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साफ-साफ बात पति ने कह दिया था लेकिन इस बार मैं भी सोच चुकी थी कि अब बस अब मैं और नहीं बर्दाश्त करुँगी! आखिर गलती क्या थी मेरी?
बहुत अरमानों से मेरी शादी मेरी माँ और मेरे दोनों छोटे भाइयों ने मिल कर की थी। पिता थे नहीं तो जिम्मेदारी माँ पे ही थी और जिम्मेदारियों ने दोनों भाइयों को भी कम उम्र में जिम्मेदार बना दिया था।
माँ के ही किसी रिश्तेदार ने बताया था लड़के के विषय में, “बहुत अच्छा लड़का है गाँव में अपना बड़ा सा घर है स्वाभाव भी सोने जैसा है। बस कुछ दिन मंजरी यानी मुझे गाँव में रुकना पड़ेगा क्यूंकि लड़के की नयी नौकरी जो थी।”
दोनों भाई कम उम्र थे अनुभव भी कम था फिर भी माँ ने दोनों को लड़के के गाँव भेजा देंखने को। सब ठीक ही था तो बिना देर किये शादी हो गई और मैं पटना शहर से एक छोटे से गाँव में चली आयी।
मेरे लिये गाँव का ये अनुभव कुछ अजीब था। शादी की पहली रात थी हर लड़की की तरह मेरे भी कुछ अरमान थे इस शादी से जुड़े।
काफी इंतजार के बाद दरवाजा खुला और लड़खड़ाते कदमों से मेरे पति अंदर आये। उनके अंदर आते ही एक अजीब सी बदबू से कमरा भर उठा था और बिना कोई बातचीत मेरे पति ने अपनी मनमानी शुरू कर दी।
अब दिन को सास के ताने, गालियां और घर का काम करती और रात को शराबी पति के मनमर्जी का शिकार बनती। लगभग बीस दिनों बाद पति नौकरी पे चले गए तो कुछ राहत मिली।
मैं हर रोज़ सोचती कि क्या होगा मेरा भविष्य?
लगभग एक हफ्ते बाद ही पति अचानक से आ गए और मुझे साथ ले गए अपनी नौकरी की जगह। शायद अब सब ठीक हो जायेगा ये आशा मन में जगी थी लेकिन मैं गलत थी। अब तो रात दिन पति शराब पीता और मेरे शोषण में लगा रहता और मेरे इंकार पे मेरी पिटाई करता।
मेरा सब्र जवाब दे रहा था। हर रोज़ सोचती इस नरक से भागने को लेकिन हिम्मत नहीं होती।
इस बीच पता चला मैं गर्भवती हूँ।
“गिरा दो इस बच्चे को नहीं चाहिए मुझे कोई बच्चा!”
देर रात अंधरे में निकल गई घर से बस स्टैंड किसी तरह पहुंची और पटना की बस पकड़ सुबह होते होते अपने मायके के दरवाजे पे खड़ी थी।
मेरी हालत देख माँ और भाई रोने लगे। मुझे ढूंढते हुए दो दिन बाद मेरे पति आये, गन्दी गालियां देते मुझे अपने साथ ले जाने को।
“मैं नहीं जाने वाली अब कहीं भी!” साफ-साफ मैंने कह दिया।
जैसे ही मुझे मारने के लिये उसने हाथ उठाया, आज पहली बार उस हाथ को बीच में ही मैंने रोक दिया।
“अब नहीं, अब एक गाली और मैं सुनने वाली नहीं हूँ। आज से हमारे रास्ते अलग। अब तुम जैसे नीचे इंसान की छाया भी मैं अपने बच्चे पे नहीं पड़ने दूंगी।”
मेरी हुंकार सुन वो डरपोक भाग गया।
ये बात 90 के दशक की थी। कुछ महीनों बाद मेरी बच्ची का जन्म हुआ। मैंने अपनी बच्ची को माँ के पास छोड़ टीचर ट्रेनिंग का कोर्स किया और स्कूल में नौकरी करने लगी।
मैंने अपने दम पे अपनी बच्ची को पाला और अच्छी परवरिश भी दी। आज मेरी बेटी की भी शादी हो चुकी है और मैं नौकरी से रिटायर।
जिंदगी में बहुत परेशानी देखी शोषण देखा लेकिन संतोष इस बात का है कि अपनी बच्ची को अच्छी जिंदगी दे पायी।
इमेज सोर्स: Still from “Can Marriage Be Taken As A License To Rape?”/ Forced/ Marital Rape Short Film, YouTube
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