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जब पूजा की बारी आई, रंजना ने एक गिफ्ट पैक अपनी तरफ से कुहू को दिया और कहा, "तुम मेरी घर की लक्ष्मी हो! और मैं भी तुम्हारी माँ जैसी हूँ।"
जब पूजा की बारी आई, रंजना ने एक गिफ्ट पैक अपनी तरफ से कुहू को दिया और कहा, “तुम मेरी घर की लक्ष्मी हो! और मैं भी तुम्हारी माँ जैसी हूँ।”
कुहू की पहली दिवाली ससुराल में थी। उससे ज्यादा नॉलेज नहीं थी कि ससुराल में दिवाली में क्या-क्या करते हैं। सास ने दो दिन पहले ही कह दिया था कि दिवाली को दिन में उपवास करते हैं और क्यूंकि पहली दिवाली थी, तो शाम को अच्छे से श्रंगार कर के तैयार भी होना है। मेहमान आने थे। कुहू ने हामी भर दी।
एक ननद उसकी भी शादी हो चुकी थी। सास रंजना ने अपनी बेटी और उसके ससुराल वालों के लिए दिवाली की साड़ी, गहने और श्रृंगार का सामान खरीदा और कुहू को दिखाया। कुहू को सारा सामान बहुत अच्छा लगा। उसने अपनी सास की पैकिंग कराने में पूरी मदद की।
कुहू के मायके में मां अकेली थी। भाभी और भैया नौकरी के कारण दूसरे शहर में रहते थे। कुहू को मन ही मन लग रहा था कि मां से कैसे कहें कि आप भी सबके लिए दिवाली का सामान भिजवा दीजिए। कुहू ने कुछ नहीं कहा और मन ही मन टेंशन करती रही।
जिस दिन दिवाली थी, उसने अपने सौराल के रीति-रिवाज़ के अनुसार सारा दिन उपवास रखा और सास के साथ पूजा की तैयारी की और शाम के खाने और त्यौहार की भी तैयारी की।
कुहू के मन में था कि मेरे मायके से कुछ नहीं आ रहा है। कुहू के मायके में दिवाली का व्रत कोई नहीं करता था। उसकी भाभी भी नहीं करती थी। उसने कभी सुना भी नहीं था की दिवाली का उपवास भी होता है। लेकिन हर घर के अलग नियम!
उसने अपने मन में सोच लिया था यदि सास कहेंगी तो मैं कुछ सामान नया रखा है वह मां को दिखा दूंगी।
लेकिन कुहू की सास बहुत समझदार थी। रंजना ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष देखे थे। सास रंजना जब शादी हो कर आई थी, उसके घर में भी कोई व्रत उपवास नहीं करता था। दादी सास और नानी सास थी उनकी सेवा ही में ही पूरा वक्त गुजर जाता था।
सास को बहू के बारे में सारी बातें पता थी इसलिए उन्होंने उसे कुछ नहीं कहा। जब पूजा की बारी आई, रंजना ने एक गिफ्ट पैक अपनी तरफ से कुहू को दिया और कहा, “तुम मेरी घर की लक्ष्मी हो! अगर तुम्हारी मां अकेली है और मैं भी तुम्हारी माँ जैसी हूँ इसलिए मैंने तुम्हारे लिए ये समान रेडी किया है। हैप्पी दिवाली बहू!”
“कुहू, मैं भी तुम्हारी मां जैसी हूं!” कुहू अपने मन में कुछ और ही सोच बैठी थी उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि आज मेरे मायके से कुछ नहीं आया और सासु माँ ने मेरा साथ दिया। कुहू के लगातार आंसू गिरने लगे और मां रंजना से गले लिपट कर रोने लगी।
“माँ, मैं तो बहुत डर गयी थी कि आप कहेंगी मायके से सामन नहीं आया।”
रंजना का स्वभाव सरल और सौम्य था कभी कुहू को रोक टोक नहीं करती थी। ऐसी सास के होने से घर में सुख शांन्ति बानी रही।
दूसरे दिन जब अपनी मां को फोन लगाकर सारी बातें बताएं तो माँ ने कहा, “कुहू, तू एक बार हमें कहती तो! लेकिन तेरी सास की अच्छाई हम कभी नहीं भूलेंगे। उन्होंने तुम्हें कुछ ना कहकर हमारे घर की लाज रख दी। भगवान जैसी मेरी बेटी को सास मां के रूप में मिली है वैसे ही हर घर की बेटी को सास मां जैसी मिली।”
इमेज सोर्स: Still from short film The Unknown Number, FNP Media/YouTube
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