कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

आपने शादी में अपनी बेटी दी और हमने अपना बेटा…

शालिनी ने खूबसूरत डोली का इंतज़ाम किया था, जिसमें बिठा कर श्रद्धा को घर तक लाया गया और ढोल नगाड़ों के साथ उसका गृह प्रवेश हो गया।

Tags:

शालिनी ने खूबसूरत डोली का इंतज़ाम किया था, जिसमें बिठा कर श्रद्धा को घर तक लाया गया और ढोल नगाड़ों के साथ उसका गृह प्रवेश हो गया।

सरोज और राकेश ख़ुशी और ग़म के सागर में गोते लगा रहे थे। उनकी आंखों में बेटी की शादी की अगर खुशी थी तो विदाई की बेला का दुःख भी नज़र आ रहा था। कन्या दान करते वक्त उनके हाथ कांप रहे थे।

राहुल के माता-पिता शालिनी और वैभव अपनी बहू श्रद्धा को अपने घर ले जाने की ख़ुशी में सराबोर थे। बेटी की चाहत उनके दिल में समाई हुई थी, आज श्रद्धा को पाकर वह पूरी हो रही थी।

राहुल के घर मेहमानों की भीड़ थी, सभी बारात के वापस आने का इंतज़ार कर रहे थे। बारात के आते ही श्रद्धा के गृह प्रवेश की तैयारी शुरू हो गई। शालिनी ने खूबसूरत डोली का इंतज़ाम किया था, जिसमें बिठा कर श्रद्धा को घर तक लाया गया और ढोल नगाड़ों के साथ उसका गृह प्रवेश हो गया।

रात का वक़्त था, शालिनी बहुत थक गई थी। देर रात वह अपने कमरे में आकर लेटी हुई थी कि वैभव कमरे में आ गए।

“अरे शालिनी बहुत थक गई हो ना, तुम्हें कोई गोली दूं क्या थकान उतर जाएगी।”

“नहीं वैभव, इतनी ख़ुशी में थकान तो बिना दवाई के ही उतर जाएगी। हमारा परिवार पूरा हो गया, अब हम तीन से चार हो गए। श्रद्धा की मौजूदगी हमारा अकेलापन दूर कर देगी। वह अपना ट्रांसफर इसी शहर में करवा लेगी। कितना मजा आएगा ना वैभव, जब सब मिल जुल कर रहेंगे।”

तीन दिन बाद सुबह-सुबह ही श्रद्धा की मां उसे लेने आ गई। तब शालिनी और सरोज, दोनों समधन गले मिलकर, बैठ कर बातें करने लगी।

बातों ही बातों में सरोज ने कहा, “शालिनी तुम कितनी किस्मत वाली हो। हमने पाला-पोसा, पढ़ाया, लिखाया अपनी बेटी को और फिर कन्या दान कर दिया। तुम्हें तो बिना मेहनत के ही एक बेटी मिल गई। है ना!”

शालिनी कुछ बोलती, उससे पहले ही श्रद्धा वहां आ गई और अपनी मां से बोली, “मम्मा नौकरी पर जाना पड़ेगा, अभी और छुट्टी नहीं ले सकती। मैं बाद में घर आ जाऊंगी।”

फ़िर शालिनी की तरफ देखते हुए वह बोली, “मम्मी जी, मैं कल ही अपनी नौकरी पर जा रही हूं और हां राहुल ने अपना ट्रांसफर भी वहां पर ही करवा लिया है, इसलिए वह भी मेरे साथ बेंगलुरु जा रहा है।”

शालिनी अवाक रह गई, वह श्रद्धा के मुंह से निकले शब्दों को स्वीकार करने में असहज हो रही थी, किंतु कर तो कुछ भी नहीं सकती थी।

सरोज ने शालिनी की तरफ देखा तो उसकी नज़रें स्वतः ही नीचे झुक गईं।

शालिनी ने अपने आप को संभाला और सरोज का हाथ पकड़ कर बोली, “सरोज जी, अब जैसे श्रद्धा आपके घर कभी-कभी आएगी, वैसे ही राहुल भी हमारे घर मेहमान बनकर कभी-कभी ही आएगा।”

इतने में वैभव भी वहां आ गए और उन्होंने वह सारी बातें सुन ली। उस समय वैभव और शालिनी भी ख़ुशी और ग़म के सागर में गोते लगा रहे थे। बेटे का घर बसने की अगर ख़ुशी थी तो बेटे की विदाई का दुःख भी उनकी आंखों में साफ-साफ नज़र आ रहा था।

इमेज सोर्स: gauravkumar form pixabay via Canva Pro

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

3 Posts | 3,009 Views
All Categories