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जिद्दी रमा ने किसी की कभी सुनी थी? चट रत्ना का हाथ पकड़ सुन्दर बेल-बूटे सजा दिये। मेहंदी का रंग भी ऐसा कि पल भर में चटक लाल हो आया।
मेहंदी के कोण से हाथों में बेल-बूटे सजाती रमा की नज़र अचानक रत्ना पे टिक गई। ये समझते देर ना लगी रमा को कि खुद को व्यस्त दिखाती रत्ना का पूरा ध्यान सिर्फ रमा पे ही था।
“आओ ना रत्ना भाभी, छोटा सा बेल-बूटा आपके हथेलियों पे भी रच दूँ।”
“ना-ना रमा, मैं कैसे?” घबरा उठी रत्ना अपनी नन्द के इस प्रस्ताव से।
“क्या ना-ना भाभी? क्या मैं नहीं जानती आपको मेहंदी से कितना प्यार है? कितने सुन्दर-सुन्दर डिज़ाइन यूं चुटकियों में बना देती थीं जब नई-नई ब्याह कर आयी थीं। याद है सवा साल तक आपके हाथों से मेहंदी का रंग उतरने नहीं दिया था हम दोनों नन्द-भौजाई ने?”
रमा की बात सुन एक नज़र अपनी गोरी सुनी पड़ी हथेलियों पे डाल फ़ीकी हंसी हॅंस पड़ी रत्ना। जिद्दी रमा ने किसी की कभी सुनी थी जो आज सुनती? चट रत्ना का हाथ पकड़ सुन्दर बेल-बूटे सजा दिये। मेहंदी का रंग भी ऐसा की पल भर में चटक लाल हो आया।
आँखों के आंसू छिपाती अपने हाथों को आँचल में छिपा अपना कमरा बंद कर लिया रत्ना ने और कटे वृक्ष के समान गिर पड़ी।
“रत्ना की माँ मुँह मीठा करवाओ! बिटिया का ब्याह तय कर दिया।”
“ये क्या कह रहे हैं आप? यूं अचानक से? आप तो अपनी भांजी का रिश्ता तय करने गए थे?” एक सांस में माँ ने जाने कितने सवाल कर डाले।
“सब बताता हूँ। थोड़ा इत्मीनान रखो और क्या आज एक ग्लास पानी भी नहीं पूछोगी?” हँसते हुए बाबूजी ने कहा, तो माँ भी हॅंस पड़ीं। जल्दी से चूल्हे की सब्ज़ी नीचे उतारा और पानी का ग्लास हाथों में पकड़ा वहीं कुर्सी ले बैठ गईं।
“चलिये अब सारी बातें बताइये।”
पता चला जहाँ बाबूजी और फूफाजी बात करने गए थे, वहाँ लड़की और लड़के की कुंडली नहीं मिली तो बात बन ना पाई। इतना अच्छा रिश्ता हाथ से ना चला जाये तो रत्ना के फूफाजी ने रत्ना के विवाह का प्रस्ताव दे दिया। आनन-फानन में कुंडली मिलाई गई।
“वाह! ये जोड़ी तो शिव-पार्वती की जोड़ी समान है!” पंडित जी की स्वीकृति मिलते ही रिश्ता तय हो गया।
क्या धूम धाम से बारात आयी थी शिव की। मेहरून शेरवानी में ऐसा सजिला दूल्हा जिसने देखा वाह वाह कर उठा। रत्ना भी क्या कम थी? परियां शर्मा जाएँ ऐसा सिंदुरिया रंग। चारों ओर सिर्फ खुशियाँ ही खुशियाँ।
बाबुल का आंगन छूटा रत्ना से, लेकिन स्नेह वैसा ही मिला ससुराल में। लाड लगाती सासूमाँ, स्नेह देते ससुरजी, छोटी बहन समान रमा, तो पति के रूप में दिलों-जान से प्रेम करने वाले शिव। हां दादी-सास थोड़ी कड़क थीं, लेकिन सासूमाँ हमेशा ढाल बन रत्ना के आगे खड़ी रहतीं।
दिन कैसे सोने के और रातें चाँदी सी लगतीं, जब तक वो मनहूस दिन नहीं आया था। हल्का बुखार ही तो था शिव को, हालत ऐसी बिगड़ी की बस सब खत्म हो गया। कितनी ज़िद की थी रत्ना ने कि एक बार डॉक्टर से मिल लेते हैं, लेकिन शिव हॅंस कर टाल जाते।
जिसे सब साधारण बुखार समझ रहे थे वो डेंगू था। ज़रा सी लापरवाही भारी पड़ गई थी। शिव चले गए और पीछे रह गई बिलखती कलपती रत्ना। वो दिन और आज का दिन, दादी कोई मौका नहीं छोड़ती रत्ना को सुनाने का, उसे ये अहसास दिलाने का कि विधवा है वो। जिंदगी थम सी गई थी जैसे रत्ना के लिये।
हर रात रत्ना सोचती कि क्यों शिव से लड़ ना पड़ी? क्यों अपनी क़सम दे उन्हें अस्पताल नहीं ले गई? उसकी क़सम तो शिव कभी नहीं तोड़ते, अपनी जान से भी बढ़ कर स्नेह और प्रेम जो करते थे।
अगले दिन तक मेहंदी का रंग अपनी खुमार पे था। मेहंदी लगी हथेली को आँचल से छिपाने का पूरा प्रयास किया रत्ना ने लेकिन दादी सास की तेज़ नज़रों ने देख ही लिया। रमा की नादानी और रत्ना की भूल का खामियाजा एक तूफान के रूप में आना था सो आ ही गया।
“मेरे पोते को गए अभी साल भर भी नहीं हुआ और तेरे सजने-संवरने के अरमान जाग गए रत्ना बहू? भूल गई कि तू विधवा है? ये श्रृंगार तुझे शोभा नहीं देते!” दादी का रौद्र रूप देख कांप उठी रत्ना।
“जाने दीजिये ना माँजी, बच्ची है अभी, मन कर दिया होगा तो बेल-बूटे काढ़ लिये।” अपनी बहू को बचाने का असफल प्रयास रत्ना की सासूमाँ ने किया।
“बच्ची है? बच्ची नहीं विधवा है रत्ना! और ये हार श्रृंगार इसे शोभा नहीं देते। ये इतनी सी बात क्या इसे समझ नहीं आती? समझा दो रत्ना बहु को कि त्याग और संयम को अपने आँचल में गांठ बांध ले और वैसे ही रहे जैसे नियम सदियों से चले आ रहे हैं।”
“क्यों दादी? क्यों शोभा नहीं देते? और आप किन नियमों की बात कर रही हैं?” इतनी देर से चुप रमा बोल पड़ी।
“ताई जी को गए कितने साल हो गए, लेकिन ताऊ जी ने तो कुछ त्याग नहीं किया। ना खाना-पीना, ना ही अपने शौक और ना ही चटक कपड़े पहनना। फिर क्यों आप रत्ना भाभी से ही ये सब करने को कहती हैं? क्यूंकि वो एक औरत हैं और ताऊ जी पुरुष? फिर तो आडम्बरों से भरा है आपका समाज और खोखले हैं आपके नियम।”
रमा को ज़वाब देता देख दादी तिलमिला उठी, “रमा लड़की हो, चुप रहना सीखो!”
“आज तक चुप ही थी दादी, लेकिन अब नहीं। बस एक सवाल का ज़वाब दीजिये, अगर शिव भैया की जगह रत्ना भाभी की मौत हो गयी होती तो क्या ये सारे नियम भैया मानते? क्या अब तक आप अपनी कसम दे उनका पुनर्विवाह नहीं करवा दी होतीं? फिर क्यों दादी? आपके नियम भाभी के लिये कुछ और क्यों? मेहंदी के दो बेल-बूटे काढ़ लेने से भाभी ख़ुश होती हैं तो क्या भैया की आत्मा को ख़ुशी नहीं होंगी? भाभी के मेहंदी लगे हाथ भैया को कितने प्रिय थे। सोचियेगा जरूर दादी!”
रमा के सवालों का आज दादी के पास कोई ज़वाब नहीं था। सच्चाई का आईना दिखा रमा, बिलखती रत्ना को ले कर चली गई। साथ ही अपने स्वर्गीय भाई को याद कर उसने एक क़सम भी खा ली कि चाहे दुनियां से लड़ना पड़े या समाज से, लेकिन रत्ना भाभी के सूने हाथ अब अधिक समय तक वो सूना नहीं रहने देगी। इन हाथों पे फिर से मेहंदी सजेगी… फिर से ये हाथ होंगे, मेहंदी वाले हाथ!
मूल चित्र : Still from BibaIndia Ad,YouTube
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