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"सही कहा सुजाता जी आपने, उमा यह नहीं कर सकती। लड़की अंतिम क्रिया करने लगी तो मरने वाले को मुक्ति कैसी मिलेगी?"
“सही कहा सुजाता जी आपने, उमा यह नहीं कर सकती। लड़की अंतिम क्रिया करने लगी तो मरने वाले को मुक्ति कैसी मिलेगी?”
राधेश्याम जी के घर मे मातम पसरा है, परिवारजन रो रहे हैं। राधेश्याम जी की पत्नी सुजाता जी का बहुत बुरा हाल है। उन्हें तो विश्वास भी नहीं हो रहा कि जो आदमी रात को अच्छा भला खाना खाकर सोया, वो सुबह उठा ही नहीं। राधेश्याम जी अपने पीछे अपना घर, परिवार और तीन बेटियां छोड़ गए हैं।
राधेश्याम जी की बड़ी बेटी उमा सरकारी टीचर है और पास के गाँव मे ही अपने पति के साथ रहती है और दोनों छोटी बेटियां भी कॉलेज में हैं। लेकिन तभी बरामदे में बैठे लोगों का तेज शोर आने लगा कि अंतिम संस्कार कौन करेगा?
राधेश्याम जी को कोई लड़का नहीं है और राधेश्याम जी के भाई का भी कोई बेटा नहीं था, जिससे यह अंतिम संस्कार करवा दिया जाए। तो सभी लोग अपने मत, विचार दे रहे थे। कोई कह रहा था कि अब किसी लड़के को गोद ले लिया जाए । फिर कोई बाह्मण इस कार्य को कर दे या फिर दूर के रिश्ते में कोई पुत्र या पोता हो तो वो अंतिमकिर्या को कर दे।
जितने मुँह उतनी बातें हो रही थीं। तभी राधेश्याम जी की बड़ी बेटी उमा ने यह सब सुना तो वो बाहर आकर सबसे बोली, “आप सब कैसी बातें कर रहे हो? जब हमारे परिवार में कोई लड़का नहीं है, तो क्या मेरे पिता का अंतिम संस्कार नहीं होगा?”
“मैं करूँगी अपने पिता का अंतिम संस्कार…!”
उमा ने सबसे कहा तभी पीछे से सुजाता जी ने उसका हाथ पकड़ा और बोलीं, “क्या कह रही तुम? तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया? अंतिम क्रिया कोई लड़की नहीं करती। समाज क्या कहेगा? तुम्हें हमने इतना पढ़ाया-लिखाया लेकिन तुमने समाज के रीति रिवाजों, संस्कारों को नहीं सीखा।
“उमा तुम अंदर जाओ। एक लड़की होकर तुम यह नहीं कर सकतीं”, सुजाता जी गुस्से में अपनी बेटी से बोली।
तभी और सब लोगों ने भी अपनी आवाज़ को बुलंद कर दिया, “सही कहा सुजाता जी आपने, उमा यह नहीं कर सकती। लड़की अंतिम क्रिया करने लगी तो मरने वाले को मुक्ति कैसी मिलेगी?”
“उसका जीवन और मरण तो पशु के समान हो जाएगा और स्वर्ग के सभी दरवाजे भी उसके लिए बंद हो जायेगे और हमारे समाज मे जो भी इस तरह का कदम उठायेगा उसको हमारे समाज से बाहर निकाल दिया जाएगा।”
“नहीं नहीं आप सब ऐसी बाते मत करिए मैं अपनी बेटी को समझाती हूँ। जैसा आप सब कहेंगे वैसा ही होगा,” रोते रोते सुजाता जी बोली।
“क्या माँ आप भी? आपने तो मुझे हमेशा ही अपना बेटा माना है और पिताजी ने तो कभी हम से ऐसा कुछ नहीं कहा।”
“अब आप सब भी सुन लीजिए ऐसा कौन सा कृत्य है जो आज की लड़की नहीं कर सकती। जिस तरह एक माँ अपने बेटा-बेटी में फर्क किये बिना उसे अपना दूध पिलाती है। एक पिता अपने बच्चों को समान रूप से प्यार करता है। उनका लालन-पालन करता है। जब खुद प्रकृति दोनों बच्चों को समान रूप से पानी, हवा देती है, तो आप सब अब भी उन पुराने रीति रिवाजों को क्यों इतना पकड़ कर बैठे हैं?”
“अब तो सबको मिलकर पुराने नियमों को बदल देना चाहिए। जब आज सरकार भी एक बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं करती, तब आप सब अपनी पंचायत क्यों चला रहे हो?” एक लड़की होना बड़े गर्व की बात है जो लड़की एक माँ बनकर एक बच्चे को जन्म दे सकती है तो वो किसी का अंतिम संस्कार करने का कदम भी उठा सकती है।”
“उसके कंधे इस पुण्य कार्य को करने के लिए हमेशा तैयार हैं। और आज मैं उमा, आप सबको यह बताना चाहती हूं, कि मैं आपके दकियानूसी, रूढ़िवादी रीति रिवाजों मानने से इंकार करती हूं और अपने पिता को मुखाग्नि मैं ही दूंगी। चाहे आप सब मेरे साथ हो या न हो मेरे पिता का आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ था और रहेगा।”
अपनी बेटी की बाते सुनकर सुजाता जी अपने आँसू पोंछते हुए बोली, “उमा, तुमने सही कहा, तुमने मेरी आँखों पर पड़े सामाजिकता के पर्दे को हटा दिया है। हाँ मेरी बेटी, हमारे समाज मे आज भी ऐसे कई रीति रिवाज हैं जिन्हें अब बदलने का समय आ गया है। चल, उठ मेरी बेटी अब हम दोनों मिलकर इस समाज के इस रिवाज को बदल देंगे।
अब आगे से हर लड़की को अपने पिता का अंतिम संस्कार करने का हक जरूर मिलेगा। चाहे तो मुझे उसके लिए हमारे समाज से ही क्यों न लड़ना पड़े।”
उमा की बात सुनकर सभी परिवार वाले भी उसकी बड़ाई करने लगे और मान गए कि अब बेटी बेटा बनकर अन्तिमसंस्कार की क्रिया भी करेगी।
इमेज सोर्स: MAA – Short Film/Ondraga Originals, YouTube
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