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माँजी, ये ससुराल अगर मेरा घर नहीं है तो आपका भी नहीं है…

"वो तुम्हारे मम्मी-पापा है तो तुम्हारा भी फर्ज बनता है उनकी देखभाल करना लेकिन यहां भी तुम्हारी बहुत जरूरत है तो फिर सब कैसे मैनेज होगा?"

देखो रचना, मुझे कोई समस्या नहीं। वो तुम्हारे मम्मी-पापा है तो तुम्हारा भी फर्ज बनता है उनकी देखभाल करना लेकिन यहां भी तुम्हारी बहुत जरूरत है तो फिर सब कैसे मैनेज होगा?

अभी अभी लंच खत्म कर रचना बेड पर लेटी ही थी की फोन बजा देखा तो बड़ी बहन का फोन था।

“हां, प्रणाम दीदी! कैसी हो?”

“मैं अच्छी हूं तुम अपना बताओ।”

“इधर भी सब बढ़िया है दीदी!”

“रचना मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी थी।”

“हां बोलो ना दीदी!”

“रचना, क्या तुम कुछ दिनों के लिए यहां आ सकती हो? मेरी सास बीमार है इसलिए मैं दिल्ली जा रही हूं तो मम्मी-पापा यहां अकेले हो जाएंगे। अगर तुम आ जाती तो अच्छा रहता और मैं भी निश्चिंत रहती।”

रचना एक पल के लिए चुप रही फिर बोली, “हां दीदी, आप चिंता मत करो मैं आ जाऊंगी।”

“चलो तुम आ जाओगी तो मम्मी पापा को भी अच्छा लगेगा। देखो, तुम जरा जल्दी आने की कोशिश करना। ठीक है चलो फोन रखती हूं। बाय…!”

रचना ने हां तो कह दिया लेकिन उसे चिंता होने लगी कि इधर सास की भी उम्र हो चली है, तबीयत ठीक नहीं रहती, बच्चे का स्कूल, पति का ऑफिस, घर का इतना काम छोड़कर कैसे जाएगी? लेकिन जाना भी जरूरी है। क्या करूं? इनसे बात करके कोई रास्ता निकालती हूं। सोचते हुए वापस बेड पर लेट गई।

रचना दो बहने ही है। शादी के बाद जहां ये शहर आ गई वहीं उसकी बड़ी बहन मां के घर के पास ही रह रही है और पिछले 15 सालों से वही देखभाल कर रही है। रचना साल में हफ्ते 2 हफ्ते के लिए ही जाती है। अब मम्मी पापा की उम्र काफी हो चली है। बीमार रहते हैं तो एक आदमी हमेशा उन दोनों के पास चाहिए। बड़ी बहन चली गई तो इसका जाना बहुत जरूरी हो गया।

पति अमर के ऑफिस से आने के बाद रचना ने सारी बातें बताई।

“देखो रचना, मुझे कोई समस्या नहीं। वो तुम्हारे मम्मी-पापा है तो तुम्हारा भी फर्ज बनता है उनकी देखभाल करना लेकिन यहां भी तुम्हारी बहुत जरूरत है तो फिर सब कैसे मैनेज होगा? दीदी की सास भी बीमार है तो जरूरी नहीं वो कुछ ही दिनों में वापस आ जाए। उन्हें ज्यादा समय भी लग सकता है तो यहां कौन संभालेगा? मां को भी तुम्हारी जरूरत है।”

“हां, वही सोच कर मैं भी परेशान हूं कि कैसे मैनेज करूंगी।”

ठीक है, ज्यादा परेशान मत हो कुछ-न-कुछ रास्ता जरूर निकल जाएगा।

अमर तो सो गया लेकिन रचना पूरी रात यही सब सोचती रही।

अगली सुबह उसने पति से कहा, “मैं वहां ज्यादा दिन नहीं रह सकती लेकिन मेरे मम्मी पापा तो यहां रह सकते हैं।”

“क्या मतलब?”

“क्यों ना हम मम्मी-पापा को ही अपने पास बुला ले। जब तक उनकी इच्छा होगी रहेंगे फिर चले जाएंगे। स्थान परिवर्तन होगा तो उन्हें भी अच्छा लगेगा। देखिए, मैं यहां की जिम्मेदारी भी नहीं छोड़ सकती और ना ही मम्मी पापा को। फिर दोनों जगह संभालने का बस यही एक सही रास्ता मुझे लगा। आप क्या कहते हैं?”

“बात तो सही कह रही हो लेकिन क्या तुम्हारे मम्मी पापा यहां आएंगे?”

“हां, क्यों नहीं आएंगे जब मैं उन्हें अपनी सारी बातें बताऊंगी तो जरूर मानेंगे और आएंगे भी।”

तो फिर यही सही रहेगा। तुम मम्मी-पापा से बात कर लो फिर उन्हें लेकर आ जाओ। लेकिन…!”

“लेकिन क्या?”

“मम्मी से एक बार पूछ लूं? मम्मी को भी तो जानकारी होनी चाहिए ना कि तुम्हारे मम्मी-पापा यहां आ रहे हैं।”

“हां ठीक है मैं अभी जाकर बता देती हूं।”

“तुम मत बताओ मैं बता दूंगा।”

“जैसा आपको ठीक लगे।”

अमर अपनी मां से बात करने के थोड़ी देर बाद रचना को बुलाया।

“मैंने मां को सब बताया, उन्हें भी कोई समस्या नहीं है।”

“चलिए यह तो बहुत अच्छी बात है। जानते हैं मैं भी मां से कुछ ऐसी ही उम्मीद लगाए बैठी थी। मैं अभी अपने मम्मी-पापा से बात करती हूं। आप टिकट निकाल दीजिए, जल्दी जाकर मैं दोनों को साथ में लेकर ही आ जाऊंगी।”

“पर मुझे तुमसे कुछ कहना था रचना!”

“हां कहिए ना!”

“मैं कह रहा था कि अपने बगल का फ्लैट खाली है तो हम उसे रेंट पर ले लेते हैं और जब तुम्हारे मम्मी पापा आएंगे तो उसी फ्लैट में रहेंगे। देखो, वो जब तक रहेंगे रेंट मैं ही दूंगा, खाना हमारे साथ ही खाएंगे पर अलग रहेंगे तो थोड़ी प्राइवेसी रहेगी। हो सकता है साथ रहने पर थोड़ी ऊंच-नीच हो जाए। तुम समझ रही हो ना मैं क्या बोलना चाह रहा हूं?”

“हां, आप सही कह रहे हैं। एक बात कहूं, नीचे भी एक फ्लैट खाली है तो क्यों ना आपकी मम्मी के लिए भी फ्लैट ले लें। आखिर हमारी शादी को 15 साल हो गए तब से मैं सास ससुर, देवर-देवरानी, ननद सबके साथ रही हूं और बहुत ऊंच- नीच हुई है। हमें कोई प्राइवेसी नहीं दी गई और ना ही हम कभी बोले पर अब मुझे भी लग रहा है कि थोड़ी प्राइवेसी तो मिलनी ही चाहिए। आप चिंता मत करिए मम्मी को मैं समय से चाय नाश्ता, खाना, दवाई सब दूंगी बस वह अलग रहेंगी। आप समझ रहे हैं ना मैं क्या बोल रही हूं?” रचना ने जरा आवाज तेज करते हुए कहा।

रचना की बात सुनते ही अमर आवाक होकर देखने लगा।

“अरे तू कैसी बातें कर रही है? यह मेरा घर है तो मैं क्यों अलग रहूं? और तू ये मत भूल कि यह तेरा ससुराल है।”

“मां जी, मैं सही कह रही हूं जब मेरे मम्मी पापा के लिए अलग घर की व्यवस्था होगी तब आपके लिए भी अलग ही व्यवस्था होगी और हां यदि यह मेरा ससुराल है तो आपका भी ससुराल ही है मायका नहीं। और अगर ससुराल आपका घर है तो क्या मेरा घर नहीं है?”

“अरे बहु, तू गलत समझ रही है। मैं ये नहीं कह रही कि तुम अपने मम्मी पापा को नहीं बुलाओ, मैं तो बस कह रही थी कि…!”

रचना ने बीच में टोकते हुए कहा, “मां जी, मैं सच में आज तक गलत समझ रही थी कि ये मेरा भी घर है और यहां मेरी बातें भी सुनी जाएगी पर आज समझ में आया कि मैं तो ससुराल की हो गई। सब को अपना लिया पर ससुराल वालों ने मुझे नहीं अपनाया और ना कभी मुझे अपना माना। पर एक बात आप भी सुन लीजिए मेरे मम्मी-पापा तो आएंगे जरूर और यही रहेंगे। यह फैसला मैं आप पर छोड़ती हूं कि आपको यहां रहना है या आपके लिए अलग घर देखूं। क्योंकि इस घर पर जितना आपका हक है उतना मेरा भी है।”

“अरे, तुम मम्मी के साथ कैसे बात कर रही हो?”

“वैसे ही जैसे आप और मम्मी आज तक मेरे साथ बात करते आए हैं। पहले आप ये बताइए कि टिकट निकाल रहे हैं या मैं खुद निकाल लूं?”

“अरे बहु, तू बहुत जल्दी नाराज हो जाती है मैंने तो बस अपनी बातें रखी थी अगर तुम्हें सही नहीं लग रही तो मत मानो। इसमें नाराज होने वाली बात क्या है? और हां, सही कहा तुमने यह सिर्फ मेरा ही नहीं तुम्हारा भी घर है। अमर, अलग घर देखने की जरूरत नहीं, बहू के मम्मी-पापा यहीं आएंगे और हम सबके साथ रहेंगे जब तक उनकी इच्छा होगी। तुम टिकट निकाल दो। और हां, बहू के साथ तुम भी जाओ कहीं बेटी की बात नहीं माने तो तुम उन्हें मना कर ले आना।”

सास की बात सुनते ही रचना को आश्चर्य और खुशी दोनों हुई। एक लंबी सांस खींचते हुए बोली, “मां, बहुत-बहुत धन्यवाद आपका मुझे और मेरी बातों को समझने के लिए।”

इमेज सोर्स: Still from Diwali Sabhyata Ad, YouTube 

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