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हर जगह डबल मीनिंग बातों और महिलाओं को ज़बरदस्ती छूने वाले पुरुष मौजूद हैं! कुछ ऐसे हैं जो दिखने में शरीफ और टॉप की कॉलेज से पढ़े हुए हैं...
“पापा, हर जगह डबल मीनिंग बातों और महिलाओं को ज़बरदस्ती छूने वाले पुरुष मौजूद हैं! कुछ ऐसे हैं जो दिखने में शरीफ और टॉप की कॉलेज से पढ़े हुए हैं, लेकिन वे भी ऐसी ही हरकतें करते हैं। तो आप बताएं कि मैं सेफ कहाँ हूँ?”
भारत ही नहीं विश्वभर में महिलाएं अपनी काबिलियत के दम पर सफलता का परचम लहरा रही हैं। परंतु, पूरी दुनिया में आज भी आत्म-सम्मान और सुरक्षा के सवाल पर आशंकित होकर घर से बाहर निकलती हैं। घर के बाहर चाहे कोई भी जगह हो, उनका दफ्तर हो या स्कूल-कॉलेज, बाजार हो या पूजा का स्थल, बस हो या फिर मेट्रो या ऑटो, छोटी बच्चियों, लड़कियों, महिलाओं सभी को छेड़खानी, अश्लील बेहूदगी वाले भद्दे कमेट्स ही नहीं, किसी के जबरदस्ती छू कर गुज़र जाने के पीड़ा भी झेलनी पड़ती है।
घर के देहरी पार करते समय उनके लिए यह सवाल सबसे महत्पूर्ण होता है कि वहां जाना सेफ होगा या नहीं…
मेरे पड़ोस में आठवी क्लास में पढ़ रही अलीशा को कहीं भी अकेले भेजते समय घर वालों में काफी घबराहट होती है। भले ही उसने कराटे क्लास कर रखी है, दब नहीं सकती है पर घर वाले निश्चित नहीं हो पाते।
अलीशा दीवाली के समानों के खरीददारी के लिए बाज़ार नहीं जाना चाहती क्योंकि बीते दिनों दुर्गा पूजा में पंडाल के भीड़ में कुछ लड़कों ने उसके साथ गलत हरकत की। अलीशा और उसके हम उम्र दोस्तों ने बताया बसों, मेट्रो, ट्रेनो या पब्लिक प्लेस में अश्लील-बेहूदगी वाले भद्दे कमेट्स न सुनना पड़े, इसके लिए वह कानों में ईयरफोन लगाकर म्यूजिक सुनने लगती हैं। और तो और ऑटो में कोई पीठ या कंधे पर हाथ रख देता है या छू लेता है, तो कोई भीड़ का फायदा उठाकर कुछ गलत हरकत करता है, इससे कैसे बचा जाए, पता नहीं। हम प्रतिरोध करेंगे तो लोग हमारा साथ देंगे या नहीं, या वो भी ताना देंगे?
कोई इंकार नहीं कर सकता है कि असुरक्षित वातावरण और उसका भय न जाने कितनी ही युवा लड़कियों को ही नहीं महिलाओं को घर के दायरे में कैद कर देता है। कई मौकों पर तो अभिभावक कम उम्र में ही लड़कियों को शादी के बंधन में बांध देने का फैसला कर लेते हैं या जब तक शादी के लायक न हो जाए सुरक्षा के लिए निजी वाहन लेने पर विचार करने पर विवश होते हैं।
इस तरह की घटना पूरी दुनिया में महिलाओं के सैद्धांतिक अधिकारों का हनन है, जिसमें बिना किसी गलती के एक महिला के मान-सम्मान को ठेस पहुंचाई जाती है। कई बार तो यह उस चरम स्थिति पर पहुंच जाता है तो एसिड अटैक जैसी घटनाएं भी घट जाती हैं। हम सब जानते हैं कि इन घटनाओं का किसी भी महिला के मनोस्थिति पर क्या प्रभाव पड़ता है। इस तरह की घटनाओं का सीधा प्रभाव उसके आत्मविश्वास पर चोट करता है।
छेड़खानी के समस्या से हर उम्र, वर्ग, जाति, धर्म की महिलाएं और लड़कियां परेशान है, कोई इससे बचा नहीं है। इस तरह के हरकत करने वालों में कम अशिक्षित, निचले तबके के बेरोजगारों से लेकर संभ्रांत वर्ग के पढ़े-लिखे युवक, पुरुष सभी शामिल है।
स्कूल-कॉलेज में तो सहपाठी, कई बार तो अध्यापक भी, कार्यस्थल पर सहकर्मी यहां तक उच्च अधिकारियों के भी डबल मीनिंग कमेट्स सुनने को मिलते ही रहते हैं। कुठांओं से भरी यह मानसिकता शारीरिक, मौखिक और मानसिक पीड़ा देने वाली होती है। लड़कियां और महिलाएं बिना किसी गलती या अपराध के इस तरह की पीड़ा झेलने को विवश होती है जिसका कभी अंत ही नहीं होता है।
जबरदस्ती छुना या छेड़छाड़ के अपराध को प्रमाणित करना अक्सर कठिन होता है। महिलाओं को ही दोषी ठहराने के कुतर्कों इस तरह के होते है कि अक्सर महिलाएं चुप्पी साध लेती हैं। जहां वह प्रतिकार करती हैं, वहां घर-मोहल्ले-समाज सब जगह उनके चरित्र को लेकर कसीदे पढ़े जाने लगते हैं।
वह वहां क्या कर थी? किस तरह के कपड़े पहने थे? उस समय वह घर से बाहर गई ही क्यों थी? जैसे तर्क लड़कियों या महिलाओं को अमर्यादित बताते के लिए काफी होते हैं। नेशनल क्राइम ब्यूरो के हलिया आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर आधे घंटे में एक महिला छेड़छाड़ की शिकार होती ही है, इसी तरह दुष्कर्म और अपहरण के मामले भी हैं।
भारतीय दंड संहिता छेड़खानी को शामिल अवश्य किया गया है और कहा गया है कि छेड़खानी एक दिमागी सोच का परिणाम है, जिसके चलते कोई व्यक्ति किसी को अपमानित या बेइज्जत करता है।
विशाखा गाइड लाईन्स जारी होने के बाद निजी या सार्वजनिक संस्था में लड़कियों या महिलाओं के लिए शिकायत संबंधी कमेटी की सिफारीश की थी। इन शिकायतों को सही अंजाम तक पहुंचते-पहुँचते महिलाओं के साथ इतना कुछ घट जाता है कि वो या तो घर के चारदीवारी में बंद हो जाती हैं या फिर आत्महत्या कर लेती हैं।
इससे जुड़ी पीड़ा और पीड़ित को ही दोषी बता देने की प्रवृत्ति का दंश इतना खतरनाक है कि उनका खुद पर से ही भरोसा उठ जाता है समाज के तरफ से अपनी सुरक्षा के लिए तो वह कभी निश्चित नहीं होती है।
वह हिम्मत जुटाकर इसका विरोध या प्रतिकार करती भी है तो जो लोग भी उसके आसपास खड़े होते मौन रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। उनका मौन रहना जहां एक तरफ पीड़िता के विश्वास को कमजोर करता है, वहीं दूसरी तरफ ये छेड़छाड़ करने वाले मनचलों का हौसला बढ़ाता है।
इस तरह की घटनाएं रूक सकें, इसके लिए लड़कियों या महिलाओं के समर्थन में समाज और लोगों को आगे आना पड़ेगा। पीड़ा देने वाली इन घटनाओं को छोटी सी बात न समझा जाए और इसका सामूहिक विरोध किया जाए। तभी महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों को कम किया जा सकेगा और पब्लिक स्पेस में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी।
साथ ही साथ, बच्चों के लालन-पालन में सबों के प्रति सम्मान के भाव का विकास, काइंडनेस को बढ़ावा, शारीरिक एवं भावनात्मक स्वच्छता को बढ़ावा और समर्थन, सभी के लिए समानता और स्वतंत्रता जरूरी, जैसी बातों का समावेश ही समाज में हर किसी के प्रति संवेदनशील और सहिष्णु बना सकता है। इस पर सबसे अधिक ध्यान देने की जरुरत है।
जब हम महिलाओं और लड़कियों के प्रति नैतिकता और सम्मान के भाव का विकास करेंगे, तब यह अपने आप पब्लिक प्लेस में भी देखने को मिलेगा। हम यह नहीं भूल सकते हैं कि हम सबों का आज ही आने वाले कल को रोशन कर सकता है।
इमेज सोर्स: Still from HER – “LET THE VOICE BE YOURS”. WOMEN’S DAY SHORT FILM, YouTube
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