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मेरी सास तो बहुत अच्छी है माँ। बहुत ख्याल रखती हैं। इतनी अच्छी मेरी किस्मत है कि सास के रूप में मुझे दूसरी माँ मिल गई लेकिन भाभी...
मेरी सास तो बहुत अच्छी है माँ। बहुत ख्याल रखती हैं। इतनी अच्छी मेरी किस्मत है कि सास के रूप में मुझे दूसरी माँ मिल गई लेकिन भाभी…
घर की रसोई पकवानों की खुश्बू से महक रही थी। साथ ही रमा जी का उत्साह भी आज दुगना था।
“देखना बहु, हर चीज तनु के पसंद की ही होनी चाहिये। दही-वड़े फ्रिज में रख दिये ना? तुम्हें बताया था ना की तनु को ठंडे दही-वड़े कितने पसंद हैं और अमन जी के लिये पनीर के पकोड़े गर्म ही निकालना। आज पहली बार शादी के छः महीने बाद मेरी बच्ची और दामाद जी घर आ रहे हैं। देखना कोई कमी ना रह जाए।”
“हां मम्मीजी, आप निश्चित रहें। हर चीज तनु और अमन जी के पसंद की ही बन रही है।”
अपनी सासू माँ का उत्साह देख रूपा के आँखों के सामने अपनी माँ और बाबूजी का चेहरा घूम गया। उसे भी तो अपने घर गए इतना ही समय हो चुका था। जब भी बाबूजी कुछ दिन रखने की बात करते माँजी कोई ना कोई बहाना कर टाल जाती।
रूपा की शादी राजन से हुई थी। घर में सास रमा जी, ससुर विनोद जी, छोटी नन्द तनु और एक देवर थे। तनु और रमन की शादी एक ही साथ हुई थी। रमा जी ने बेटी विदा की तो घर बहु ले कर आयी थी।
तनु की शादी रूपा और राजन की शादी के पंद्रह दिन बाद ही हो गई थी। तो उसे ज्यादा समय अपनी भाभी के साथ बिताने को नहीं मिला। लेकिन इतने कम समय में भी तनु ये जान गई थी कि रूपा का जैसा नाम था वैसी ही वो गुणवान और रुपवान लड़की भी थी। आज छः महीनों बाद तनु मायके आ रही थी तो रूपा का मन भी अपने घर जाने को बेचैन हो उठा था।
“बेटियां तो होती ही ऐसी हैं! जब मायके आती हैं, घर आंगन खिल उठता है।”
मन ही मन सोचती रूपा ने अपने हाथ तेज़ कर दिये थे। रुपा आज जल्दी ही उठ गई थी। साफ सफाई और रसोई के काम करने में नाश्ता करने का भी समय नहीं मिल पाया था।
“जल्दी से रसोई का काम निपटे तो एक रोटी खा लू वर्ना अगर गर्मियों के दिन में भूखे पेट तबियत ख़राब हो गई तो माँजी नाराज़ हो जायेंगी।”
रूपा अभी ये सोच ही रही थी कि दरवाजे पे गाड़ी की हॉर्न बजने लगी।
लगता है वे लोग आ गए, ये सोच दरवाजे की ओर उसके बढ़ते कदम अपनी अस्त-व्यस्त हालत देख रुक गए। कमरे की ओर बाल ठीक करने बढ़ी ही थी कि माँजी ने आवाज़ लगा दी।
“कहाँ रह गई बहु? जल्दी पूजा घर से आरती की थाल ले आ।”
माँजी की आवाज़ सुन अपने हाथों से ही बाल समेट रूपा दौड़ कर थाली लेने भागी।
ख़ुशी से दोहरी होती रमा जी ने तनु और अमन जी की आरती और नज़र उतार अंदर बिठाया। चहकती तनु अपने घर वालों से मिल थोड़ी भावुक हो गई। सबसे मिल जैसे ही रूपा के पास आयी तो चौंक उठी।
मात्र छः महीने की नई दुल्हन का चेहरा इतना कांतिहीन, उदास ऑंखें और उलझें बाल। कहीं से भी रूपा का परिचय घर की इकलौती नई बहु होने का परिचय नहीं दे रहे थे। अपनी भाभी का ऐसा हाल देख एक पल तो तनु बेचैन हो उठी लेकिन अमन साथ थे तो नाजुक मौका देख चुपी साध ली।
थोड़ी बातचीत के बाद खाने-पीने का दौर चला और एक बार फिर रूपा रसोई में लग गई। गर्मियों के दिन और भरी दोपहर में गर्मागर्म रोटियां सेकती और पकोड़े उतारती खाली पेट रूपा का सर घूम गया। वो तो राजन वहीं थे जो उन्होंने रूपा को थाम लिया। वर्ना जाने क्या होता?
“तुम आराम करो रूपा। जाओ कमरे में जाओ। मैं माँ को बोल देता हूँ वो बाकि काम देख लेंगी।” रूपा की हालत राजन से देखी नहीं जाती लेकिन जब भी वो कुछ कहता रमा जी नाराज़ हो उठती। नई शादी थी ऐसे में पत्नी का खुल का पक्ष ले भी नहीं पाता राजन।
“नहीं राजन, माँजी को कुछ मत बोलो। देखो सबका खाना तो हो ही गया है। ये मीठा दे दूं तो कमरे में जाऊंगी।”
रूपा ने खुद को किसी तरह संभाल काम निपटाया और कमरे में चली गई।
शाम तक अमन जी भी वापस लौट गए। दामाद के सामने सब्र रख रही रमा जी ने तनु का हाथ पकड़ा और कमरे की ओर बढ़ चली, “चल बेटा कितने दिन हो गए तुझसे अकेले में जी भर बातें किये।”
तनु भी तो इसी मौके की तलाश में थी।
“कैसी है मेरी बच्ची? तेरी सास कैसी है? तेरा ध्यान तो रखती है ना? ये तेरे हाथ क्यों रूखे लग रहे हैं। कहीं घर के सारे बर्तन तुझसे ही तो नहीं धुलवाते? बाल भी रूखे हो गए। चल तेल डाल दूं बालों में…” और भी ऐसे ही जाने कितने प्रश्न एक साथ रमा जी ने तनु से पूछ डाले।
अपनी माँ की बेचैनी देख तनु के चेहरे पर व्यंगमिश्रित मुस्कान फ़ैल गई।
“मेरी सास तो बहुत अच्छी है माँ। मेरा बहुत ख्याल भी रखती है। इतनी अच्छी मेरी किस्मत है कि सास के रूप में मुझे दूसरी माँ मिल गई लेकिन शायद तनु भाभी मेरे जैसी भाग्यशाली नहीं।”
तनु के मुँह से ऐसी बात सुन रमा जी चौंक उठी…
“ये क्या कह रही है तनु?”
“बिलकुल सही कह रही हूँ माँ। आपको मेरे रूखे हाथ तो दो मिनट में दिख गए लेकिन क्या आपको भाभी का कांतिहीन चेहरा उनके रूखे हाथ और उनकी उदास ऑंखें नहीं दिखती? आप बहुत अच्छी माँ तो हैं लेकिन शायद आप अच्छी सास नहीं बन पायी।
मैं आपकी बेटी हूँ तो मेरी कितनी फ़िक्र है। आपको लेकिन आप ये क्यों भूल गई कि तनु भाभी भी तो किसी की बेटी है। आप मुझे बुलाने को कितनी बेचैन रहती थी लेकिन क्यों कभी भाभी को उनके घर भेजना जरुरी नहीं समझा?
क्या भाभी का दिल नहीं करता होगा अपने घर जाने का अपनी माँ बाबूजी के साथ कुछ पल बिताने का? जैसे आप मेरे इंतजार में व्याकुल हो रही थी। क्या भाभी की माँ नहीं होती होंगी? आखिर उन्होंने भी तो अपनी बेटी को कितने समय से नहीं देखा।
मुझे बहुत दुःख हो रहा है कि मेरी प्यारी माँ जिन्होने सबको इतना प्यार दिया, उनके हाथ अपनी बहु के लिये खाली रह गए। अभी भी देर नहीं हुई माँ, तनु भाभी जैसी बहु बहुत किस्मत से मिलती है। माँ उनकी कद्र करो।”
रमा जी, दंग रह गई थी। कहाँ तो वो अपनी बेटी का हाल सुनने को बेचैन हो रही थी और कहाँ उनकी खुद की बेटी उनकी गलतियां गिनवा रही थी और गलत भी कहाँ थी तनु। एक एक बात सच तो थी।
“मुझसे भूल हो गई तनु। ऐसी लक्ष्मी समान बहु की कद्र नहीं की मैंने।” पछतावा आंसू बन छलक उठा था रमा जी के आँखों से।
“अभी भी देर नहीं हुई माँ। आपकी बेटी आपके पास आयी है तो अब भाभी की माँ के पास भी कुछ दिन उनकी बिटिया भेज दो। कुछ दिन मैं आपके लाड उठा लूं तो कुछ दिन भाभी भी। आखिर हम बेटियां तो होती ही चिड़िया हैं बस कुछ दिन मायके चहचहाने आ जाती हैं।”
आंसू पोंछती रमा जी उठ खड़ी हो गई, “चल तू आराम कर तनु मुझे बहुत काम है।”
“अभी क्या काम माँ?”
“फल मिठाई के डब्बे बंधवाने है और नये कपड़े भी तो लेने हैं। आखिर अपनी बहु को पहली बार उसके मायके जो भेजना है।”
इमेज सोर्स: Still from Tanishq Jewellers ad, YouTube
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