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वेब सीरिज़ ‘मेड’ मुझे बेबी हालदार की आलो-आंधारि की याद दिलाती है

MAID वेब सीरिज़ हो या बेबी हालदार की आलो-आंधारि, दोनों में एक बात है, रिश्ते यकीनन नहीं टूटने चाहिए लेकिन रिश्तों में जिंदगी टूटने लगे...

चाहे MAID वेब सीरिज़ की कहानी हो या बेबी हालदार की आलो-आंधारि दोनों एक बात कहते हैं, रिश्ते यकीनन नहीं टूटने चाहिए लेकिन रिश्तों में जिंदगी टूटने लगे, तो जिंदगी बचानी ज्यादा जरूरी है।

शहरी-महानगरीय जीवन में MAID और मुहल्ले-कस्बे जीवन में कामवाली या दाई  शब्द  के संबोधन के साथ और एक बिखरी हुई व्यक्तित्व वाली महिला से सामना कमोबेश हर किसी का होता है। वह हमारे जिंदगी में फैले धूल-धकड़ और गंदगी को साथ करते हुए अपनी जिंदगी का अंधेरा कोना भी उजाले से भरना चाहती है, इसके बारे में हम सोचते तक नहीं है। परंतु, घर में कुछ खोया या नहीं मिल रहा है तो सबसे पहला शक उस पर ही जाता है।

तमाम आर्थिक चुनौतियों,अपने साथ हो रहे घरेलू हिंसा और अपने लिए सामाजिक रूप से स्वीकृति के दूसरे पैमाने को अपनाते जाते हुए भी वह हमारे जीवन का इतना अहम हिस्सा होती है। उसकी देरी से हमारे घर की पूरी दिनचर्या उथल-पुथल हो जाती है, पर  हम उसके जीवन के किसी भी उथल-पुथल के एक हिस्से को भी नहीं जानते हैं।

हमारे यहां की मनोरंजन की दुनिया में फिर चाहे वह टीवी के सीरियल हों या सिनेमा की MAID या Help या कामवाली या दाई शब्द के संबोधन के व्यक्तित्व वाली महिला के समस्याओं पर कम, उसको एक महत्वकांक्षी और अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए कुछ भी करने वाली महिला के रूप में अधिक चित्रण हुआ है। समाज का एक सबसे कमजोर व्यक्तित्व जिसका किसी भी तरीके से इस्तेमाल हो सकता है।

नेटफलिक्स पर पिछले दिनों रिलीज हुई वेब सीरिज़ ‘मेड’ एक अलग से परिस्थिति में इसी तरह की एक कहानी सुनाती है। इसमें केंद्रीय पात्र नायिका एलेक्स अपने आत्मसम्मान के लिए और 3 साल की बेटी मैड्डी के आत्मसुरक्षा के लिए, बाथरूम में तेज नल खोलकर रोती नहीं है, न ही ड्रेसअप होकर पार्टी में जाती है, न रिश्तों में आ गए लिजलिजेपन से सिहर उठती है, न ही कोई पुरानी तस्वीर देखकर इमोशनल होती है। वह दुनिया के हर अभेद्य दीवार से टकारा जाने को तैयार हो जाती है।

न ही उसके पास दो वक्त का खाना है, न ही छत है उसके पास, उसके पास बस है आत्मविश्वास और तीन वर्ष की बेटी। एक्सेस में आंखों में सपने हैं। उसके भीतर एक लेखक है जो घरों के टायलेट साफ करते हुए भी सपने देखना बंद नहीं करता है, डायरी लिखता है, वह हिम्मत नहीं हारता है। लिखते हुए एक्सेस यहां तक कहती है कि “सिर्फ लेखन पर किसी और का कंट्रोल नहीं हो सकता। यहां आपको कोई नहीं बता सकता, ऐसा नहीं ऐसा लिखो। आप अपनी मर्जी से लिख सकते हो।”

अपने लेखन की वज़ह से नायिका एक्सेस स्कालरशिप पाकर फिर से कॉलेज जाती है। वह भविष्य में आने वाली कठिनाईयों के प्रति भी सचेत है, एक छोटी बच्ची को साथ लेकर पढ़ने में, लोगों द्वारा स्वीकारे जाने को लेकर चिंतित भी है। इस बेव सीरिज का सबसे खूबसूरत पल यह है कि नायिका एक्सेस को संघर्ष करते हुए देखती तीन वर्ष की बच्ची बिल्कुल परेशान नहीं करती, चुपचाप उसके साथ घूमती हुई खुश रहती है।

इस सीरिज को देखते हुए बेवी हालदार कि बेस्ट सेलर आत्मकथा आलो आंधारि (ए लाइफ लेस्स ओर्डिनरी) बरबस ही आंखो के सामने से गुजर जाता है जो एक साधारण कामवाली बाई के लेखिका बनने के सफर की सच्ची कहानी है।

क्या है बेबी हालदार और आलो-आंधारि की कहानी?

कश्मीर में जन्मी बेबी हालदार को चार साल के उम्र में मां ने छोड़ दिया, सौतेली मां और नशेबाज पिता ने पाला और वह किसी तरह कश्मीर से मुर्शिदाबाद और अंत में दुर्गापूर तक पहुंच गई। वह छठी तक पढ़ी, फिर एक छोटे डेकोरेटर से उसकी शादी 14 साल के उम्र में कर दी गई। इसी उम्र में पहला बच्चा भी हुआ।

इसी बीच उसकी बहन को पति ने गला दबाकर मार डाला, तब उसके घरेलू कामवाली बाई का सफर शुरू हुआ। पति के घरेलू हिंसा से तंग आकर तीन बच्चों के साथ दिल्ली जाने वाली ट्रेन में सवार हो गई।  दिल्ली में भी अपने बच्चों को बेहतर जीवन देने के लिए कामवाली बाई का काम शुरू किया।

एक सेवानिवृत प्रोफेसर के घर में काम करते हुए उनके बुक शेल्फ में रखी किताबों को ललचाई नज़र से देखती। प्रोफेसर साहब ने उसको पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

कुछ दिनों में उसने अपनी कहानी बंग्ला में सौ पेज में लिख दिए। 2004 में एक छोटे से प्रकाशन से आलो-आंधारि के नाम से किताब प्रकाशित हुई साहित्यक दुनिया में छा गई। फिर पहले कई भारतीय भाषाओं में और फिर द न्यूयार्क टाइम्स में समीक्षा छपने के बाद कई विदेशी भाषा में छप कर आई और वहां भी बेस्ट सेलर बन गई।

कुछ साल पहले 2014  में घरे फादर पाथ के नाम से उनकी दूसरी आत्मकथा भी आई है। आज उनका जीवन पहले से काफी संतुलित है।

MAID वेब सीरिज इस लिहाज से थोड़ी सरल दिखती है क्योंकि पश्चिम के देशों में मानवधिकार पर संवेदनशील लोगों ने शेल्टर होम्स, सरकारी योजना और कोई स्त्री अगर घर छोड़ती है और उसके पास कोई ठिकाना नहीं होता है, तो उसकी सुरक्षा और स्नेह की व्यवस्था कर रखी है।

चाहे MAID वेब सीरिज़ की कहानी हो या बेबी हालदार की आलो-आंधारि दोनों एक बात कहते हैं, रिश्ते यकीनन नहीं टूटने चाहिए लेकिन रिश्तों में जिंदगी टूटने लगे, तो जिंदगी बचानी ज्यादा जरूरी है।

इमेज सोर्स: Still from Amazon/Web Series Maid, YouTube

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