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ठेकुआ प्रसाद के बिना छठ का पर्व अधूरा है। ठेकुआ प्रसाद बहुत स्वादिष्ट और बनाने में बहुत आसान होता है। तो पेश है ठेकुआ बनाने की विधि इस महापर्व पर!
माना जाता है कि ठेकुआ प्रसाद के बिना छठ का पर्व अधूरा है। इसे लोग प्रसाद के रूप में बनाते हैं। ये बहुत ही स्वादिष्ट और बनाने में बहुत आसान होता है। तो पेश है ठेकुआ बनाने की विधि।
छठ पूजा आस्था और परम्परा का पर्व है। छठ पूजा का पर्व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। छठी का त्यौहार चार दिनों का चलने वाला पर्व है और इस पूजा में विभिन्न प्रकार के व्रत और पूजा पाठ किए जाते हैं। यह पर्व परिवार के सुख समृद्धि तथा मनोवांछित फलों की प्राप्ति के लिए बनाया जाता है।
छठ पूजा का त्यौहार मुख्य रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश में एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। वैदिक काल से मनाया जाने वाला पर्व है। त्यौहार को पर्व के रूप में मनाने के लिए कई दिनों पहले से तैयारी की जाती है।
छठ का व्रत एक कठिन तपस्या है। अपने परिवार के सुख समृद्धि के लिए इस व्रत को ज्यादातर महिलाएं रखती हैं। इस पर्व को पुरुष लोग भी श्रद्धा, भक्ति, और परंपरा के साथ मनाते हैं। छठ पर्व में कोई लिंग भेद नहीं होता इसको बच्चा, बूढ़ा, और जवान भी मनाते हैं।
यह चार दिनों तक चलने वाला पर्व है। छठ को स्त्री और पुरुष दोनों मिलकर इस उत्सव को पर्व के रूप में मनाते हैं। इस व्रत को धारण करने के लिए गंगा नदी के पवित्र जल में स्नान करना, निर्जल व्रत रखना और लंबे समय तक पानी में खड़ा रहना सूर्य को जल चढ़ाना शामिल है। छठ एक ऐसा व्रत है जिसमें डूबते और उगते हुए दोनों ही सूर्य की पूजा की जाती है। छठ पूजा में शाम के समय भगवान सूर्य की पहली पत्नी प्रत्यूषा और सुबह के समय दूसरी पत्नी उषा के सम्मान देने के लिए जल चढ़ाया जाता है।
छठ पूजा के पहले दिन की शुरुआत नहाया खाया से करते हैं, इस दिन घर की साफ सफाई की जाती है। व्रत धारी महिलाएं गंगा में स्नान करके भोजन बनाती हैं। छठ के दिन चने की दाल, लौकी की सब्जी, और रोटी बनती है। छठ के इस चार दिनों के पर्व में व्रत धारी महिलाएं पहले भोजन करती हैं, इसके बाद पूरा परिवार भोजन प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है। नहाया-खाया के बाद नमक का प्रयोग नहीं किया जाता है।
दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है और महिलाएं निर्जला व्रत रखती है। संध्या के समय महिलाएं नदी के किनारे जाकर पूजा करती है और डूबते हुई सूर्य को जल चढ़ाते हैं। सूर्य को जल देने के बाद व्रत धारी महिलाएं पूजन करती है। छठ के दिन गुड़ की खीर, चावल का पीठा, और घी चुपड़ी रोटी बनती है।
तीसरा दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है, इस दिन निर्जला व्रत महिलाएं रखती है। शाम के समय महिलाएं अपने सामर्थ्य के अनुसार 7, 11, 21, या 51 प्रकार के फल और सब्जियां और विभिन्न प्रकार के पकवान बांस की डलिया में रखती हैं। व्रत धारी महिलाएं अपने पति या पुत्र के साथ तालाब के किनारे छठ माता के गीत गाते हुए जाती हैं। नदी के किनारे पूजा करते हैं और डूबते हुए सूरज को कच्चा दूध चढ़ाते हैं। प्रसाद के रूप में इस दिन ठेकुआ बनता है।
चौथे दिन व्रत धारी महिलाएं सूर्य उगने से पहले उठ जाती हैं। नदी या तालाब के बीच में जाकर उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाते हैं और छठ मैया की पूजा करती हैं। छठ पूजा के बाद व्रत धारी महिलाएं कच्चे दूध का शरबत और ठेकुआ का प्रसाद खा कर अपना व्रत पूरा करती है। इस दिन को “पारण” कहा जाता है।
छठ पूजा के पर्व में सबसे ज्यादा महिलाओं की ही ज़्यादा भागीदारी देखने को मिलती है। ऐसा नहीं है कि पुरुष अपनी भूमिका नहीं निभाते। पुरुष पूजा का सारा सामान इकट्ठा करते हैं और व्रत भी करते हैं। छठ एक कठोर व्रत है। जिसमें 36 घंटे निर्जल उपवास करना रखना पड़ता है।
अब व्रत त्यौहार अपनी मर्ज़ी से हों तो ही अच्छा लगते हैं। कई महिलाएं दबाव के कारण इस व्रत को रख तो लेती तो हैं लेकिन अंदर से उन्हें बोझ महसूस होता है, जिसे वह कह नहीं पाती। किसी भी पर्व त्यौहार या परंपरा को थोपा जाने लगे या भावनात्मक रूप से जोड़कर देखा जाने लगता है तब यह बोझ लगने लगता है। किसी भी पर्व का उद्देश तभी पूरा होता है जब उसे करने वाले लोग स्वेच्छा से करे।
तो ये थी छठ पूजा के विधि-विधान की जानकारी। अब बात करते हैं ठेकुआ प्रसाद की। माना जाता है कि ठेकुआ प्रसाद के बिना छठ का पर्व अधूरा है। इसे लोग मुख्यत: प्रसाद के रूप में बनाते हैं लेकिन ये इतना स्वादिष्ट और बनाने में इतना आसान होता है कि आप चाहे व्रत करे न करें इसे बना अवश्य सकते हैं।
तो आइये बनाते हैं ठेकुआ!
ठेकुआ एक मीठा और खस्ता पकवान है। छठ के त्यौहार की कल्पना ठेकुआ के बिना नहीं हो सकती। छठ पूजा पर खासतौर पर ठेकुआ का प्रसाद बनाते हैं इस प्रसाद के बिना छठ की पूजा अधूरी मानी जाती है। तो आइए इस छठ के पर्व पर ठेकुआ का प्रसाद बनाते हैं
छठ पूजा के लिए ठेकुआ का प्रसाद बनकर तैयार है।
छठ पूजा की सबसे महत्वपूर्ण बात है उसकी सादगी, पवित्रता, संस्कृति और आस्था। तो इसे साफ़ मन से रखें और जो ना रखना चाहे उससे खफा हो कर त्यौहार का मज़ा किरकिरा न करें। इन परम्पराओं का उद्देश्य आपसी प्यार और मेलजोल बढ़ाना भी होता है। तो बस भाव शुद्ध रखें और अपनी-अपनी आस्था को ख़ुशी से खुद निभाएं। कोई शामिल हो तो अच्छा, न हो तो भी अच्छा!
छठ महापर्व की आप सभी को अनेकों शुभकामनाएं!
इमेज सोर्स: Getty Images via Canva Pro
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