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अमल प्रभा दास रही हैं असम में साइंस पढ़ने वाली पहली महिला

12 नवंबर 2021 को 110 साल के होने जा रहीं अमल प्रभा दास अमूल्य धरोहर हैं असम समाज के लिए, जो समाज को पुर्नपरिभाषित करने की प्रेरणा दे रही हैं।

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12 नवंबर 2021 को 110 साल के होने जा रहीं अमल प्रभा दास अमूल्य धरोहर हैं असम के समाज के लिए जो अपनी मौजूदगी मात्र से समाज को नए सिरे से पुर्नपरिभाषित करने की प्रेरणा दे रही हैं।

भारत के स्वाधीनता संग्राम के संघर्ष में और स्वाधीनता मिलने के बाद समाज को नए सिरे से पुर्नपरिभाषित करने में न जाने कितने ही सामाजिक कार्यकत्ताओं ने अपनी-अपनी भूमिका का निर्वाह किया “तेरा तुझको अपर्ण” के भाव से, इस बात के बारे में जरा भी परवाह किए बगैर समाज उनको याद करता है या नहीं।

इस तरह की कर्मठ महिला में असम की अमल प्रभा दास वह नाम है जिन्होंने समाज में मिसाल बनने के साथ-साथ, समाज के लिए निरंतर कर्म करती रहीं। उम्र के लिहाज़ से देखा जाए तो वह आज सबसे बुर्जुग महिला स्वाधीनता सेनानी और सामाजिक कार्यकता हैं क्योंकि उनकी आयु 12 नवंबर 2021 को 110 साल की होगी।

अमल प्रभा दास असम में रसायन शास्त्र पढ़ने वाली पहली महिला

असम के डिब्रुगढ़ इलाके में प्रसिद्ध गांधीवादी दंफत्ति हरेकृष्ण दास और हेमप्रभा दास के घर 12 नवबंर 1911 को जन्म हुआ अमल प्रभा दास का। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी होने के कारण अमलप्रभा के पढ़ाई लिखाई में कोई रोक-टोक की स्थिति नहीं थी। पहले असम में स्थानीय स्कूल में और फिर कलकत्ता के बैथून कालेज में अमलप्रभा ने पढ़ाई की। 1929  में स्कूल के पढ़ाई खत्म करने के बाद अमल प्रभा ने रसायन शास्त्र पढ़ने में अपनी इच्छा जताई। वह असम में रसायन शास्त्र पढ़ने वाली पहली महिला थी। क्निकल पैथोलांजी में डिप्लोमा करने के बाद उन्हें ब्रिटिश सरकार के तरफ से पढ़ाने का न्यौता मिला, पर उन्होंने इंकार कर दिया।

1934 में जब महात्म गांधी असम के लगातार दौरा कर रहे थे, अमल प्रभा दास भी महात्मा गांधी के संपर्क में आई। उनका अधिक समय बा के साथ बिता जिसकी गहरी छाप उनपर पड़ी। अमल प्रभा को अपने पिता के विरासत से जो संपत्ति मिली। उन्होंने असम में एक आश्रम स्थापितकिया कस्तूरबा गांधी के नाम से और महिलाओं के सामाजिक विकास के कार्य में जुट गई। यहीं नहीं अमलप्रभा ने ग्राम सेवक विद्यालय, कस्तूरबा कल्याण केंद्र, युवा सेवक दल, गौ सेवा समिति और इस तरह के कई केंद्रों की नींव रखी।

अमल प्रभा इस बात को जान चुकी थीं कि आजाद भारत में देश के विकास के लिए समाज को नये सिरे से पुर्नपरिभाषित करने की आवश्यकता है। छूआ-छूत जैसे कई सामाजिक विकारों से घिरा समाज, कागजों पर आजाद हो सकता है पर वास्तविक आजादी के लिए भी लंबा संघर्ष करना होगा और इसके लिए उनको सेवा दलों के कार्यकत्ताओं के साथ जीवनभर अनवरत चलने वाला संघर्ष करना होगा। जाहिर है वह यह भी समझ चुकी थीं कि सदियों से स्थापित कर दी गई सामाजिक मान्यताओं को तोड़ने या उसकी नींव हिलाने के लिए अन्य सामाजिक काम करने होंगे। इसलिए उन्होंने कस्तूरबा आश्रम की नींव रखी और कई तरह के सेवा दलों का निमार्ण किया।

उनके सामाजिक कार्यों ने उनको हमेशा से सम्मान दिया

यह उनके विश्वास की ही जीत है कि उनके सामाजिक कार्यों ने उनको हमेशा से सम्मान दिया। सक्रिय राजनीति में नहीं होने के बाद भी अपने सामाजिक उद्धार के कार्यक्रमों से वह हमेशा हर सरकार के लिए प्रेरणास्त्रोत के तरह रहीं है। 1954 में अमलप्रभा को भारत सरकार ने पद्म श्री सम्मान दिया, 1981  में उनको  समाज के विकास के लिए रचनात्मक कार्यो को बढ़ावा देने के लिए पहला जानकी लाल बजाज पुरस्कार मिला। उनको पद्म विभूषण के लिए नामंकित किया गया, जिसको उन्होंने अस्वीकार कर दिया। असम सरकार के तरफ से समाज सेवा में बेहतर कार्य करने वाले लोगों को अमल प्रभा दास पुरस्कार दिया जाता है।

असम के समाज में, आज भी अमलप्रभा दास एक प्रेरणा स्त्रोत के तरह हैं, खास कर सामाजिक कार्यकत्ताओं और सेवकों के लिए। 12 नवंबर 2021 को 110 साल के होने जा रही अमल प्रभा दास अमूल्य धरोहर हैं असम के समाज के लिए जो अपनी मौजूदगी मात्र से हर दौर में समाज को नए सिरे से पुर्नपरिभाषित करने की प्रेरणा दे रही हैं।

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