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वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में भारत की पहली महिला वनस्पति वैज्ञानिक जानकी अम्मल के ही कारण भारतीय गन्नों को मिठास मिली।
पूरी दुनिया में विज्ञान भौतिकी, रसायन और जीवविज्ञान में बंटा हुआ है। जिसमें जीवविज्ञान दो शाखाओं जन्तु और वनस्पति विज्ञान में बंटा हुआ है। कहते है विज्ञान की हर शाखा एक-दूसरे से मिली हुई है। यह अलग होकर भी एक-दूसरे से अलग हो ही नहीं सकती है।
वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में जानकी अम्माल वो नाम है जिन्होंने न केवल भारत में पहली महिला वनस्पति वैज्ञानिक के रूप जानते हैं बल्कि उनके ही कारण भारतीय गन्नों को मिठास मिली। भारतीय जीवन जो मिठास के लिए गुड़ पर निर्भर था, उसमें चीनी की मिठास घोलने में जानकी अम्मल का शोध, मिल का पत्थर साबित हुआ। यहीं नहीं विज्ञान के क्षेत्र में जानकी अम्माल साइटोजेनेटिक्स और फाइटर जॉग्रफी के क्षेत्र में उनका योगदान-अभूत पूर्व रहा है।
4 नवबंर 1857 को केरल के तेल्लीचेरी में मध्यवर्गीय परिवा में जानकी अम्माल का जन्म हुआ। पिता उपन्यायाधीश के पद पर कार्यरत थे और परिवार में छह भाई और पांच बहने भी थी। मध्यवर्गीय परिवार और उदारवादी परिवार के महौल में सभी को खेलने-कूदने और पढ़ने लिखने मिला, जो उस दौर के लिए बहुत बड़ी बात थी।
उस दौर में जन लड़कियों को गृहकार्य और लड़को को समाजिक जिम्मेदारी निभाने की सीख बचपन से ही दी जाती थी, वहां परिवार में लड़के-लड़कियों के लिए समान व्यवहार विकसित करना, किसी चुनौति से कम नहीं रहा होगा। खासकर तब जब उस दौर में लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने के लिए सैकड़ों पूर्वाग्रह समाज के ऊपर हावी थे।
जिस समय जानकी उच्च शिक्षा के लिए तैयार हो रही थी, उस वक्त तक दक्षिण भारत में लड़कियों के शिक्षा के लिए सामाजिक महौल तैयार हो चुका था। परंतु, सामाजिक चुनौतियां कई स्तरों पर काम कर रही थी। इसका सामान जानकी को भी करना पड़ा।
1921 में प्रेसीडेंसी कांलेज से स्नातक की उपाधी लेने के बाद कुछ समय तक वहां अध्यापन किया। स्कॉलरशिप का प्रबंध होने के बाद यूनिवर्सिटी आंफ मिशिगन, अमेरिका चली गईं। जहां उन्होंने अपना शोध पीएचडी के मानद उपाधि के लिए गन्नों की हाइब्रिड पर किया। 1925 में जब वे भारत लौटी और गन्नों की क्रॉस ब्रीडिंग करके नए तरह के गन्नों का उत्पादन शुरू किया।
जानकी अम्मल का भारत को यह उस दौर में बहुत बड़ी देन थी। इसके बाद उन्होंने कई फूलों के क्रोमोजोम पर अपनी स्टडी को आगे बढ़ाया और कुछ फूलों के क्रोमोजोम को मिला कर एक नया फूल तैयार किया जिसको आज मंगोलिया को बस जानकी अम्मल कहा जाता है। जानकी अम्मल यहीं नहीं रूकी। आज भारत में बैंगन की एक नहीं कई नस्ले देखने को मिली है। बैंगनी, हरी, सफेद, गोल, छोटे, लंबे इन सारे संकर नस्लों की खोज के पीछे जानकी अम्मल के क्रॉस ब्रीडिंग शोध के ही परिणाम है।
आजादी के बाद उनके गन्ने के हाइब्रिड रिसर्च से देश और किसानों को हो रहे फायदे को देखते हुए पं नेहरू ने उन्हें भारत में बोटैनिकल रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए देश बुला लिया। जानकी अम्मल ने देश के सेवा के लिए अपने लंबे करियर को पीछे छोड़ दिया और भारत आ गई। उस दौर में वे भारत में अकेली और पूरी दुनिया में चुंनिदा वनस्पति वैज्ञानिकों में से थी।
जानकी अम्मल अपनी इन सारी उपलब्धियों के साथ जीवन में अकेली रहने का फैसला किया। सिंगल महिला होने के कारण उनको सामाजिक उत्पीड़न से भी गुजरना पड़ा। जानकी कभी पीछे नहीं हटी और अपने काम में लगी रही। उन्होंने अपने नेतृत्व में कई प्रमुख केंद्रीय वनस्पति प्रयोगशाला की नींव रखी। कुछ क्षेत्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं से वे जुड़ी भी रहीं। भाभा परमाणु अनुसंधान से भी वे जुड़ी हुई थी।
महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित सादा जीवन वाली जानकी अम्मल को देश-विदेश में कई राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया। उनके शोध से गन्नों, बैगन और फूलों की संकर नस्लों के उत्पादन से भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जो ऊर्जा देखने को मिली, वो जानकी अम्मल को कई लोगों के जीवन में उतार देती है जो शायद जानकी अम्मल को जानते भी नहीं होगे।
जैसा जानकी स्वयं कहती थी कि लोग उनको नहीं उनके काम को याद रखेंगे। कहीं न कहीं उनकी बात सच भी साबित हो गई है। गन्ने उगा रहा किसान और गन्ने से बना चीनी आज भारतीय जीवन में मिठास घोल रहा है। पर जानकी अम्मल भारत की पहली वनस्पति वैज्ञानिक थी, उनके बारे अधिकांश लोग जानते भी नहीं है।
इमेज सोर्स: Wikipedia
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