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आपने अक्सर देखा होगा कि लोग अपने घरों में लड़कियों का नाम कौशल्या और सुमित्रा तो रखते हैं, लेकिन कोई कैकेयी नाम क्यों नहीं रखता?
दीपों का त्यौहार फिर आने वाला है। श्री राम के आगमन के ख़ुशी में हर तरफ दीप महोत्सव मनाया जाएगा।
सदियों से आपने रामायण की गाथायें सुनी होंगी जिसमें मुझे विश्वासघातिनि का दर्जा दिया गया है। लेकिन आज मैं कैकेयी आपसे कुछ पूछना चाहती हूँ। आपने अक्सर देखा होगा कि लोग अपने घरों में कौशल्या और सुमित्रा का नाम तो रखते हैं, लेकिन कोई अपने घर में कैकेयी नाम क्यों नहीं रखता?
क्या आप जानते हैं अपने पुत्र समान राम को वनवास भेजने का कारण क्या था?
इनका जवाब शायद हर इंसान के पास होगा, परन्तु आज मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ। हो सकता है इसके बाद शायद आपका मेरे को देखने का नजरिया बदल जाएगा और शायद ये विश्वासघातिनि का कलंक मेरे नाम से उतर जाएगा!
जब महाराज दशरथ ने मुझसे विवाह करने का प्रस्ताव मेरे पिता, केकेय देश के राजा अश्वपति के सामने रखा था तब उन्होंने वचन दिया था कि मेरी कोख से जन्मा संतान ही आयोध्या का भावी राजा बनेगा। इस कारण भरत का राजा बनने का अधिकार उनके जन्म से पहले ही उन्हें मिल चुका था।
अब आप बताइए, मैंने भरत के लिए राज सिंघासन मांग कर क्या गलती की? ऐसा नहीं है कि मुझे राम से द्वेष था। राम को मैं अपने भरत जैसा ही प्रेम करती थी। राम को सिंघासन देने के फैसले से मैं भी उतनी ही खुश हुई थी जितनी कौशल्या दीदी हुई थीं। मैंने ख़ुशी में अपने गले का कीमती हार मंथरा को दे दिया था।
लेकिन आप ये बताइये कि जब महाराज दशरथ ने अपने वचन का उलंघन किया तो क्या उनका ये दायित्व नहीं था कि वे ये समाचार सर्वप्रथम मुझे बताएँ? क्या उनका ये दायित्व नहीं था कि वो ये फैसला भरत की उपस्तिथि में लें?
मैं मानती हूँ कि मुझसे भूल हुई, लेकिन भूल किससे नहीं होती! लेकिन मुझे ये बताइये अगर आप में से कोई मेरे स्थान पर होता तो आप क्या करते?
क्या आपको अपने पति के वचन तोड़ने पर गुस्सा नहीं आता?
मुझे अपने पुत्र भरत के भविष्य की चिंता होने लगी और अपने पति धर्मपुरुष महाराज दशरथ से विश्वासघात की भावना आने लगी और इसलिए राम के प्रति बिना किसी बुरे भाव के और महाराज के प्रति द्वेष भाव के साथ मैंने उन दो वरदानों का प्रयोग कर राम के १४ वर्ष के वनवास और भरत के राजगद्दी की माँग की।
ये वरदान मांगने का हक़ तो महाराज ने मुझे देव-दानव युद्ध में उनके प्राणो की रक्षा करने के बदले दिया था। क्या उन्होंने वरदान मांगने का हक़ मुझे बिना सोचे-समझे दे दिया? उनका मतलब पूरा हुआ लेकिन जब मेरे अधिकार का वक़्त आया तो उन्होंने क्या किया?
मानती हूँ कि ये फैसला मैंने मंथरा ने बहकावे में किया था, लेकिन मैं बहकावे में आयी क्यों? क्या आप में से कोई आज तक बहकावे में नहीं आया? वो भी अपने बच्चे के लिए? आप एक पत्नी, एक माँ के नजरिये से दिखिए और सोचिए कि मैं क्या करती जब मेरे पति ने मुझे दिया हुआ वचन, मुझसे बिना बताए तोड़ दिया!
आप बताइए कि अपने पति के प्राणों की रक्षा करके क्या मैं एक अच्छी पत्नी नहीं बन पाई? क्या अपने पति का हर कदम पर साथ देकर भी मैं एक अच्छी बीवी नहीं बन पाई? क्या अपने पुत्र के भविष्य की चिंता करके मैं अच्छी माँ नहीं बन पाई? क्या अन्याय के विरूद्ध आवाज़ उठा कर मैंने विश्वासघात किया?
क्या आपने कभी इसकी कल्पना की कि मेरे मन में क्या बीत रही होगी जब मैंने अपने एक पुत्र के भविष्य के लिए अपने दूसरे पुत्र को सबके विरुद्ध जाकर वनवास भेज दिया? मैं अपने पुत्र के लिए पूरी दुनिया से लड़ गई, भले ही मेरा फैसला उस समय सबको गलत लग रहा हो, लेकिन मेरे राम को प्रति कोई गलत भाव नहीं थे। मैं बस अपने खिलाफ हुए अन्याय के लिए न्याय चाहती थी।
आज पति, पुत्र, कुलगुरु, पूरी प्रजा और ५००० साल के बाद भी आप जिस नजर से मुझे देख रहे हो, क्या उसमें न्याय हैं? सदियों से लोग दिवाली की कहानी सुनते हैं और मुझे, कैकेयी को, गलत ठहरा देते हैं लेकिन मैं फिर कहती हूँ, आप अपने आप को एक समय के लिए मेरे जगह रख के देखे और बताइए कि उस समय आप क्या फैसला लेते?
इतने पश्चाताप के बाद भी आज भी आप मेरे मनोभाव को समझ नहीं पाए। मैं भी तो इंसान हूँ और इंसान से तो गलतियां स्वाभाविक हैं न, परन्तु इतने वर्षो के बाद भी मुझे न समझना स्वाभाविक नहीं हैं।
आज मैं कैकयी आप सभी से पूछना चाहती हूँ कि क्या इतने सदियों बाद ऐसा नहीं होता क्या? क्या आज के समय एक माँ अपने बेटे के भविष्य के लिए अच्छा नहीं सोचती और उसके भविष्य के लिए पूरी दुनिया से लड़ जाती है?
आज जब किसी नारी के साथ गलत होता है तो क्या आज भी समाज उसे न्याय दे पता है? उसको न्याय दे भी दे तो क्या सदियों तक उसे गलत ठहराता है?
आज तक आपमें से कभी किसी ने मेरी भावनाएं या मेरी ममता को समझने की क्यों कोशिश नहीं की?
आज भी जब एक नारी से उसका पति अपना वादा तोड़ता है क्या वो अपने मनोभाव को प्रकट करने के लिए नाराज़ नहीं होती क्या?
जब ये सब आज भी होता है तो क्यों नहीं समाज मेरी दशा समझता?
मैं आप लोगों से न्याय की मांग नहीं कर रही क्योंकि इतने सालों में ये नहीं हो पाया को आज क्या होगा?
लेकिन आपसे उम्मीद है तो केवल मेरी परस्थिति और मेरी ममता को समझने की और ये बताने की कि अगर आप मेरे, कैकेयी के, स्थान पर होते तो आप क्या करते?
इमेज सोर्स: Wikipedia/Atul Choudhary from Pexels via Canva Pro
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