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लगभग एक साल बाद सुहानी के लिये संदीप का रिश्ता आया और पहली मुलाक़ात में ही सुहानी को संदीप और उसका परिवार बहुत अच्छे लगे।
सुहानी को देखने आज सिद्धार्थ का परिवार आ रहा था।
सुहानी पढ़ी लिखी 25 वर्षीय लड़की है और दिल्ली में जॉब करती है। वह लखनऊ शहर से है और सिद्धार्थ का परिवार कानपुर में रहता है। सिद्धार्थ के पिताजी का कपड़ों का व्यवसाय है और सिद्धार्थ भी अपने पिताजी के व्यवसाय को ही संभालता है। कुल मिलाकर अच्छा संपन्न परिवार है।
सुहानी ने आज आसमानी रंग की साड़ी पहनी है, हल्का सा मेकअप के साथ छोटी सी बिंदी उसके चेहरे पर चार चाँद लगा रही है। सुहानी और सिद्धार्थ का परिवार आज किसी रेस्टॉरेंट में मिल रहे हैं। रेस्टुरेंट में एक बड़ी सी टेबल बुक की गयी है जिससे सिद्धार्थ और सुहानी का परिवार लज़ीज़ खाने के मजे लेते हुए एक दूसरे से बातचीत कर सकें।
सिद्धार्थ की मम्मी, बहन और पिताजी भी साथ आ रहे हैं।
“अरे श्रीमती जी उठो! सिद्धार्थ के घरवाले आ गये हैं। चलो पार्किंग में उनको रिसीव करते हैं”, सुहानी के पिता हरीश जी ने सुहानी की मम्मी से कहा।
अगले 5 मिनट में, सिद्धार्थ का पूरा परिवार रेस्टोरेंट में विराजमान था। सिद्धार्थ थोड़ी नज़र उठा कर सुहानी को देखता और फिर निगाहें नीची कर लेता। सुहानी भी बीच बीच में सिद्धार्थ को देख लेती थी।
अचानक सिद्धार्थ की मम्मी ने सुहानी से कहा, “सुहानी आओ मेरे पास आकर बैठ जाओ।”
“देखो, मैं ये तो नहीं पूछूँगी कि तुम खाना बना लेती हो या सिलाई, कड़ाई जानती हो! ये बताओ कार चला लेती हो?” सिद्धार्थ की माँ ने मुस्कुराते हुए पूछा।
“आंटी जी मै स्कूटी चला लेती हूँ”, सुहानी बोली।
“दिल्ली में कौन-कौन सी जगह घूमी है तुमने?” सिद्धार्थ के पिताजी ने पूछा।
“मुझे समय नहीं मिलता है अंकल जी, जॉब में काफी व्यस्त रहती हूँ। छुट्टी के दिन मुझे आराम करना पसंद है”, सुहानी बोली।
तब ही सुहानी की मम्मी ने कहा, “दोनों बच्चों को बातें करने का समय दें तो अच्छा रहेगा।”
अब सुहानी और सिद्धार्थ को अवसर मिला एक दूसरे को अच्छे से देखने का और बात करने का। सिद्धार्थ ने कुछ खास नहीं पूछा सुहानी से, शायद उसको सुहानी पसंद आ गयी थी।
सुहानी ने भी कुछ औपचारिक बातें पूछीं। तभी सिद्धार्थ की बहन इशू आयी और बोली, “भैया, मम्मी बुला रही हैं। आइये…”
सिद्धार्थ उठकर जाने लगा तब सुहानी ने देखा इशू उसके पैरों की तरफ कुछ ध्यान से देख रही थी।
“क्या हुआ इशू जी?” सुहानी ने पूछ ही लिया।
“बस कुछ नहीं.. देख रही थी कि आपने कितने इंच की हील्स पहनी है!” इतना बोल इशू भी वापस चली गयी।
सुहानी को ये बात बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी। सिद्धार्थ के परिवार की बातें भी उसे अजीब लगीं।
घर आकर सुहानी के पिता ने उससे पूछा, “सुहानी, लड़का कैसा लगा?”
“लड़का तो अच्छा है पापा पर परिवार मुझे कुछ खास पसंद नहीं आया। इतनी ज्यादा जांच-पड़ताल? यहां तक कि मैंने कितने इंच की हील पहनी है? मुझे नहीं करनी शादी ऐसे परिवार में!” सुहानी ने मुँह बिचकाते हुए कहा।
हरीश जी ने अपनी लड़की को अच्छे से जानते थे। उसकी मर्जी को मानकर सुहानी की शादी सिद्धार्थ से तय नहीं की गयी।
लगभग एक साल बाद सुहानी के लिये संदीप का रिश्ता आया और पहली मुलाक़ात में ही सुहानी को संदीप और उसका परिवार बहुत अच्छे लगे। कितने प्यार से उससे बातें कर रहे थे, कोई जांच-पड़ताल नहीं!
आज संदीप और सुहानी पति-पत्नी हैं और खुश हैं।
दोस्तों, ज़रुरी नहीं पहली मुलाक़ात का अनुभव हमेशा अच्छा ही रहे। लेकिन सुहानी के पिता की तरह बाकी सभी अभिभावकों को अपनी बेटी की मर्जी पर विश्वास कर, उसकी बात को ध्यान में रखते हुए, रिश्ता पक्का करना चाहिए। आखिर निभाना तो लड़की को ही है!
इमेज सोर्स: Still from short film Arranged Marriage/Content Ka Keeda via YouTube
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