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पंचायत चुनावों में बढ़ रही महिलाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण है

बिहार में जारी पंचायत चुनावों में बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी सुर्ख़ियों में बना हुआ है। यहां जानें उन्हीं की कुछ कहानियां...

बिहार में जारी पंचायत चुनावों में बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी सुर्ख़ियों में बना हुआ है। यहां जानें उन्हीं की कुछ कहानियां…

बिहार में जारी पंचायत चुनाव में मुखिया और सरपंच सहित विभिन्न पदों पर महिला आरक्षित सीटों से अलग गैर आरक्षित सीटों पर भी बड़ी संख्या में महिला उम्मीदवारों का चुनाव लड़ना और जीतना सुर्ख़ियों में बना हुआ है।

बिहार में इस बार कुल 11 चरणों में पंचायत चुनाव के लिए मतदान हो रहा है। पहले चरण का मतदान 24 सितंबर को हो चुका है जबकि 11वें और अंतिम चरण का मतदान 12 दिसंबर को होगा। ख़ास बात यह है कि इस बार के पंचायत चुनाव में न केवल वोट देने का प्रतिशत बढ़ा है बल्कि चुनाव जीतने वाली महिलाओं का प्रतिशत भी बढ़ा है।

दरअसल आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं क्योंकि उसने बंदिशों को तोड़ना सीख लिया है। हर मिथक और आशंकाओं को गलत साबित कर दिया है। महिला है तो कमज़ोर होगी, जैसी संकुचित सोंच वालों को अपनी सलाहियतों से जवाब दे दिया है।

पंचायत चुनावों में महिलाओं की भागीदारी

अब महिलाएं न केवल देश की रक्षा कर रहीं हैं बल्कि राजनीति में भी अपने परचम बुलंद कर रही हैं, जिसमें समय-समय पर मिलने वाले हौसले ने भी उनकी हिम्मत को बुलंदी प्रदान की है। बिहार सरकार ने पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया है ताकि महिलाएं राजनीति के क्षेत्र में भी अपना झंडा लहरा सकें और महिलाएं भी इस अवसर का पूरा लाभ उठा रही हैं।

विभिन्न ग्रामीण इलाकों से महिलाएं प्रत्याशी के रूप में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर रही हैं, जिससे गांव-कस्बों में बदलाव की बयार बहने लगी है। अच्छी बात यह है कि इस बार के पंचायत चुनाव में दिल्ली के प्रतिष्ठित मिरांडा हाउस जैसे कॉलेज से पढ़ी और मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर चुकी महिलाएं भी उम्मीदवार हैं।

मुखिया पद की उम्मीदवार प्रियंका की कहानी

बिहार के सीतामढ़ी जिले के सोनबरसा प्रखंड स्थित बिशनपुर गोनाही पंचायत से ताल्लुक रखने वाली और मुखिया पद की उम्मीदवार प्रियंका की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। प्रियंका के अनुसार वह एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखती हैं, जहां लड़कियों के लिए पढ़ना बहुत मुश्किल होता है। मगर पढ़ने की ललक होने के कारण ही उन्होंने आसपास से ट्यूशन लेकर अक्षर ज्ञान सीखा था।

घरवालों को उसकी पढ़ाई में ज्यादा पैसे खर्च नहीं करने थे क्योंकि यहां लड़कियों के जन्म से ही दहेज के लिए पैसे जुटाने की प्रथा है। ऐसे में ट्युशन की फीस भरना ही बहुत बड़ी बात थी। जब वे 8वीं में पहुंची, उस समय ही उसकी शादी की बात चलने लगी, मगर वह शादी नहीं करना चाहती थीं।


प्रियंका के अनुसार उसने यह बात दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रहे अपने बड़े भाई विशाल को बताई, जिन्होंने न केवल उसकी शादी रुकवाई बल्कि उनके सहयोग से ही उसकी 10वीं की पढ़ाई पूरी हो सकी।

प्रियंका अपने परिवार की पहली लड़की थी, जिसने 10वीं की परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से पास किया था। इसके बाद वह अपने भाई के साथ साल 2013 में दिल्ली आ गई और वहीं से 12वीं पास किया। जिसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उसका एडमिशन मिरांडा हाउस में हो गया। साक्षरता के क्षेत्र में पिछड़े एक गांव से निकल कर देश की राजधानी के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में एडमिशन प्राप्त कर लेना प्रियंका के हौसले और जज़्बे को दर्शाता है।

यहां से उसने दर्शनशास्त्र में अपनी पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के दौरान ही उसे देश की पहली एमबीए डिग्री प्राप्त सरपंच छवि राजावत के बारे में पता चला और यहीं से उसे मुखिया बनने की प्रेरणा मिली।

प्रियंका को साल 2017 में यूथ अलायन्स की ओर से ग्राम्य मंथन कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर मिला। वहीं साल 2018 में कानपुर के गंगा दिन निबादा, खड़गपुर, बड़ी पलिया और छोटी पलिया गांव का दायित्व सौंपा गया। जहां उन्होंने शाम की पाठशाला नाम की मुहिम की शुरुआत की और अन्य विकास के कार्य किए।

इन सब कामों से प्रेरणा पाकर वह अप्रैल 2020 में अपने गांव लौट आई और जागरूकता का काम करना शुरू कर दिया। फिलहाल उसकी टीम में चार लोग हैं, जो ग्राम-चेतना-आंदोलन के तहत चेतना चौपाल कार्यक्रम चला रहे हैं। जिसमें गांव-गांव घूमकर लोगों को विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर जागरूक करने का काम किया जाता है।

इस बार के पंचायत चुनाव में वह मुखिया पद की उम्मीदवार है। प्रियंका के अनुसार एक महिला को राजनीति में आने के लिए पुरुषों की अपेक्षा अधिक संघर्ष करना पड़ता है क्योंकि समाज महिला को केवल रोटी बनाते हुए देखना चाहता है और यह स्थिति ग्रामीण इलाकों में ज्यादा है।

मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर चुकी डॉली भी पंचायत चुनाव लड़ रही हैं

प्रियंका की ही तरह उच्च शिक्षा प्राप्त कर 31 वर्षीय डॉली भी पंचायत चुनाव लड़ रही हैं। वह बिहार के गया स्थित मानपुर प्रखंड के शादीपुर पंचायत से सरपंच पद की उम्मीदवार हैं। उन्होंने सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, पुणे से एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद 2018 तक विभिन्न कॉर्पोरेट सेक्टर, मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी की। लेकिन अपने गांव लौटने की इच्छा के आगे उन्होंने अपने सेटेल करियर को छोड़ दिया।

डॉली के अनुसार वे 12वीं पास करने के बाद से ही काम कर रहीं हैं। यूं कहें तो उन्होंने साल 2008 से ही काम करना शुरू कर दिया था। इसी बीच वर्ष 2014 में उनकी शादी हो गई और आज उनकी चार वर्ष की एक बेटी भी है।

डॉली ने बताया कि उनकी सास 8 सालों तक शादीपुर पंचायत में सरपंच के पद पर आसीन थीं, लेकिन साल 2017 के नवंबर में कार्यकाल के दौरान ही उनका देहांत हो गया, जिसके बाद साल 2018 में उन्हें सरपंच पद के लिए चुनाव लड़ना पड़ा क्योंकि उनके स्थान पर किसी शिक्षित और दायित्व निभाने वाले ही शख्स की जरूरत थी। उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत गईं। उसके बाद से वे अपने गांव के विकास के लिए काम कर रहीं हैं और इस साल भी ग्राम पंचायत शादीपुर से चुनाव लड़ रहीं हैं।


अपनी कार्यप्रणाली के बारे में डॉली कहती हैं कि उनके कार्यकाल में विकास के कई काम हुए। उनकी कचहरी बिहार की सबसे पहली डिजिटलाइज्ड ग्राम कचहरी है, जिसे पूरे प्रखंड में सर्वश्रेष्ठ ग्राम कचहरी का दर्जा दिया गया है।

वहीं चुनौतियों के बारे में डॉली कहती हैं कि गांव में सबसे बड़ी चुनौती घरेलू हिंसा की है, जिस पर लगाम लगाने की आवश्यकता है क्योंकि महिलाएं शिकायत लेकर तो आती हैं मगर कार्यवाही होने से डरती है।

वहीं कुछ सकारात्मक चीजें भी हुई हैं। यहां महिलाएं कृषि के कामों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं, जिसमें मूंग, धान प्रमुख रूप से शामिल हैं। डॉली अपने गांव में कुटीर उद्योग की भी स्थापना करना चाहती हैं ताकि अधिक से अधिक महिलाओं को काम मिल सके और वह आर्थिक रूप से मजबूत हो सकें।

बहरहाल पंचायत जैसे छोटे स्तर के चुनाव में भी महिलाओं की अधिक से अधिक भागीदारी इस बात को साबित करता है कि महिलाएं अब अपने हक के प्रति जागरूक हो रही हैं। वह अपने अधिकारों को न केवल पहचान रही हैं बल्कि उसका उचित मंच पर इस्तेमाल भी कर रही हैं। पंचायत चुनावों में महिलाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण है।

जिस प्रकार से Covid-19 के दौर में कोरोना वारियर्स और फ्रंटलाइन वर्कर्स के रूप में महिलाओं ने अपना अतुलनीय योगदान दिया है, यह साबित करता है कि वह किसी भी मुश्किल का सामना करने की क्षमता रखती हैं। ऐसे में पंचायत में महिलाओं का अधिक से अधिक चुन कर आना न केवल गांव बल्कि देश के विकास में भी मील का पत्थर साबित होगा।

यह आलेख मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार से सौम्या ज्योत्स्ना ने चरखा फीचर के लिए लिखा है।

इमेज सोर्स: Provided by author

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