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कभी नहीं होगी धन की कमी! लक्ष्मी पूजन का समय दिवाली पर रहेगा कभी भी अगर ध्यान रखेंगे इन ज़रूरी बातों का। भूल कर भी ना भूलें इन्हें!
हमें धन, दौलत और समृद्धि मिले!
दीवाली में लक्ष्मी पूजन पर इसतरह की कामना- प्रार्थना तो सब करते ही हैं परंतु, देवी लक्ष्मी को हम सबों ने धन का पर्याय मान लिया है। वह खुशहाली, भाग्य और उत्पादकता की भी देवी है यह हमें नहीं भूलना चाहिए।
देवी लक्ष्मी भौतिक समृद्धि के साथ-साथ अन्य व्यापक भाव के साथ हम सबों के जीवन में मौजूद है। आज हमें उसको पहचाने की जरूरत है, इसलिए जरूरी है कि हम लक्ष्मी पूजन के व्यापक भाव को भी समझे-जाने और जीवन में उसको महत्व दें।
हम धन-सपदा-वैभव को लक्ष्मी मान लेते हैं, जबकि यह एक जीता-जागता भाव है जिस का विपरीत भाव है दरिद्रता, विपन्नता या बर्बादी। धन-वैभव आज कल हमारे चारों तरफ चल-अचल संपत्ति, जमीन-जायदाद, जेवर-गहने जैसे रूपों में मौजूद है। यह अगर बिना इस्तेमाल के पड़ी रहें तो बेकार हैं, पर काम में आती रहें तब उसका मूल्य समझ में आता है।
वह राजा याद है जो कुछ भी छूता सोने का हो जाता था? उसका भोजन-रोटी सब सोने की हो जाती …अब सोना कोई खा तो नहीं ही सकता, भूख को भोजन ही तृप्त कर सकता है। यही है देवी लक्ष्मी का वास्तविक भाव तृप्ति। इसके अभाव में कोई भी समृद्धि किसी काम की नहीं है। तृप्ति से ही हर समृद्धि का भाव अपने लक्ष्य को पाता है।
हमारी अधिकांश जरूरते-इच्छाएं धन से पूरी होती हैं। हम सोचते हैं जब पैसे आएगे हम खुश हो जाएँगे क्योंकि पैसे से हम अपनी इच्छाएं पूरी कर सकते हैं। यानी, जब तक इच्छाएं पूरी नहीं होगी हम सुख नहीं होंगे। भले ही पैसा पास में पड़ा हो, महत्व पैसे से अधिक इच्छाओं का है। इच्छा पूरी होने से हमें खुशी मिलती है। कहने का मतलब यह है कि खुशी लक्ष्मी पूजन का व्यापक भाव है, धन उसके लिए साधन है, साध्य नहीं है। ध्यान दें, हमें प्रसन्नता सिर्फ पैसों से ही तो नहीं मिलती।
जीवन में कुछ भी पाने की कामना के लिए कर्म जरूरी है। देवी लक्ष्मी भाग्य की देवी जरूर है पर भाग्य उदय हमारे कर्म से पूरा होता है। न ही वह भाग्य भरोसे बैठने से पूरा होता है न ही केवल भाग्य देवी के कामना से। हमारे आस-पास कई कहानियां है जिसमें किसी ने चंद रुपयों से व्यापार शुरू किया और मुकाम हासिल किया। मुकाम तक पहुंचने के लिए उनकी मेहनत और लगन ही उनका कर्म है, जिससे उनका भाग्य उदय हुआ।
इसलिए कर्म ही भाग्य देवी लक्ष्मी का व्यापक भाव है कामना नहीं।
धन की कामना जरूरी है पर कामना के साथ अभाव के लिए रोना सहीं नहीं है। अभाव में हमारी आवश्यकता छोटी हो या बड़ी, हमको उसकी कमी अधिक खलने लगती है। कमी पूरी नहीं होने पर हम स्वयं कर्म करने की जगह पर दूसरों को कोसने लगते हैं। दूसरे की समृद्धि हमें दुखी करने लगती है और यही क्लेश का विकार जन्म लेने लगता है। अभाव में अपने कर्म के प्रति अधिक समर्पित होना जरूरी है न कि मन में क्लेश रखना। क्लेश की नाकारात्मक उर्जा हमारी अंदर की सकारात्मकता का ह्रास करती है। इससे दूर रहकर ही लक्ष्मी पूजन किया जा सकता है।
जाहिर है लक्ष्मी पूजन में कामना जरूरी है क्लेश नहीं, यह भी देवी लक्ष्मी का व्यापक भाव है।
किसी भी धन-संपत्ति के तीन ही गति बताई गई है दान, भोग और नाश। धन का मूल्य किसी के काम आने में ही है, पड़े रहने में धन की कोई उपयोगिता नहीं है। किसी भी धन को अगर दान किया जाए तो उसका सर्वोत्तम उपयोग माना जाता है। अगर कोई व्यक्त्ति धन का उपयोग अपनी जीवन के जरूरतों को पूरा करने में करता है तो वह उसकी भोग गति कही जाती है। अगर धन का इन दोनों में से कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है, वह न दान के योग्य है न ही किसी के भोग के तो उसका नाश हो रहा है। लोग धन का संचय कर उसका उपयोग नहीं करते, न उसे दान करते हैं। यही धन की गतिशीलता को बाधित करती है।
धन की गतिशीलता ही देवी लक्ष्मी का व्यापक भाव है।
धन के गतिशीलता के भाव की वजह से ही देवी लक्ष्मी को चंचला कहा जाता है। धन की कामना के साथ-साथ, धन कमाने में, खर्च करने में निरंतरता रखना बहुत जरूरी है। धन में निरंतरता ही मन में खुशी और उम्मीद दोनों का भाव लाती है। हम कमाने के लिए कर्म करते रहें, हमारी उत्पादकता बनी रहे और हम दूसरों के उत्पादकता को भी बनाए रखें। स्वयं भी खुश रहें और दूसरों को भी खुशी दें। हमारे कर्म से हमारी खुशियों में वृद्धि होगी और दूसरों के कर्म से दूसरों के जीवन में खुशी रहेगी। इससे हमारे जीवन में धन का अभाव नहीं होगा न ही हमारे आसपास मौजूद लोगों में। स्वयं के साथ-साथ दूसरों के खुशियों का सम्मान धन के निरंतरता में है।
इसलिए निरंतरता भी है देवी लक्ष्मी का व्यापक भाव।
दिवाली में लक्ष्मी पूजन का महत्व केवल धन और समृद्धि की कामना ही नहीं है। हम सभी कर्म न तो करे तो लक्ष्मी नहीं मिलने वाली है। कर्म कर करके खूब कमाएं और खर्च ही न करे तो हम देवी लक्ष्मी के गतिशीलता और निरंतरता को बाधित कर देगे। जब हम धन अर्जित करके स्वयं प्रसन्न नहीं रहेंगे तो हमारे आस-पास के लोग भी प्रसन्न नहीं होगे। उन्हें उनके कर्म का सही मूल्य ही नहीं मिलेगा। इससे देवी लक्ष्मी प्रसन्न तो नहीं रहने वाली, क्योंकि स्थिर रहना उसका स्वाभाव नहीं है।
इस दीपावली में हम सब लक्ष्मी पूजन में देवी लक्ष्मी के व्यापक भाव को समझें और केवल धन-संपदा की कामना न करे अपना-अपना कर्म भी करें।
इमेज सोर्स: Visage from Getty Images via Canva Pro
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