है ना उन्हें डायबिटीज है। क्या तुम अपनी मां के साथ भी इतनी लापरवाही करतीं?” रमन ने गुस्से में चिल्लाते हुए अपनी पत्नी रचना से कहा।

रचना और रमन की शादी हुए अभी एक साल ही हुआ था, लेकिन रचना की सास गीता हमेशा कोई ना कोई शिकायत या चुगली अपने बेटे से कर ही देती जिससे दोनों में आये दिन झगड़े होते रहते। अपने माँ के प्यार में अंधे रमन को रचना की तकलीफ कभी दिखाई ही नहीं देती।

गीताजी और रमन दोनों ही ना तो कभी रचना की घर के किसी काम मे मदद करते ना ही उसे घर में उसकी सहायता के लिए कोई हेल्पर रखने देते। रचना ने कई बार उन लोगों को समझाने की कोशिश की लेकिन हर बार गीताजी बीच में ही बोल देती।

“अरे! अब तीन लोगों के काम के लिए भी हेल्पर चाहिए? मैं तो कुक के हाथों का खाना नहीं खाऊंगी। मेरे जीते जी इस घर मे नौकर नहीं रखे जाएंगे।”

जिस पर रमन भी माँ का साथ देते हुए कहता, “हाँ सही कह रही हैं। आखिर घर के काम होते ही कितने हैं? बहुत सी औरतें है दुनिया में जो घर भी संभालती है और नौकरी भी करती हैं। तुम कोई अजूबा काम नहीं कर रहीं।”

एक साल से रचना पति और सास के ताने सुन-सुन कर परेशान हो चुकी थी। रचना एक माह की गर्भवती भी थी इस बीच उसकी तबियत भी ठीक नहीं रहती थी। लेकिन आज रमन ने जब गुस्से में बोलना शुरू किया तो रचना से भी चुप नहीं रहा गया।

उसने कहा, “रमन! पहली बात माँजी की दवाई अभी खत्म नहीं हुई है। तुम खुद जाकर देख सकते हो कि अभी दो दिन की दवा है। दूसरा मैं पूरे दिन घर और ऑफिस के काम में लगी रहती हूँ। मेरी तबियत थोड़ी मुझे ठीक नहीं लग रही थी इसलिए मैंने तुमको मैसेज कर दिया था कि रास्ते से रुककर मैंने दवा नहीं ली। लेकिन तुम क्यों नहीं लेते आये दवाई? आखिर वो तुम्हारी मां हैं तो तुम्हारे भी तो कुछ कर्तव्य बनते हैं उनके प्रति!”

इतना सुनते ही रमन फिर गुस्से में बिफर पड़ा और उसने कहा, “अब तुम मुझे समझाओगी मेरे क्या कर्तव्य हैं? जो खुद कोई कर्तव्य अच्छे से नहीं निभा पाती?”

पीछे से गीताजी ने कहा, “जाने दे बेटा क्यों अपना मूड खराब करता है? आजकल की बहुओं को सारी सुविधाएं मिलने के बाद भी सास का और घर का काम करना भारी लगता है। उनको तो बस मर्दों की बराबरी करने का भूत सवार रहता है। इसलिए नौकरी के बहाने बस बाहर घूमकर मौज करती हैं। और घर मे थकान का नाटक करती हैं।

हमारे जमाने की तरह इन लोगो को घर के काम करने होते तो ना जाने ये लोग क्या करतीं? हम तो हैडपंप चलाकर पानी भरते थे। फिर खाना, नाश्ता, पूरे परिवार का कपड़ा धुलना, सब काम करते थे। लेकिन मजाल जो एक जुबान निकाल पाए। या दिन में कभी कमर भी सीधी की हो। आजकल की बहुओं की तरह नहीं कि नल खोला और पानी आ गया, वाशिंग मशीन में कपड़े धुल गए। गैस पर खाना पक गया। फिर भी इनको तकलीफ है।”

रमन ने और आग में घी डाला, “माँ ये क्या हैंडपंप से पानी भरेंगी। इनकी तो कमर ही टूट जाएगी। दअरसल गलती इनकी भी नहीं। इनको इनके माता-पिता पढ़ा लिखाकर आत्मनिर्भर तो बना देते हैं, लेकिन संस्कार देना और घर के काम सीखना भूल जाते हैं।”

गीताजी ने कहा, “हाँ बेटा सही कह रहा है। जबकि एक औरत का तो असली गुण ही होता है घर का काम करने आना और संस्कारी होना।”

ये सारी बातें सुनकर रचना का गुस्सा भी बढ़ गया। उसे आज अपने साथ-साथ अपने माता-पिता के दिये संस्कारो का अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ।

रचना ने कहा, “माँजी अब जब आप दोनो ने मेरे संस्कारो पर उंगली उठा ही दी है तो सच्चाई भी सुन लीजिए। महज 50 साल की उम्र में आप घर के काम तो छोड़िए, खुद से खुद की दवा लेकर नहीं खा सकतीं! क्यों? क्योंकि आप सास हैं? और बहू के आते ही आप बूढ़ी हो गयी हैं। तो अब बहू  का यानी मेरा फर्ज बनता है कि वो सास परिवार और पति का सारा काम करे!

तो क्या घर के प्रति सारी जिम्मेदारी सिर्फ बहू की होती है? रही बात जमाने की, तो माँजी अगर मैं गलत नहीं बोल रही हूँ, तो आप के बताए अनुसार शादी के दो साल बाद ही आप परिवार से अलग हो गयी थीं। और एक माह बाद ही ससुर जी के साथ बाहर रहने उनके साथ चली गयी थीं क्योंकि जब आप गर्मी की छुट्टियों में ससुराल आती थी तो आपकी सास ननद जेठानी आपकी कोई मदद नहीं करती थीं और घर के सारे काम आप से कराती थीं। ऐसा ही था न?

अब आज के जमाने की बात, तो मैं घर बाहर से लेकर बिजली और दूध के बिल भरने तक के सारे काम मैं करती हूं। लेकिन आपकी नजर में ये सब कोई काम नहीं हैं।

और मिस्टर रमन, ये मेरे माता-पिता के दिए संस्कार और परवरिश का नतीजा ही है कि मैं रोटी तरीके से कमाना और पकाना, दोनों जानती हूं। तुम अपनी बात करो, क्या तुम ये काम कर सकते हो?

रमन तुम्हें अपनी मां के प्रति तो सारे कर्तव्य याद रहते हैं लेकिन अपनी गर्भवती पत्नी के प्रति कोई कर्तव्य याद नहीं। क्यों बेटों के सारे कर्तव्य और परवाह सिर्फ माँ के हिस्से आते हैं? और पत्नी के हिस्से दुत्कार और लापरवाही? रमन तुम्हें अपने पति होने का ना सही लेकिन पिता होने के नाते तो तुम अपनी पत्नी का खयाल रख ही सकते हो। लेकिन नहीं इससे तुम्हारी इज्जत कम हो जाएगी। तुमने एक बार भी नहीं पूछा कि ‘तुम्हारी तबियत कैसी है?’

लेकिन रमन अब मुझ से ये अपमान और बर्दाश्त नही हो सकता। ना मैं ना दुनिया की कोई भी औरत मशीन है जो हर काम सही और परफेक्ट कर के दे। इसलिए मैं इतनी बेइज्जती के बाद यहां और नहीं रह सकती। तुम अपना घर और अपनी मां का ख्याल रखो।”

कहकर रचना अपने कमरे में चली गयी और कपड़े पैक कर अपने मायके चली गयी। लेकिन रचना को रमन ने अपनी मां के कहने पर नहीं रोका।

गीताजी ने कहा, “बेटा जाने दे! जैसे जा रही है वैसे ही खुद वापिस भी आएगी। तू देख लेना, मायके वाले कब तक शादीशुदा बेटी बिठाकर रखेंगे?”

इधर शुरुआत में तो सब कुछ ठीक रहा लेकिन रचना के जाने के कुछ दिनों बाद रमन को रचना की अहमियत समझ में आने लगी। घर आकर कपड़े मशीन में धुलने से लेकर उनको सुखाने, खाना बनाना, सब काम उसे ही करना होता। ऊपर से अपनी माँ का ध्यान भी रखना। अब उसे रचना की मेहनत का अहसास होने लगा था। अपनी गलती का अहसास उसे रातों को सोने नहीं देता था।

दो महीने बाद शनिवार के दिन रचना ने दरवाजा खोला तो देखा सामने रमन खड़ा है। मौका पाकर रमन ने रचना से कहा, “रचना मैं तुम्हे लेने आया हूं तुम प्लीज घर चलो। अब तुम्हे कोई शिकायत का मौका नही मिलेगा।”

रचना भी सब भूलकर वापिस लौटने के लिए तैयार हो गयी। लेकिन इस बार जब रचना आयी तो देखा रमन ने पहले ही घर मे  खाना बनाने के लिए कुक, घर की साफ सफाई के लिए नौकर लगा दिया था।

गीताजी का मुँह बेशक टेढ़ा था क्योंकि जिंदगी में कुछ लोग कभी नही बदलते। लेकिन गीताजी के पास समझौते के अलावा उनके पास दूसरा कोई उपाय भी नहीं था।

अब रमन और रचना की जिंदगी पटरी पर आने लगी थी। कुछ महीने बाद एक बेटी का पिता बनने के बाद रमन पूरी तरह से बदल चुका था। अब वो एक जिम्मेदार बेटे के साथ साथ जिम्मेदार पति और पिता भी बन गया था।

प्रिय पाठक गण, उम्मीद करती हूं कि मेरी ये रचना आप सब को पसंद आएगी। कहानी पसन्द आये तो लाइक शेयर और कमेंट करना ना भूले।

इमेज सोर्स : Still from Short Film Beti/Short Cuts via YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

79 Posts | 1,625,356 Views
All Categories