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समधन जी, प्यार से दिया गया कोई भी उपहार छोटा या बड़ा नहीं होता…

सौम्या को जैसे ही पता चला कि उसके मम्मी-पापा आये हैं। वो दौड़कर उनके पास आयी। अपने पापा को सामने देख वो उनके गले लग गयी।

सौम्या को जैसे ही पता चला कि उसके मम्मी-पापा आये हैं। वो दौड़कर उनके पास आयी। अपने पापा को सामने देख वो उनके गले लग गयी।

“बहू! मैंने तो समधन जी को फोन करके बोल दिया है। एक बार तुम भी ध्यान से बोल देना। सबको सपरिवार आने के लिए आखिर तुम्हारा जन्मदिन है। तो पार्टी में उनका आना तो जरूरी है”, शकुंतला जी ने अपनी बहू सौम्या से कहा।

सास को चाय देती सौम्या ने “हाँ “तो कह दिया। लेकिन उसको सच बताने की हिम्मत नहीं हो रही थी। कैसे कहे कि उसका मन नही की उसके माता-पिता और भाई जन्मदिन की पार्टी में आएँ?
उसे लग रहा था कि कहीं पार्टी में आने पर किसी ने उसके माँ-पापा को कुछ कह दिया तो? या वो लोग कहीं खुद को अपमानित ना महसूस करने लगें। अगर किसी ने कुछ भी कहा या किया तो वो उनका अपमान बर्दाश्त नहीं कर पायेगी।

दअरसल, सौम्या एक माध्यम वर्गीय परिवार की बेटी थी जिसकी शादी शहर के नामी गामी रईस बिजनेस मैन आलोक सक्सेना के इकलौते बेटे अनुज से हुई थी। सौम्या के पापा प्राइवेट स्कूल के अध्यापक थे और मां गृहणी थी। उन्होंने अपनी सारी कमाई अपने बच्चो की पढ़ाई पर खर्च कर दी थी। उन्होंने सौम्या को एम.बी.ए कराया था। सौम्या का भाई इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। इस तरह सौम्या के मायके और ससुराल के परिवेश और रहन सहन में जमीन आसमान का अंतर था।

सौम्या की शादी अनुज से छ: महीने पहले लव मैरिज हुई थी क्योंकि अनुज ने पहली ही नजर में अपने साथ पढ़ने वाली सौम्या को अपना दिल दे दिया था अनुज की पसंद सौम्या से जब आलोक और शकुंतला जी मिले तो सौम्या उन्हें भी बहुत पसंद आयी। और उन्होंने उसे अपनी बहू बनाने का फैसला किया।

सौम्या की शादी  को लेकर आस पड़ोस और समाज के लोगों ने बहुत सी मनगढ़ंत बातें बनाईं।

“अरे!अमीर घर का लड़का पटा लिया लड़की ने अब इन लोगों को किस बात की चिंता…”

“अरे!ऐसी क्या कमी थी लड़के में जो ऐसे घर की लड़की को अपनी बहू चुना उन लोगों ने…”

और भी ना जाने कितनी बाते लेकिन सौम्या के ससुराल और मायके वालों पर इसका कोई असर नहीं हुआ।

रात को सौम्या ने अनुज से कहा “अनुज! सुनो, मैं सोच रही हूँ कि अपने घर से मैं किसी को भी पार्टी में ना बुलाऊँ।”

अनुज ने कहा, “क्यों? कुछ हुआ क्या? किसी ने कुछ कहाँ क्या तुम्हें?”

सौम्या ने कहा, “नहीं, किसी ने कुछ नहीं कहा।”

अनुज ने कहा, “तो फिर? आखिर माँ-पापा हैं वो तुम्हारे। उनका हक बनता है तुम्हारे जन्मदिन में आने का। तुम कहो तो मैं फोन कर के कह देता हूँ। वैसे साले साहब से सुबह ही बात हुई थी उनको तो निमंत्रण दे दिया है मैंने।”

सौम्या ने मुस्कुराते हुए बात को टाल दिया और कहा ठीक है बोल देती हूँ। सौम्या ने फोन करके अपने माता पिता को पार्टी में आने के लिए कह दिया।

अगले दिन सौम्या के जन्मदिन की पार्टी थी पार्टी शहर के फाइव स्टार होटल में रखी गयी थी शहर के जाने माने रईस और अमीर लोग पार्टी में आये थे। सौम्या ने महंगे नीले रंग के डिजाइनर लहंगे के साथ कुन्दन की डिजाइनर ज्वैलरी पहन रखी थी जिसमे वो बेहद खूबसूरत नजर आ रही थी। तभी पार्टी हाल में सौम्या के मम्मी पापा और भाई दाखिल हुए, जिनके कपड़े तो अच्छे थे लेकिन अमीरों की सजी महफ़िल मे शामिल लोगों के बराबर नहीं थे।

पार्टी का माहौल देखते सौम्या के मम्मी-पापा सकुचाते हुए एक कोने में खड़े हो गए। दोनों चुप्पी साधे खड़े रहे। कहते भी क्या? उन्हें तो पार्टी से ज्यादा अपनी बेटी से मिलने की खुशी थी जिसकी वजह से उन्होंने मना नहीं किया था।

सौम्या को जैसे ही पता चला कि उसके मम्मी-पापा आये हैं। वो दौड़कर उनके पास आयी। अपने पापा को सामने देख वो उनके गले लग गयी। और लाख कोशिश करने पर भी उसकी आँखों के आंसुओं को वो रोक ना पायी। बाप-बेटी का स्नेह देखकर शीला जी की आंखें नम हो गयीं।

मुठी में लिए रुमाल से उन्होंने आंसुओं को पोछते हुए कहा, “अब बस भी करो आप। मेरी बेटी का मेकअप मत खराब करो, चलो बहुत लाड-प्यार हो गया। मेरी बेटी कितनी प्यारी लग रही है। भगवान ऐसे ही तेरी खुशियां बनाए रखे। भगवान हर बुरी नजर से बचाये मेरी बेटी को।”

“मां तुम भी ना”, कहते हुए सौम्या हंसकर अपनी माँ के गले से लगी तो उनका गला बेटी को खुश देखकर खुशी से भर्रा गया कि तभी वहाँ उन लोगों के आने की खबर सुनकर सौम्या के सास-ससुर भी उनका स्वागत करने आ गए। शकुंतला जी ने और आलोक जी ने गले लगकर बड़े ही गर्मजोशी से उनका स्वागत किया।

शीला जी को शकुंतला जी अपनी सहेलियों से तो आलोक जी दीनानाथ जी को अपने मित्रों से बड़े शान से खुशी खुशी मिला रहे थे। सब खुश थे खाना-पीना केक कटिंग नाच गाने के बाद जब विदाई की बारी आयी तो शीला जी चुपके से सौम्या को एक तरफ लाकर उसके हाथ में एक डिब्बी पकड़ाते हुए बोलीं, “बिटिया! ये तेरे लिए हमारी तरफ से छोटा सा उपहार है। पता नहीं तेरे लायक है भी या नहीं।”

उपहार देखते सौम्या की आंखों में आँसू आ गए। उसमें उसकी मां के कान की छोटी-छोटी झुमकिया थीं, जो एक मात्र उनके पास सोने का गहना था उनके पास, जिसे वो शादी ब्याह या किसी खास मौके पर पहनती थीं। उसके पापा ने उसकी माँ के लिए उनके शादी की सालगिरह पर बनवाई थीं वो।

माँ के गले लग कर सौम्य बोली, “माँ ये दुनिया की सबसे कीमती उपहार है मेरे लिए और मैं इसे लाखों रुपये देकर भी नहीं खरीद पाऊंगी। क्योंकि इसमें मेरी मां का प्यार आशीर्वाद और मेरे पापा की मेहनत की कमाई है। लेकिन माँ तुम क्या पहनोगी? ये मुझे दे दिया तो। मैं ये नहीं ले सकती। आप रखो इसे।”

“दीदी! तुम चिंता मत करो। बस कुछ दिनों की बात है। बस मेरी नौकरी लगते मैं मां के लिए सबसे पहले झुमकिया ही बनवाऊँगा…”

तभी पीछे से सौम्या के सास ससुर आ गए। शकुंतला जी ने शीला जी को गले लगा कर कहा, “बहनजी  कीमती उपहार नहीं हमारे लिए तो हमारी बहू की बेशकीमती खुशियां मायने रखती हैं। और आप लोग उसकी बेशकीमती खुशियां हो, क्योंकि किसी भी बेटी को अपने माता-पिता से सबसे ज्यादा लगाव होता है। आप ये झुमकिया रखिए और बेटा जब तुम इंजीनियर बन जाना तब तुम दीदी को जब जो मन करे देते रहना, लेकिन आज और अभी नहीं। उसके बाद आप खुशी खुशी ये झुमकिया दे देना सौम्या को जब आपके पास भी दूसरी हों। एक बेटी की ख़ुशी सिर्फ उपहार या गहने से नहीं होती, ये उसकी मां का स्पर्श और प्यार से होती है जो उसे हमेशा अपने माँ के आसपास होने का एहसास दिलाते हैं। मैं ये जज्बात और इस एहसास को अच्छी तरह समझती हूँ क्योंकि मैं भी तो कभी एक बेटी थी”, शकुंतला जी ने कहा।

“रही बात अमीरी की तो हम लोग भी कोई सोने का चम्मच लेकर नहीं पैदा हुए थे। हम दोनों के माता-पिता भी एक किसान थे। हम अमीर जरूर हुए लेकिन अपना जमीर नहीं भूले हैं। इंसान को रिश्ते पैसों से नहीं दिल से निभाना आना चाहिए तभी रिश्ते लंबे समय तक चलते है। वरना पैसों के दम पर बने रिश्ते कच्ची मिट्टी के ढेर के जैसे होते हैं. जो ना जाने कब ढह जाएँ, कोई भरोसा नहीं।”

सौम्य के पिताजी ने कहा, “मैं धन्य हो गया, आप जैसा समधी पाकर। वरना लोग आजकल पैसों से ही इज्जत तौलते हैं और वजन के अनुसार ही अपना समय प्यार, अपनापन और सम्मान देते हैं। काश ऐसा सब सोचने वाले हो जाएं।”

सौम्या आज खुश थी क्योंकि उसके मन का डर निकल चुका था उसे अपने जन्मदिन पर सबसे कीमती उपहार अपने माता-पिता का सम्मान और सास-ससुर के रूप में माता-पिता मिल चुके थे।

प्रियपाठकगण, उम्मीद करती हूं कि मेरी ये रचना आप सबको पसन्द आएगी। आपकी राय क्या कहती है इस पर, जरूर बताएं।

इमेज सोर्स: Still from TVC DesiKaliah E7S85, YouTube

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