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उन दोनों के कुछ समझ नहीं आ रहा था ये क्या हो रहा है पर एक अजीब सा डर, अजीब सी घुटन उन्हें महसूस हो रही थी और कुछ था जो उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था।
मीरा और सिया का स्कूल उनके घर से कुछ दूरी पर था, तो वे दोनों या तो स्कूल थोड़ा जल्दी पहुँच जाते थे या थोड़ी देर से पहुँचते थे।
उस दिन वो दोनों स्कूल जल्दी पहुँच गए थे और वहाँ एक वर्कर के अलावा और कोई नहीं था। उन्होंने अपना बस्ता क्लास में रखा और दोनों जा कर मैदान में लगे झूले पर झूलने लगे। दोनों के झूले हवाओं से बातें कर रहे थे। उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उनके पर निकल आए हो।
इतने में वो वर्कर वहाँ आता है और कहता है, “अरे! ये देखों तुम दोनों में कपड़े गंदे कर लिए! आज व्हाइट ड्रेस है। देखो, जूते भी गंदे हो गए हैं। रोको! रोको! झूला रोको! डाँट पड़ेगी दोनों की देखो! जूते और कपड़े गंदे कर लिए? लाओ मैं साफ़ कर देता हूँ…”
मीरा कहती है, “नहीं! भइया सब साफ़ है, हम ख़ुद सब कर लेंगे।”
पर उसने ये सब अनसुना कर दिया और आकर झूला रोका और उनके जूते साफ़ करने लगा। पर वो सिर्फ जूते साफ़ नहीं कर रहा था उनके पैरों को अपने हाथों से कसकर दबाए जा रहा था।
उन दोनों के कुछ समझ नहीं आ रहा था ये क्या हो रहा है पर एक अजीब सा डर, अजीब सी घुटन उन्हें महसूस हो रही थी और कुछ था जो उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था। वे दोनों भागकर क्लास में चले जाते हैं और उससे कहते हैं, “हम क्लास में जा रहे हैं और हमारे जूते साफ़ हैं। हमारी डाँट नहीं पड़ेगी। आप अपना काम करो।”
पर जैसे ही मीरा और सिया क्लास में जाते हैं वो भी उनके पीछे आ जाता है और मीरा का हाथ पकड़कर फिर से उसके जूते और पैरों को छूने लगता है। मीरा कसकर चिल्लाती है फिर वे दोनों उसके कसकर चिपट जाते हैं और कभी उसके बाल खींचते हैं तो कभी काट लेते हैं।
इस हाथापाई में वो भी मीरा और सिया के ज़ोरदार थप्पड़ मरता है पर वे दोनों लगातार उसे मारते रहते हैं और फिर मैम आ जातीं हैं।
“मैडम, ये बच्चे बहुत शैतान हैं दोनो। हमनें इतनी बार मना किया कि बाहर झूला मत झूलो, अंदर जाकर खेलो, पर मान ही नहीं रहे थे। तो हमने डांट दिया और इन दोनों ने हमे हाँथ में काट लिया…!ये देखिए आप…”
उसने यही कहा था उस दिन मैम को और मैम ने मीरा और सिया को एक ज़ोरदार फटकार लगाई और कहा, “बहुत शैतान हो तुम दोनों। एक तो जल्दी आ जाते हो फिर शैतानियां करते हो? चलो सीधा प्रिंसिपल ऑफिस, वहीं शिकायत करेगें तुम दोनों की।”
और वे दोनों चुपचाप आँखों में आँसू लिए एक दूसरे का हाथ जितना कस के हो सकता था उतना कस के पकड़े हुए क्लास से बाहर निकले और मैम के पीछे-पीछे चल दिए प्रिंसिपल ऑफिस।
उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उनके साथ क्या हो रहा है। बस रोना आ रहा था। उन्हें लग रहा था यहाँ से घर भाग जाएं और अगर घर ना भाग पाएं तो एक दूसरे के गले लगकर ही रो लें। पर जैसे ही वे एक दूसरे की तरफ देखते वैसे ही सारा डर गुम हो जाता और वे आँखों ही आँखों में एक दूसरे को बता देते की हम साथ हैं।
उन्हें नहीं पता था कि उनके साथ क्या हुआ और क्या हो रहा था। वे बस इतना जानते थे कि कुछ अजीब हुआ है उनके साथ, जो नहीं होना चाहिए। और अब अगर वो स्कूल जाएंगे तो वो फिर से उन्हें मारेगा और फिर से उनके पैरों को छुएगा और मैम से झूठ कह देगा। फिर मैम उन दोनों को खूब डाँटेगी…
इस डर से वे दोनों ही दो दिन तक स्कूल नहीं गए। जब घर पर कोई पूछता तो कोई बहाना बना देते छोटे बच्चे ही थे तो घरवाले भी बहानों को बहाना समझ कर छोड़ देते थे। कौन सी कॉलेज की पढ़ाई थी।
वे ख़ुद से कुछ बच्चों से पूछते नहीं थे और बताने की उनमें हिम्म्त नहीं थी।
तीसरे दिन स्कूल से दोनो के घर पर कॉल आया और मैम ने पूछा, “उस दिन डाँट पड़ने के बाद से बच्चे स्कूल क्यों नहीं आये?”
और उन्होंने दोंनो के पेरेंट्स को बताया की मीरा और सिया ने उस वर्कर को काट लिया।
फिर दोनों से बार-बार पूछा गया कि उन्होंने उस वर्कर को क्यों काटा? तब बहुत देर बाद, बहुत मुश्किल से वे दोनों अपनी बात अपने माँ-बाप को बता पाए।
आगे शिकायत हुयी, उस वर्कर को पुलिस ने पकड़ा, स्कूल में पुलिस आयी… और भी बहुत कुछ हुआ।
पर बात ये है कि कितना ज़रूरी हो गया है आजकल बच्चों से इस बारे में बात करना। उन्हें बताना, उनका विश्वास जीत पाना कि वे अपनी कोई भी बात अपने माँ-बाप से तो बिना डरे कह सकें। उनसे बस बातें कर पाना…
इमेज सोर्स: Why Don’t You Listen To Me – A Film on Child Sexual Abuse/Save The Children Of India, YouTube
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