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भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार भारत में महिलाओं का खतना का कोई डेटा रिकॉर्ड नहीं है, इसलिए भारत में इस पर कोई विशिष्ट कानून भी नहीं है।
ट्रिगर वार्निंग: इस लेख में बाल शोषण /महिलाओं का खतना का विस्तार विवरण है तो आपको डिस्टर्ब कर सकता है
अकसर पुरुष खतना कुछ समुदाय में सुनने को मिलता था। लेकिन जब मुझे दाऊदी बोहरा कम्युनिटी में महिला खतना के बारे में पता चला तो रूह कांप सी गई। जो महिला और बच्चियां इस स्तिथि, जो एक अंधविश्वासी परंपरा पर आधारित है, से गुजर चुकी हैं, उनकी मनोस्तिथि का मैं अंदाजा भी नहीं लगा पा रही थी।
क्या हुआ होगा उस अंधेरे कमरे में, जहां एक लड़की अधेड़ पड़ी हो और आसपास मौजूद लोग उसके जननांग के नाजुक से अंग को बिना उसकी सहमति के, बिना किसी चिकित्सीय सलाह के केवल एक अंधविश्वास के कारण काट रहे हों?
कांप गई ना रूह आपकी भी केवल इस लाइन को पढ़ते हुए?
उस वक्त उस बच्ची पर क्या बीती होगी? उसकी दशा क्या होगी? केवल एक जिंदा लाश होगी और ऐसे क्रूर समाज में जन्म लेने पर केवल कोस रही होगी खुद को। खैर, इसका अंदाजा केवल वही लगा सकती हैं जिन्हें इस अभिशाप से गुजरना पड़ा होगा। हम और आप तो इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।
इसे ‘ख़फ़्ज़’ या ‘फ़ीमेल जेनाइटल म्युटिलेशन’ (एफ़जीएम) भी कहा जाता है।
तो क्या ऐसी नीच और क्रूर परंपरा अभी भी जिंदा है? क्या होता है ये महिलाओं का खतना? क्या है इसके पीछे का इतिहास? किन देशों में अभी भी ऐसे अभिशाप जागृत हैं? क्या यह गैरकानूनी नहीं मानवाधिकारों का उलंघन नहीं? आइए जानते हैं हम ये सभी चीजें अपने आगे के लेखनी में।
महिला जननांग विकृति, महिलाओं के जननांग काटने या महिला खतना या महिलाओं का खतना के नाम से भी जाना जाता है। यह बिना किसी चिकित्सीय देख-रेख या चिकित्सीय सलाह और बिना सहमति के महिला के जननांग के बाहरी हिस्से को काटने की प्रथा है।
इस प्रथा में पारंपरिक खतना करने वाले द्वारा ब्लेड का प्रयोग किया जाता है गुप्तांग के बाहरी हिस्से को काटने के लिए।
• टाइप 1
इसमें क्लिटोरल ग्लांस का आंशिक या पूरे भाग को निकाला जाता है। क्लिटोरल ग्लांस जननांग में निकले बाहरी हिस्से को कहते हैं बाहर की तरफ होने के कारण इसे बाहरी भाग या दृश्य भाग भी कहते हैं। यह दृश्य भाग महिला जननांग का काफी संवेदनशील भाग होता है। जननांग का यह हिस्सा यौन सुख के लिए होता है।
• टाइप 2
इसमें क्लिटोरल ग्लांस के साथ साथ लेबिया मिनोरा जो की योनि की भीतरी सिलवटें होती हैं उन्हें पूर्ण या आंशिक रूप से हटाया जाता है।
टाइप 2 के उपप्रकार भी आ जाते हैं जिसमें क्लिटोरल ग्लांस ले मिनोरा के साथ साथ लेबिया मेजा को भी पूर्ण या आंशिक रूप से हटाया जाता है। ले मेजा योनि के बाहरी सिलवटों को कहते हैं।
• टाइप 3
इसे इन्फिब्यूलेशन के नाम से भी जाना जाता है। इसमें लेबिया मिनोरा और लेबिया मेजा को काटने के बाद उसका निर्माण फिर से होता है। तो इसमें कवरिंग सील के निर्माण के साथ योनि के खुले मुंह को कम किया जाता है।
• टाइप 4
इसमें बिना गैर चिकित्सा उद्देश्यों के लिए महिला जननांग में हानिकारक प्रक्रियाएं होती है। जैसे चुभन करना, चीरा लगाना, दागना, खुरचना और छेदना।
कुछ टिप्पणीकारों का ऐसा मानना है की यह प्रथा महिलाओं के यौन व्यवहार पर काबू पाने के लिए आदिम समुदायों द्वारा शुरू की गई थी। यह परंपरा सामाजिक मान्यताओं, मूल्यों और दृष्टिकोणों द्वारा समर्थित है। कुछ समुदायों में नारी को संस्कार के रूप में देखा जाता है। कुछ लोगों का कहना हैं कि यह प्रथा कुमारी लड़की के कौमार्य को सुरक्षित करने के लिए है। अफ्रीका के महिलाओं का कहना है की यदि उनके लड़कियों का खतना नहीं हुआ तो उनके विवाह में दिक्कत आएगी। कुछ लोगो द्वारा माना जाता है की यह धार्मिक कारणों से किया जाता है लेकिन यह किसी विशेष धर्म तक ही सीमित नहीं है।
हालांकि भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार भारत में इसका कोई डेटा रिकॉर्ड नहीं हैं इसलिए भारत में इस पर कोई विशिष्ट कानून भी नहीं है। लेकिन सोचने की बात ये है कि जब घर के लोग ही अपनी छोटी बच्चियों का खतना करेंगे तो वो शिकायत किससे करेंगी? ज़रुरत है अधिकारियों के जागने की, लेकिन जब बात महिलाओं पर हो रहे जुल्म की होती है और खासकर अगर अगर धर्म भी आड़े आ रहा हो, तो सबकी आँखें खुद ब खुद बंद हो जाती हैं।
अफ्रीका में कुछ लोगों ने इसके खिलाफ आवाज उठाया और कहा की यह एक दर्दनाक प्रथा है और इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूत कानून व्यवस्था होनी चाहिए। लंदन में इसे लेकर एक अभियान शुरू हुआ 28 टू मैनी। इसके एक रिपोर्ट के अनुसार अफ्रीका के जिन देशों के यह प्रथा प्रचलित है वहां इसके प्रतिबंध को लेकर बहुत सी खामियां हैं।
यह प्रथा सोमालिया में सबसे अधिक प्रचलित है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 98 प्रतिशत लड़कियों को इस प्रथा से गुजरना ही पड़ता है। इस प्रथा से पीड़ित होने वाली आधे से ज्यादा लड़कियां मिस्र, इथियोपिया और नाइजीरिया जैसे देशों से हैं। जब कि इन देशों में इसके खिलाफ कानून भी हैं।
चाड, लाइबेरिया, माली, सिएरा लियोन, सोमालिया और सूडान जैसे देशों में इस प्रथा के अधिक प्रचलित होने के बावजूद भी इसके प्रतिबंधन पर कोई कानून नहीं है। यानी दूसरे शब्दों में कहें तो इन देशों में अभी भी कानूनी है। मिस्र, गिनी, केन्या, नाइजीरिया और सूडान में पारंपरिक खतना करने वालों के बजाय स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा इस प्रथा को किए जाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
केवल गिनी और केन्या ही विशेष रूप से इस प्रथा को अपराध मानते हैं।
WHO की इस रिपोर्ट के अनुसार खतना महिलाओं के लिए हानिकारक है। इसके कारण उन्हें आजीवन इंफेक्शन, यूरिन संबंधी समस्या, पीरिड्स में असहनीय दर्द, प्रसव में कठिनाई, संबंधों के दौरान समस्याएं, तनाव, डिप्रेशन और आजीवन मानसिक असंतुलन जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
प्रथाओं के नाम पर महिलाओं की सेहत व भावनाओं के साथ खिलड़वाड़ कर रही ऐसे अंधविश्वासी परंपरा के खिलाफ लोगों को जागरूक करना होगा। उन्हें इससे होने वाले नुकसान के बारे में समझाना होगा, तभी शायद हमें इस अभिशाप से छुटकारा मिल पाएगा।
इमेज सोर्स: homegrown.co.in & Canva Pro
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