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हमारा वॉशरूम साफ़ रखो, लेकिन इस्तेमाल मत करो…

तुम्हें कोई हक़ नहीं बनता कि हमारे बराबर बैठो, हमारे बर्तन में खाना खाओ, या हमारे बाथरूम को इस्तेमाल करो। तुम्हारी ये सारी चीज़ें अलग हैं... 

तुम्हें कोई हक़ नहीं बनता कि हमारे बराबर बैठो, या हमारे बर्तन में खाना खाओ,  या फिर जरुरत पर हमारे बाथरूम को इस्तेमाल करो। तुम्हारी लिए ये सारी चीज़ें अलग हैं… 

मेरी इस बात से तो आप सभी जरूर सहमत होंगे की आज हर घर में हॉउस हेल्प की जरुरत होती है। इनके सहायता के बिना तो हम महिलायें अपने काम को समय पर और सुचारु रूप से करने की कल्पना भी नहीं कर सकती हैं।

ये हॉउस हेल्प वो होती हैं जो हमारे लिये सब कुछ करती हैं – हमारे बच्चों के लिये खाना बनाती हैं, घर साफ करती हैं, कपड़े धोती हैं, यहाँ तक की हमारे टॉयलेट तक साफ करती हैं। लेकिन जरा सोचिये उनके साथ हम क्या करते हैं?

क्या उनको इज़ाज़त है हमारे बराबर बैठने की, हमारे बर्तन में खाना खाने की,  या फिर जरुरत पर हमारे बाथरूम को इस्तेमाल करने की? नहीं ना!

आज काफ़ी दिनों बाद टीवी देखने बैठी थी। चैनल बदलते बदलते मेरी नज़र एक शार्ट डिजिटल ऐड फ़िल्म पे गई जिसके कंटेंट ने मुझे ना सिर्फ ऐड देखने पे मजबूर कर दिया साथ है बहुत कुछ सोचने पे भी।

अमृता खानविलकर अभिनित इस शार्ट डिजिटल ऐड फ़िल्म में इसी महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया है जो अमूमन हर घर में सालो से होता आ रहा है लेकिन आज तक किसी ने इस विषय की उठाना तो दूर बात करना भी जरुरी नहीं समझा है।

रोका और वी आर वाटर फाउंडेशन द्वारा  #clearyourheart,  का खूबसूरत और सशक्त मैसेज देती ये शार्ट डिजिटल फ़िल्म हमारा ध्यान हमारे हॉउस हेल्प की उस समस्या की तरफ आकर्षित करती है जो लाखो हॉउस हेल्प हर दिन झेलती हैं और वो है उनका घरों के टॉयलेट के इस्तेमाल पर रोक, वो भी उन घरों में जहाँ वो काम करती हैं।

जब बात हॉउस हेल्प की बाथरूम इस्तेमाल करने पे आती है तो…

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आज भी कई परिवार है जो खुद को मॉडर्न और प्रगतिशील मानते हैं लेकिन जब बात हॉउस हेल्प की बाथरूम इस्तेमाल करने पे आती है तो उनकी सोच पिछड़ी हो जाती है।

भारत देश एक प्रगतिशील देश है कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जहाँ हमने प्रगति नहीं की है, लेकिन ये विडंबना ही है की ऐसे प्रगतिशील देश में रहते हुए भी हम कई मामलों में रूढ़िवादी सोच रखते हैं, खास कर समाज के पिछड़े तबके के लोगों के प्रति।

हमारी अपने बॉस और अपने ऑफिस से इतनी उम्मीदें होती हैं लेकिन जहां खुद बॉस बनने की बारी आती है, तो…

ऐसी ही एक रूढ़िवादी मानसिकता हम भारतीय परिवारों की अपने घरेलु सहायकों को अपना टॉयलेट इस्तेमाल  करने नहीं देने की भी है। एक बार सोचियेगा ज़रूर कि क्या ये उनका हक़ और हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती कि अपने उन घरेलु सहायकों को हम गुड वर्किंग कंडीशन प्रदान करें जो हमारे लिये इतना कुछ करती हैं? हमारी अपने बॉस और अपने ऑफिस से इतनी उम्मीदें होती हैं लेकिन जहां खुद बॉस बनने की बारी आती है, तो अपने स्टाफ़ को ऐसे ट्रीट करते हैं!

आखिर क्यों ये भेदभाव हम करते हैं? कैसा लगता अगर हमारे काम की जगह पे हमारे साथ ऐसा होता? ये विडंबना नहीं तो क्या है कि हमारे घरों में शौचालय होते हुए भी अगर उन्हें बेहद जरुरत हो तो भी हमारी हॉउस हेल्प (अधिकांश महिलायें) को इसका इस्तेमाल करने की इज़ाज़त नहीं होती।

क्या ये भेदभाव सिर्फ सामाजिक और आर्थिक स्तर में घोर अंतर के कारण है?

आज जब हम धर्म और जाति के प्रति अपनी सोच उदार बना रहे हैं। धर्म और जाति के नाम पे भेदभाव वाली सोच में जब हम बदलाव ला रहे हैं तो फिर हॉउस हेल्प के मामले में अपनी सोच क्यों नहीं बदलते? या फिर ये कहा जाए कि ये भेदभाव हम सिर्फ सामाजिक और आर्थिक स्तर में घोर अंतर के कारण करते हैं?

हमारे दोस्त रिश्तेदार तो बेझिझक हमारे घर के टॉयलेट को इस्तेमाल करते हैं क्यूंकि उनका सामाजिक और आर्थिक स्तर हमारे बराबर का होता है, लेकिन हमारी हॉउस हेल्प ऐसा कर दे तो हमारी भैंवे तन जाती हैं!

अगर वो टॉयलेट इस्तेमाल करने की इज़ाज़त मांगे या इस मुद्दे तो आवाज़ उठाये तो तब तो शायद उन्हें अपनी नौकरी से भी हाथ धोने की नौबत आ सकती है। आखिर इतना बोलने वाली हॉउस हेल्प तमीज वाली कैसे हो सकती है? और भला हम क्यों रखे इतनी ऐटिटूड वाली हॉउस हेल्प? है ना!

शायद हम से बहुत से लोग ऐसा ही सोचते होंगे।

लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि ऐसा व्यवहार हॉउस हेल्प के प्रति सरासर गलत होता है और क्या ऐसा कर हम गरीबो का शोषण कर रहे होते हैं? क्या सिर्फ हॉउस हेल्प को हर माह तनख्वाह देने भर से हमारी ड्यूटी पूरी हो जाती है? क्या उन्हें हक़ नहीं की एक सुरक्षित और सुविधाजनक काम करने की जगह उन्हें मिले?

जब हम जॉब करते है तो हम ये जरूर सुनिश्चित करते हैं कि हमारे ऑफिस में वो सब सुविधा मौजूद हो जो दैनिक जीवन के लिये अवश्यक है खास कर महिलाओ के लिये तो फिर हम अपने ही घर में अपनी हॉउस हेल्प को उन्हीं बेसिक सुविधाओं से कैसे वंचित रख सकते हैं?

अब समय आ गया है की हम सिर्फ कपड़ों से ही नहीं सोच से भी मॉडर्न और प्रतिशील बनें और अपने टॉयलेट के दरवाजे अपने हॉउस हेल्प के लिये भी खोलें।

मैंने तो अपने घर में इसकी शुरुआत कर दी है अब आपकी बारी है अपने घरेलु सहायकों को घर जैसा माहौल देने की और उनकी काम की जगह को आरामदायक बनाने की।

इमेज सोर्स: Still from Roca short commercial, YouTube 

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