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अगर बेटी बेटा बन सकती है तो बेटा भी बेटी बन सकता है…

“जब आपका बेटा था तो आपने मुझे रसोई और घर में झोंक दिया और जब वो चला गया तो मुझसे नौकरी करने को कह रहे हैं? क्या चाहते हैं आप मेरे से?"

“जब आपका बेटा था तो आपने मुझे रसोई और घर में झोंक दिया और जब वो चला गया तो मुझसे नौकरी करने को कह रहे हैं? क्या चाहते हैं आप मेरे से?”

पति की मौत के बाद इरा ने पूरे घर की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई हुई थी। उसे ना दिन की ख़बर थी ना रात का होश। सुबह-सुबह घर के काम निपटाने के बाद वो 9 बजे ऑफिस के लिए निकल जाती थी और फिर सीधा शाम को 7 बजे आती थी। आते ही उसके लिए दस और काम और इंतज़ार कर रहे होते थे।

इरा जब शादी करके इस नए घर आई थी तभी से ज़िम्मेदारियों का बोझ उठा रही है। शादी के बाद उसने अपनी बैंक की नौकरी भी छोड़ दी क्योंकि सास-ससुर नहीं चाहते थे कि वो नौकरी करे। इरा के पति तरुण ने घरवालों को मनाने की कोशिश भी की लेकिन अपनी मां के कहने पर उसे भी इरा का घर पर रहना ही ठीक लगा। किसी ने इरा की ज़िंदगी का फैसला उससे पूछकर नहीं किया, बस कर लिया।

दो साल बाद इरा एक बेटे की मां बनी। हर कोई बेटे के आने से बहुत खुश था। इरा के माता-पिता ने उसे कभी भी किसी पर निर्भर रहना नहीं सिखाया था। इसलिए इरा का बेटा प्रतीक जब आठ साल का हो गया तो उसने फिर से नौकरी करने की सोची। इस बारे में उसने अपने पति तरुण से भी बात की लेकिन उसे इस बात में कोई रुचि नहीं थी। उसका बस इतना कहना था कि क्या करोगी नौकरी करके, दिन-रात मैं भी चप्पल घिसा रहा हूं, तुम कम से कम घर में तो रहती हो।

लेकिन ये बात इरा का दिल ही जानता था कि तरुण के घर बिताए ये दस साल उसे एक पूरी ज़िंदगी के बराबर लग रहे थे। उसने ना तो अपने किसी शौक को पूरा किया था और ना ही अपनी खुशी का ख्याल रखा। पहले तो इरा अपनी दिल का दुख मां-बाप से बांट लिया करती थी लेकिन दो साल पहले भगवान से उन्हें भी छीन लिया था। कहने को तो इरा का एक बड़ा भाई भी था लेकिन उसे ना कभी मां-बाप की फिक्र रही और ना ही बहन की। शादी करने के बाद वो पत्नी के साथ ऑस्ट्रेलिया जा चुका था। वहां ने उसने इरा को ना तो कभी कोई फोन किया ना ही हाल-चाल पूछा। भाई के ऐसे बर्ताव के बाद इरा ने इस बात को स्वीकार कर लिया था कि उसका कोई भाई है ही नहीं।

इरा को कोई अपना लगता था तो वो था बस उसका बेटा प्रतीक जिसे वो बहुत प्यार करती थी और प्रतीक भी मां के बिना नहीं रह सकता था। लेकिन एक दिन दुखों का पहाड़ टूटा और इरा के पति तरुण का एक्सीडेंट हो गया। वह तीन दिन आईसीयू में रहा, इरा ने अपनी सारी बचत और बैंक अकाउंट के पैसे उसके इलाज में दे दिए लेकिन किस्मत की मार ऐसी पड़ी कि सब कुछ चला गया, तरुण भी।

इरा हताश हो चुकी थी। उसके सास-ससुर और बेटा अब उसी के सहारे थे। उस वक्त अपने पिता की कही बात इरा को याद आई, “बेटा ज़िंदगी में भले ही सबको सहारा देना लेकिन किसी के सहारे मत रहना।”

तरुण के अंतिम संस्कार के बाद सब रिश्तेदार भी चले गए। किसी ने पीछे मुड़कर मदद के लिए पूछा तक नहीं। मुश्किल वक्त में इरा के सास-ससुर ने उसे नौकरी करने के लिए कहा तो उसे गहरा धक्का लगा। जब वो शादी के बाद नौकरी की बात भी करती थी तो वो उसे साफ मना कर देते थे लेकिन आज जब ज़िंदगी में मुसीबत आन पड़ी थी तो वे चाहते हैं कि इरा नौकरी करे। इरा ने ये बात उन्हें सुनाई तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। किसी तरह हिम्मत बांधकर इरा ने नौकरी करना शुरू कर दिया। अक्सर उसकी सास उसे कहती थी कि बहू तूने तो हमारा बेटा बनकर हमें बचा लिया।

अगले दस साल भी यूँ ही गुज़र गए। इरा ने पति के परिवार को भी संभाला और बेटे को अच्छी शिक्षा दिलाई। इरा ने अपने बेटे को सब सिखाया था चाहे वो घर का कोई भी काम हो। खाना बनाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना। प्रतीक ने सब सीख लिया था और हर बार वो अपनी मां के साथ काम में हाथ भी बंटाता था। इरा की सास और पड़ोसी उसे इस बात के लिए बहुत सुनाया करते थे कि बेटे से बर्तन धुलवाती है लेकिन वो इस पितृसत्तात्मक समाज की सच्चाई को समझ चुकी थी। अपने बेटे को उसने ऐसा बनाया जो पुरुष और महिला के काम में कोई भेदभाव नहीं करता था।

इरा की सास बार-बार उसे ताने देने लगी तो इरा ने कहा, “जब आपका बेटा था तो आपने मुझे रसोई और घर में झोंक दिया और जब वो चला गया तो मुझसे नौकरी करने को कहा। क्या चाहते हैं आप मेरे से? आपने मुझे कहा कि मैं आपकी बेटा हूं जिसने आपको संभाल लिया। जब मैं आपका बेटा बन सकती हूं तो एक बेटा अपनी मां के लिए बेटी क्यों नहीं बन सकता। अगर घर के कामों में पिस रही औरत को परिवारवालों का साथ मिल जाए तो वो भी अपने कुछ सपने और इच्छाएं पूरी कर सकती हैं और मैंने अपने बेटे को यही सिखाया है। वो सिर्फ मेरा बेटा नहीं, मेरी बेटी भी है”।

इरा की बातें सुनकर आज उसके सास-ससुर शर्मिंदा थे और उसका बेटा प्रतीक अपनी मां पर गर्व महसूस कर रहा था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रतीन एक उद्यमी बना और उसने महिला सहायता समूह की शुरुआत की। अपनी परवरिश का ये फल इरा के वर्षों की मेहनत का नतीजा था जिसने आज एक नहीं कई औरतों की भविष्य बना दिया था।

इमेज सोर्स: Still from Ghar Usse Kehte Hain/Sandhu Developers, YouTube (इमेज सिर्फ प्रतिनिधित्व उद्देश्य के लिए है )

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