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बच्चों में डिप्रेशन बढ़ रहा है,, अगर आपका बच्चा डिप्रेशन में है तो आप अपने बिजी जीवन से समय निकालें और अपने बच्चों के साथ वक़्त बिताएं।
अक्सर हमें लगता है की डिप्रेशन या अवसाद सिर्फ बड़े आयु वर्ग के लोगों को ही होता है। छोटे बच्चे भी डिप्रेशन में हो सकते हैं यह बात जल्दी हमारे गले नहीं उतरती। हम बड़े हमेशा यही सोचते हैं की डिप्रेशन तो बड़े लोगों में होने वाली परेशानी है छोटे बच्चों का इससे क्या सम्बन्ध? लेकिन विश्वास करें डिप्रेशन सिर्फ बड़ी आयु वर्ग के लोगों को नहीं छोटे बच्चों को भी होता है और विडंबना ये है कि अक्सर ना हम बच्चों की समस्या को समझ पाते हैं और ना ही बच्चे हमें समझा पाते हैं।
क्या होता है डिप्रेशन? क्या लक्षण होते है डिप्रेशन के? कैसे पता करें की हमारे बच्चे डिप्रेशन में हैं या नहीं? अभिभावक के रूप में बच्चों में होने वाले डिप्रेशन को जानना इसलिए भी आवश्यक है क्यूंकि सही जानकारी होने पर ही हम अपने बच्चों की मदद कर पायेंगे ।
बच्चों में डिप्रेशन बड़ो के समान होता तो है लेकिन इसके लक्षण अलग हो सकते हैं। छोटे बच्चे डिप्रेशन में या तो बहुत उग्र या शांत हो जाते हैं और अपनी समस्या समझा नहीं पाते। वहीं टीन ऐज के बच्चे अपनी समस्याओं को छिपाने लग जाते हैं।
• पढ़ाई में मन ना लगना
• व्यवहार में बदलाव
• अकेले रहना
• खाने-पीने में अरुचि
• दोस्तों से ना मिलना
• फोकस की कमी
• किसी से बात ना करना
• नींद की आदत में बदलाव
• पेट दर्द या सर दर्द की लगातार परेशानी
• निराश या उदास रहना
• आत्मविश्वास की कमी
• अत्यधिक रोना
• चिड़चिड़ापन
• बच्चों में डिप्रेशन होने के एक नहीं कई कारण हो सकते हैं। कभी ये घर से सम्बंधित हो सकते हैं तो कभी स्कूल से भी हो सकते हैं।
• स्कूल में दूसरे बच्चों द्वारा बच्चे को तंग करना आम बात होती है लेकिन लगातार बुली होने से आत्मसम्मान में कमी स्वाभाविक है , जिससे बच्चे डिप्रेशन में आ सकते हैं।
• घरो में पढ़ाई का अधिक दवाब, किसी प्रियजन की मृत्यु, माता-पिता के अलगाव की समस्या भी डिप्रेशन की स्तिथि, बच्चों में ला सकती है ।
• बच्चों में कई बार स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्या भी अवसाद का कारण बन जाती है। ये समस्या शारीरिक और अनुवानशिंक दोनों हो सकतीं हैं।
• कुछ बच्चों में घर या स्कूल में हो रहे मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न भी उनके अवसाद में जाने की वजह बन जाती है।
• आसपास का माहौल और ब्रेन में केमिकल असंतुलन भी बच्चों में डिप्रेशन की मुख्य वजह माना जाता है ।
• ऐसा देखा गया है कि लड़कों के मुकाबले लड़कियों में डिप्रेशन की समस्या अधिक होती है ऐसा इसलिए भी होता है कि लड़कियां कई मामलों में भावुक होती हैं और लड़को की अपेक्षा अलग तरह से प्रतिक्रिया देतीं हैं।
“समय की कमी”, आज के समय में हर माता पिता की यही मुख्य समस्या होती है की उनके पास अपने बच्चों के साथ बिताने को समय ही नहीं है । अगर आपको ज़रा सा भी महसूस हो की आपका बच्चा डिप्रेशन में हो सकता है तो आप अपने बिजी जीवन से कुछ समय निकालें और अपने बच्चों के साथ वक़्त बिताये। उनसे बाते करें और आराम से पूछें की उनके मन में क्या चल रहा है? क्या वो किसी बात को लेकर परेशानी में हैं? यहाँ इस बात का खास ख्याल रखें की ऐसा करते वक़्त आपका रवैया दोस्ताना होना चाहिए क्यूंकि बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार कर के ही आप उनके मन की बात जान सकते हैं।
बच्चों में डिप्रेशन को दो भागो में बाँटा गया है । माइल्ड मॉडरेटर और मेजर डिप्रेशन । रोग के लक्षण को देख डॉक्टर उसका उचित इलाज करते हैं।
• डिप्रेशन का इलाज जिस तरह बड़ों का होता है, वैसे ही बच्चों का भी किया जाता है। इलाज शुरू करने से पहले मनोचिकित्सक, बच्चों में डिप्रेशन की गंभीरता को समझ कर थेरेपी और दवाईयां देते हैं। डिप्रेशन कम हो तो थेरेपी की मदद ली जाती है और यदि थेरेपी से डिप्रेशन कम ना हो तो दवाईयां दी जाती हैं।
• विशेषज्ञ के अनुसार, मनोचिकित्सा द्वारा डिप्रेशन के लक्षणों को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही बच्चों को दवाओं में विटामिन सी, विटामिन बी काम्प्लेक्स का उपयोग कर के भी डिप्रेशन के लक्षणों को कम किया जाता है।
बच्चे बेहद संवेदनशील होते हैं और माता-पिता के रूप में बच्चे उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी भी होते हैं। बच्चों के प्रति हमेशा हमें सचेत रहना चाहिए। बच्चों के स्वाभाव में होने वाले मामूली अंतर जरुरी नहीं अवसाद के ही लक्षण हो लेकिन उन्हें अनदेखा भी नहीं करना चाहिए। बच्चों में होने वाले डिप्रेशन को निम्न कुछ उपायों को आजमा कर कम किया जा सकता है –
• बच्चों की शुरुआती जिंदगी में ज्यादा बदलाव ना करें जब बच्चा छोटा हो तो बार बार स्कूल या घर ना बदलें। स्थान परिवर्तन से बच्चे मानसिक रूप से तनाव में आ जाते हैं।
• बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखें और बच्चों को घर में अच्छा माहौल दें। बच्चा निडर होकर अपनी बात रखे और माता-पिता के साथ गहरा रिश्ता बनाये, इसके लिये दोस्ताना माहौल बेहद आवश्यक है।
• बच्चे के साथ हर विषय पर बात करें। कई बार बच्चे डर से तो कई बार संकोच से, अपनी बात खुल कर नहीं बता पाते और ऐसे अधिकतर बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। बच्चे के साथ खुल कर हर विषय पर बातचीत करनी चाहिए, जिससे बच्चा अपने मन की सारी बातों और परेशानियों को बाँट सके।
• बच्चों की जरुरत को समझें। माता-पिता को बच्चों की जरूरतों को समझना चाहिए। बच्चों को प्यार के साथ स्वतंत्रता भी दें, ताकि वो सही गलत में अंतर समझ सकें।|
वर्ष 1980 से पहले बच्चों में होने वाले डिप्रेशन को रोग नहीं माना जाता था लेकिन आज के समय में डिप्रेशन बच्चों में होने वाली गंभीर बीमारियों में एक माना जाता है। डिप्रेशन की समस्या गंभीर समस्या होती है क्यूंकि इससे ना सिर्फ बच्चों में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है साथ ही उनकी कार्य क्षमता भी घट जाती है।
डिप्रेशन का इलाज आसान तभी होता है जब इसकी पहचान जल्दी हो जाती है। अक्सर शुरुआत के चरण में डिप्रेशन की पहचान इसके इलाज को आसान बना देती है। हमारे बच्चों में डिप्रेशन है ये बात स्वीकार करना हर माता-पिता के लिये निश्चय ही, बेहद कठिन हो सकता है लेकिन समझदारी इसी में होती है की हम सजग और सचेत रहें। बच्चों को खुशनुमा माहौल देना उनके साथ दोस्ताना व्यवहार रखना और सुरक्षित बचपन देना हर माता-पिता की ना सिर्फ जिम्मेदारी है, साथ ही कर्तव्य भी है और तभी वे अपने बच्चे को अवसाद रूपी इस बीमारी से बचाकर एक सुरक्षित भविष्य दे सकते हैं।
इमेज सोर्स- Still from Depression Short Film Mental Health Awareness, Content Ka Keeda via YouTube
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