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घरेलू हिंसा को सहना उतना ही गलत है जितना उसको करना…

घरेलू हिंसा सहना मतलब शारीरिक और मानसिक शोषण सहना। ज़्यादातर महिलाएं इस कदर टूट जाती हैं कि अपने आपको ही मुजरिम समझने लगती हैं। 

घरेलू हिंसा सहना मतलब शारीरिक और मानसिक शोषण सहना। ज़्यादातर महिलाएं इस कदर टूट जाती हैं कि अपने आपको ही मुजरिम समझने लगती हैं। 

एक तरफ जहाँ देश को आज़ाद हुए बरसों हो गए हैं वहीं दूसरी तरफ आज भी कई महिलाएं अन्याय और हिंसा का शिकार हो रही हैं। आये दिन हमें महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के तहत मारने पीटने की घटनाएं सुनने को मिलती ही रहती हैं कि उस आदमी ने अपनी बीवी को मारा या उसके ससुराल वालों ने अपनी बहु को परेशान किया।

किसी व्यक्ति का शारीरिक या मानसिक रूप से शोषण करना घरेलू हिंसा कहलाता है। हमारे देश में हर साल न जाने कितनी महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार बनती हैं, जिसके परिणामस्वरूप, दैनिक आधार पर महिलाओं की बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं। घरेलू हिंसा के कई मामले हमारे सामने आते हैं और कई मामले आज भी घर की चार दीवारों के पीछे बंद हैं। मेरे नज़रो में केवल घरेलू हिंसा करने वाला ही अपराधी नहीं हैं बल्कि इसको चुप चाप सहने वाला भी अपराधी ही है।

जी हाँ, घरेलू हिंसा सहना भी गलत है!

घरेलू हिंसा सहना क्यों ‘चलता’ है?

हमारे देश में जहाँ महिलाओं को देवी का स्वरूप मानकर पूजा जाता है, वहीं दूसरी तरफ न जाने क्यों इनके प्रति रोजाना घरेलू हिंसा के अपराध बढ़ रहे हैं। मुख्य तौर पर समाज में घरेलू हिंसा की शुरुआत महिलाओं और पुरुषों के भेदभाव के सोच से पनपती है।

महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा बढ़ने का एक बड़ा कारण शादी में दिया जानेवाला दहेज भी है। अक्सर आपने देखा होगा की दहेज़ के कारण लोग अपने घरों की महिलाओं पर अत्याचार करते हैं। सरकार द्वारा इतने नियम कानून बनाने के बावजूद आज भी यह प्रथा पूरी तरह से समाज से खत्म नहीं हो पाई हैं। उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति अक्सर ये भूल जाते हैं कि अगर आज वो इस कुप्रथा को बढ़ावा देंगे तो भविष्य में उनकी बेटियों के साथ भी यही होगा। जो व्यवहार आप अपने बेटी बहनों के साथ बर्दास्त नहीं कर सकते वो आप दूसरे की बेटी बहन के साथ कैसे कर सकते हैं?

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की चौकाने वाली रिपोर्ट

घरेलू हिंसा में महिला का शारीरिक और मानसिक रूप से शोषण किया जाता है। वो इस कदर टूट जाती हैं की अपने आपको ही मुजरिम समझने लगती हैं, अपने अस्तित्व पर सवाल उठाती हैं। घरेलू हिंसा को बढ़ावा देने में  हम दोषी हैं क्यूंकि हम अपनी बेटियों को इसके खिलाफ नहीं बल्कि ‘अपनी किस्मत यही है’ मान कर अपने आपको इसी माहौल में ढालने का पाठ पढ़ाते हैं।

बड़ी बात यह भी है कि घरेलू हिंसा में पिटाई को बहुत सी महिलाओं ने सहज ही स्वीकार कर लिया है। उन्होंने घरेलू हिंसा को अपने ज़िन्दगी का हिस्सा मान लिया है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-2016) के मुताबिक पंजाब में १९४८४ महिलाओं में से ३३ प्रतिशत महिलाएं अपने पति द्वारा मार पिट को सही मानती है जबकि २१ प्रतिशत महिलाएं उन हालात ने मार पिट को जायस मानती है जब वे अपनी सास के साथ सही व्यवहार नहीं करती। १५ प्रतिशत महिलाये अपने बच्चों की देखभाल न करने पर मार खाना सही मानती हैं।

आप ये सोचिये यदि आप अपने लिए आवाज़ नहीं उठायेंगी तो आपके लिए और कौन आवाज़ उठाएगा। लोग भी उन्हीं की मदद करते हैं जो अपनी मदद खुद करना चाहता हैं। ऐसे शोषण सहने उन लोगों को भी बढ़ावा देते हैं जो शोषण करते हैं। लेकिन हम आवाज़ उठाने वालों को चुप करा देते हैं।

आज आप इसकी शिकार बनी हैं और हो सकता हैं कल आपकी बेटी इसकी शिकार बने। यदि घरेलू हिंसा को रोकना हैं तो सबसे पहले आपको इसके खिलाफ अपनी आवाज़ उठानी पड़ेगी उसके बाद ही कोई आपकी मदद कर पायेगा।

घरेलू हिंसा सहना केवल महिलाओं तक सीमित नहीं है

आज के समय में हमारे देश के अंदर हर पाँच मिनट में एक घरेलू हिंसा के खिलाफ शिकायत दर्ज होती हैं। ये तो केवल दर्ज होने वाले मामले का अकड़ा है, और न दर्ज होने वाले मामले इससे कई गुना हैं।

संयुक्‍त राष्‍ट्र जनसंख्‍या के रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में हर साल सभी विवाहित महिलाओ में से दो-तिहाई महिलाएं घरेलू हिंसा को सहने के लिए मजबूर हैं। महिलाओ के साथ-साथ इसका शिकार बच्चे और वृद्ध भी बनते है। अक्सर लोग अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चे के साथ करते उनको मारते है जिससे उनका शारीरिक और मानसिक रूप से शोषण होता है।

अगर बात करते वृद्ध लोगों की तो अक्सर कई ऐसे मामले सामने आते है जहाँ बेटे और बहु मिलके अपने बुड्ढे माता-पिता का शोषण करते हैं, उनके मानसिक रूप से इतना तोड़ देते हैं कि वे अपने आपको अकेला मान कर अपने आसपास के किसी व्यक्ति पर भरोसा नहीं कर पाते जिसके वजह से कई बार पीड़ित अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं इससे कई बार वह आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

घरेलू हिंसा के खिलाफ क्या आप अपनी आवाज़ उठायेंगे?

हम अक्सर घरेलू हिंसा के बारे में सुनते है या पढ़ते है, मैं आपसे एक सवाल करना चाहती हूँ कि यदि आप अपने आस पास कुछ ऐसी घटना देखंगे तो क्या करेंगे? उनको रोकने की लिए कुछ करेंगे या बस चुपचाप देखते रहेंगे?

आजकल घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी का कुछ हद्द तक कारण हम और आप भी हो सकते हैं क्यूँकि आजकल लोग केवल अपने आप से मतलब रखते हैं। वे किसी की ज़िन्दगी में या किसी से झगड़ा मोल नहीं लेना चाहते। हमारे ऐसे ही सोच से आज हिंसा करने वाले लोगो का मनोबल बढ़ता है।

कुदरत ने स्त्री पुरुष को समान बनाया है। हमे पुरुष को ताक़तवर और स्त्री को कमजोर समझने की भूल नहीं करनी चाहिये। जिस दिन हमारे समाज से दहेज़ की प्रथा निकल जाए, अपने लड़कों को लड़की की तुलना में ऊँचा समझने की मानसिकता निकल जाए उस दिन यक़ीनन हमारे समाज में घरेलू हिंसा को कहीं न कहीं पूर्ण विराम में मिलेगा।

ज़रूरत है तो केवल अपने सोच को बदलने की, और एक ऐसे नज़रिये से देखने की जहाँ सभी महिलाएं, पुरुष, बच्चे, वृद्ध सकारात्मकता के साथ मिल जुल कर रहें।

इमेज सोर्स: Still from Namard, Gharelu Hinsa Ek Apradh/Shubham Tiwary Films/YouTube 

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