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मैं अपनी बहू की पहली दीवाली यादगार बनाना चाहती हूं…

दीवाली पर लक्ष्मी को खुश करने के साथ साथ गृहलक्ष्मी को भी खुश रखना चाहिए क्योंकि जब दोनो खुश होंगी तो खुशियां खुद-ब-खुद दुगनी हो जाएगी।

दीवाली पर लक्ष्मी को खुश करने के साथ साथ गृहलक्ष्मी को भी खुश रखना चाहिए क्योंकि जब दोनो खुश होंगी तो खुशियां खुद-ब-खुद दुगनी हो जाएगी।

अचानक शाम के चार बजे दरवाजे की घंटी बजी तो रसोई में चाय बनाती रमा ने जाकर दरवाजा खोला। देखा तो सामने उसकी सास सरिता जी की सहेली सुधा आंटी दरवाजे पर खड़ी थी।  

तभी सरिता जी ने पीछे से आवाज लगाते हुए कहा, “बहू कौन आया है?”  

रमा ने आदर सम्मान के साथ सुधा आंटी को घर के अंदर बुलाया और सोफे पर बैठने के लिए कहते हुए उसने कहा, “आंटी, आप बैठिए, मैं मम्मी जी को बुला कर लाती हूं।”  कहकर रमा अंदर कमरे में अपनी सास को बुलाने चली गयी।

सुधा के आने की खबर सुनकर सरिताजी कमरे से बाहर आयी। सुधा को सामने सोफे पर बैठा देखकर वो बहुत खुश हुई। उन्होंने मजाक करते हुए कहा, “अरे, सुधा छ: महीने बाद तुझे फुर्सत मिली मुझसे मिलने की। बहू आते से मुझे भूल ही गयी तू।”  

“अरे नही सरिता, समय ही नही मिलता। अब क्या बताऊँ तुझे कि मैं किन परेशानियों से गुजर रही हूं। आज भी गुस्से में घर से निकल आयी।”  

“मतलब?” सरिताजी ने आश्चर्यचकित हो पूछा।  

“अरे, अब तुझसे क्या छुपाना? सबकी किस्मत तेरे जैसी नहीं होती जो इतनी समझदार बहू मिले। जो घर बार नाते रिश्तेदार सबकुछ अच्छे से सम्भाल ले। मेरी बहु को तो अकेले काम करने में थकान हो जाती है। दिनभर मनहूसियत छायी रहती हैं उसके चेहरे पर। महारानी को नौकर चाकर चाहिए मदद करने के लिए। कहती है अकेले मैं सब काम नही सम्भाल सकती।

दीवाली की सफाई करने के लिए कहा था। घर की आधी सफाई भी अभी नहीं हुई। लेकिन महारानी इतना थक गई कि आज सुबह उनकी आंख सात बजे खुली। सब बिना नास्ते और टिफिन के ऑफिस गए।”  तब तक रमा वहाँ चाय नास्ता लेकर आ गयी।

तब सुधा ने कहा, “सरिता मैं तो सोच रही हूं कि उसे रमा बहू से मिला दूँ। ताकि वो भी इसकी तरह हर काम समय से कर सके और मुस्कुराती रहे।”  

तब सरिता जी ने कहा, “नेक काम मे देरी किस बात की। अभी बुला देते हैं। फोन नम्बर बता… फोनकर के यहाँ आने के लिए बोल देती हूं।”  

“जाने दे सरिता, बेकार में हम सबका भी मूड खराब हो जाएगा। बैठो ना रमा बहू थोडी देर हमारे साथ। वैसे तुम दोनों कही जा रहे थे क्या?” सुधा जी ने कहा।  

“हाँ सुधा, हम दीवाली की शॉपिंग के लिए जा रहे थे। सबके लिए कपड़े और कुछ जरूरी सामान लेने।”  

सुधा जी ने कहती हैं, “क्या? दीवाली की साफ सफाई खत्म कर ली रमा बहू तुम ने।”  

तब रमा ने कहा, “हाँ आंटी जी, हमारे घर की साफ सफाई तो कल ही हो गयी। मैंने कुछ सफाईकर्मियों को बुलाकर करा ली दीवाली की साफ सफाई।”  

रमा के मुंह से सफाईकर्मी का नाम सुनकर सुधा के चाय की घूंट गले मे ही अटक गयी। उसने सरिता जी की तरफ देखते हुए कहा, “ये क्या सरिता? रमा को भी सफाईकर्मी की जरूरत पड़ती है। जबकि तुम्हारे घर मे तुम लोग तो सिर्फ चार लोग ही हो।

वैसे रमा बहू मुझे तो लगता था कि तुम्हें नए जमाने की हवा नहीं लगी। लेकिन मैं गलत थी ना जाने क्या हो गया है? आजकल की बहुओं को अपने सारे संस्कृति, संस्कार इन्हें बेकार और बोझ ही लगते हैं। हमारे जमाने में तो हम सब त्योहारों के सारे काम साफ-सफाई से लेकर खाना पीना सब कुछ अपने हाथ से करते थे। क्यों सरिता बोल मैं क्या गलत बोल रही हूं?  

ये आजकल की बहुओ को तो फिजूलखर्ची और दिखावे करने की आदत हो गयी है। नौकरी करती तो समझ भी आता कि व्यस्तता की वजह से नौकर लगे हैं। लेकिन गृहणी हो कर भी अगर घर के काम मे मन ना लगे तो क्या कहा जाए? आजकल तो बहुओं से उम्मीद रखना ही बेकार है।

दीवाली की साफ सफाई, खाना पीना, सब कुछ खुशी-खुशी करना और लक्ष्मी मां को खुश करना ये गृहणी के ही तो कर्तव्य है।”  

सुधा जी की बात सुनते रमा का मुस्कुराता चेहरा तुरंत मुरझा गया।

तब सरिताजी ने कहा, “सुधा मैं तेरी बातों से बिल्कुल सहमत नहीं हूं। पहली बात दीवाली हो या कोई और त्योहार या सामान्य दिन घर के काम काज और साफ सफाई का काम करना घर के हर सदस्य की जिम्मेदारी बनती है। ना कि सिर्फ घर की बहू या औरतो की।  

दूसरी बात हमारे जमाने मे ये सब सुविधाएं नही थी कि हम ऑनलाइन शॉपिंग कर सके या सफाईकर्मी को बुलाकर घर की साफ सफाई करा सके। अगर होती तो हम भी इसका इस्तेमाल जरूर करते।

मुझे तो खुशी होती है जब रमा अपने सारे काम घर की सफाई से लेकर बिजली के बिल तक सबकुछ बिना परेशान हुए या किसी को परेशान किए खुशी-खुशी खुद कर लेती है। मुझे ये समझ में नही आता कि हम औरतें ही औरतों को परेशानी में क्यों देखना चाहते है। अगर हमारी बहू या कोई अन्य महिला खुश है तो हमें भी खुश होना चाहिए।

सास तो माँ समान होती है। तो उसे तो सबसे पहले बच्चों की खुशी का ख्याल होना चाहिए। फिर चाहें वो आपकी अपनी बेटी-बेटा हो या बहू क्या फर्क पड़ता है। और समाज में तो हम औरतों को लक्ष्मी स्वरूप माना जाता है। इसलिए दीवाली पर लक्ष्मी को खुश करने के साथ साथ गृहलक्ष्मी को भी खुश रखना चाहिए क्योंकि जब लक्ष्मी और गृहलक्ष्मी दोनो खुश होंगी तो खुशियां खुद ब खुद दुगनी हो जाएगी। और खुशहाल घर में बरकत भी होने लगती है।  

इसलिए मेरा तो मानना है कि हमें दीवाली पर घर की साफ सफाई के साथ साथ अपने मन और बुरी सोच की भी सफाई कर देनी चाहिए। तभी असली दीवाली हम मना पाएंगे। औरत कामकाजी हो या घरेलू महिला दोनो के जीवन मे चुनौतियां होती है। हमें उनकी तुलना करने के बजाय उनके समस्यों के समाधान में सहयोग करना चाहिए। जिससे वो खुशी खुशी अपने घर परिवार में रह सके।  

मेरी मान तू भी जाकर पहले अपनी लक्ष्मी स्वरूप बहू को खुश कर और दीवाली को खुशी खुशी मना। क्योंकि ये उसकी ससुराल में पहली दीवाली है। तो उसे यादगार बना जिससे तेरे ना रहने पर या वो जब भी ससुराल की पहली दीवाली याद करें तो खुशी से मन भर आए ना कि घृणा से। समझी मेरी बात को।”

“सरिता बिल्कुल सही कहा। मैं तो भूल ही गयी थी कि मेरी बहू के प्रति भी कोई जिम्मेदारी है। तेरा लाख-लाख शुक्रिया मुझे सही राह दिखाने के लिए। मैं जा रही हूं अपनी बहू की पहली दीवाली खुशियो की दीवाली बनाने ताकि उसे ये मीठी यादें जीवन भर याद रहे।”  

इमेज सोर्स: Still from Tanishq Diwali Ad, YouTube

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