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"बहू आयेगी तो सब ठीक हो जायेगा!" ऐसा सोच कर बहुत देखभाल कर निर्मला जी बहु के रूप में रूचि को पसंद कर घर ले आयीं।
“बहू आयेगी तो सब ठीक हो जायेगा!” ऐसा सोच कर बहुत देखभाल कर निर्मला जी बहु के रूप में रूचि को पसंद कर घर ले आयीं।
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कैब तेजी से सड़क पे भाग रही थी और निर्मला जी का मन उतनी ही तेजी से अतीत की ओर भागे जा रहा था।
“शांत हो जाओ निर्मला बस कुछ देर की बात है”, पति राधेश्याम जी के तसल्ली के बोल भी आज निर्मला जी के मन की बेचैनी कम नहीं कर पा रहे थे।
“लड़के तो ऐसे ही होते हैं। बहू थोड़ा एडजस्ट तो करना ही पड़ता है लड़कियों को”, नई नवेली बहू के चेहरे पे लाल निशान देख कर भी पुत्र मोह में निर्मला जी बेटे की बजाय बहू को ही सांसारिक नियम समझाने लगती थी।
जानती थी निर्मला जी किस स्वभाव का था उनका बेटा अविनाश। गुस्सा तो जैसे नाक पे बैठा रहता था। बचपन की गलतियों पे जब निर्मला जी अविनाश पे क्रोध करतीं, तो दादी-दादा-बुआ ढाल बन अविनाश के सामने खड़े हो जाते।
“एक ही तो बच्चा है। कौन सा तूने दो-चार बच्चे जने हैं। जो मेरे लल्ला को मारने दौड़ती है।”
दादी-दादा और बुआ की शह पे छोटी छोटी ज़िद बड़ी बहुत बड़ी बनती चली गई। फिर दादी-दादा नहीं रहे और बुआ अपने ससुराल चली गई और रह गए किशोरवय अविनाश, और उसकी ज़िद, क्रोध को सहते उसके मम्मी-पापा।
पढ़ने लिखने में होशियार अविनाश ने इंजीनियरिंग कर नौकरी भी करने लगा। समय के साथ कुछ बदलाव तो आये थे अविनाश में, लेकिन गुस्से पे अभी भी नियंत्रण नहीं रहता।
रूचि, शांत स्वाभाव की मिलनसार लड़की थी। जल्दी ही ससुराल में रच बस गई। अविनाश भी रूचि के साथ ख़ुश दिखता था। बेटे-बहू को ख़ुश देख निर्मला जी ने भी चैन की सांस ली, लेकिन उन्हें क्या पता था की ये ख़ुशी चंद दिनों की थी।
नई शादी का खुमार उतारा तो अविनाश के क्रोध से रूचि का परिचय हुआ। छोटी-छोटी बातों पे अविनाश नाराज़ हो उठता और रूचि कांपती रहती। वहीं निर्मला जी और राधेश्याम जी सब देख सुन कर भी मौन रहते जैसे बरसों की अपनी जिम्मेदारी रूचि को सौंप निश्चिंत हो गए हों। अविनाश के तेज़ स्वर शायद बंद दरवाजों के अंदर थप्पड़ों में बदल गए थे। रूचि के लाल गाल और बदन के निशान तो यही गवाही देते थे।
शादी के कुछ समय बाद रूचि की तरफ से खुशखबरी आ गई घर में सब ख़ुश थे सिवाय रूचि के। अपनी संतान के आने के ख़ुशी में अब अविनाश में थोड़ा संभल गया।
इसी बीच रिश्तेदारी के किसी विवाह में शामिल होने निर्मला और राधेश्याम जी को जाना पड़ा। रूचि का छठा महीना चल रहा था। कमर दर्द से परेशान रूचि की झपकी ऐसी लग गई कि अविनाश के बेल बजाने पे भी नहीं खुली।
कुछ देर बाद रूचि की आंख खुली और बेल की आवाज़ सुन तेजी उसने दरवाजा खोला ही था कि क्रोध के आवेग में अविनाश ने थप्पड़ रसीद कर दिया रूचि को। सूखे पत्ते सी रूचि पेट के बल गिर पड़ी। असीम दर्द से ऐसी चीख निकली कि जिसने सुना उसका ह्रदय काँप उठा।
दर्द से तड़पती रूचि को देख अविनाश को अपनी गलती का आभास हो चुका था। दर्द से तड़पती रूचि को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।
“जल्दी चलो हॉस्पिटल आ गया निर्मला”, राधेश्याम जी आवाज़ सुन निर्मला होश में आयी और कैब से उतर भाग चली।
“माफ़ कीजियेगा हम आपके बच्चे को नहीं बचा पाये। रूचि लेकिन खतरे के बाहर है और हां अब रूचि कभी माँ नहीं बन पायेगी।”
अफ़सोस प्रकट कर डॉक्टर चली गई और सर थाम वहीं अविनाश बैठ गया। जिन थप्पड़ों को मारने में वो अपनी मर्दानगी समझता था, आज उसकी कीमत अपनी संतान के रूप में चुका रहा था। डॉक्टर की बात सुन गश खाती निर्मला को किसी तरह राधेश्याम जी ने संभाला।
पूरे दो दिन बाद होश आया रूचि को। अपराधी की तरह सर झुकाये अविनाश खड़ा था रूचि के सामने तो निर्मला जी और राधेश्याम जी का भी सर शर्म से झुका था। सब देख कर भी अनदेखा करने का नतीजा आज आँखो के सामने था।
“मुझे इनके चेहरे भी नहीं देखने डॉक्टर, इन्हें निकालो यहाँ से। ये सब कातिल हैं मेरे अजन्मे बच्चे के!”
आज पहली बार रूचि चीखी थी।
तुरंत डॉक्टर ने तीनों को कमरे से बाहर कर दिया। अपनी संतान को खोने के ग़म में रूचि पागल सी हो उठी थी। रूचि के कहने पे डॉक्टर ने तुरंत पुलिस को ख़बर कर दी।
घरेलु हिंसा के केस में पुलिस ने तुरंत ही अविनाश और उसके मम्मी-पापा को गिरफ्तार कर लिया।
“काश जो मैंने पहले थप्पड़ पर ही अपनी आवाज़ उठाई होती तो आज मुझे ये दिन ना देखना पड़ता।”
अपनी गलती पे रूचि को भी बहुत पछतावा था लेकिन अपने बच्चे के कातिल को जेल भेजने का सुकून भी था। समय के साथ रूचि के शारीरिक घाव तो भर गए लेकिन घरेलु हिंसा के घाव जो उसके मन पे लगे थे वो भरने में जाने कितने बरस लगते।
इमेज सोर्स: Still from Awareness Against Domestic Violence/Presented by Punjab Police Patiala/Mr & Mrs VeeRaj, YouTube
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