कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

बहू, तुम्हारे जन्मदिन पर हम सब तुम्हारे हाथ का बना ही खाएंगे…

आखिर समर और आंचल की तो हालत ही खराब हो गई। जब सभी बहनें विदा हो गई तब जाकर समर और आंचल की जान में जान आई।

सुधा जी अपनी दोस्त माया जी और सुनीता जी के साथ बैठकर बातें कर रही थी कि तभी माया जी ने कहा, “अरे सुनीता, तेरी बहू ने तो बर्थडे पार्टी में गाउन पहना था ना। सचमुच बहुत सुंदर लग रही थी और रिटर्न गिफ्ट भी बहुत सुंदर सुंदर दिए थे।”

“अच्छा! सब कुछ मेरे बेटे और उनके दोस्तों ने ऑर्गेनाइज किया था। बच्चों ने वाकई रौनक लगा दी थी। वैसे पिछली बार तुम्हारी बहू का बर्थडे बहुत शानदार बना था!”

उसी पल दोनों सुधा जी की तरफ मुखातिब होकर बोली, “अरे सुधा, हमने तेरी बहू को तो कभी बर्थडे मनाते नहीं देखा!”

सुधा जी ने कंधे उचकाते हुए कहा, “अरे उसे तो जन्मदिन मनाना बिलकुल पसंद ही नहीं। बच्चे कितना पीछे पड़ते हैं पर यह है कि मानती ही नहीं।”

“यह गजब की बात सुनी। भला ऐसा भी कोई इंसान है जिसे जन्मदिन मनाना पसंद नहीं। कई लोग तो सिर्फ तोहफे के लालच में जन्मदिन मना डालते हैं।”

“हां, मेरी बहू अनोखी है इसलिए। जन्मदिन के दिन बाहर घूम आएगी लेकिन घरवालों के साथ जन्मदिन मनाना उसे पसंद नहीं”, इतना कहकर तीनों ठहाके मारकर हंसने लग गई।

इस हंसी की गूंज अंदर कमरे में बैठी सुधा जी की बहू आंचल के कानों में भी गई। यहां तक कि बाहर ये तीनों जो बातें कर रही थी, वह भी सुनाई दिया। वह बस मंद मंद मुस्कुरा दी और अतीत के गलियारों से होते हुए शादी के बाद अपने पहले जन्मदिन की उसे याद हो आई।

आंचल की शादी समर के साथ हुई थी। समर कमला जी और केशव जी का इकलौता बेटा है साथ ही वह इस परिवार में सबसे छोटा। उससे बड़ी चार बहने है। सभी ननदों की शादी हो चुकी थी और वे अपने अपने परिवार में खुश थी।

शादी के बाद अपने पहले जन्मदिन का आंचल को अच्छा खासा उत्साह था। ससुराल में उसका यह पहला जन्मदिन था। इस कारण पतिदेव भी अच्छे खासे उत्साहित थे। दोनों पति-पत्नी ने मिलकर कहीं बाहर जाने की प्लानिंग की थी। लेकिन सारी प्लानिंग उस समय धरी की धरी रह गई, जब सुबह की चाय के बाद समर और आंचल दोनों अपने माता-पिता से बाहर जाने की परमिशन लेने गए।

ससुर जी तो फिर भी मान गए, पर सासू मां ने यह कहकर मना कर दिया कि जन्मदिन जैसे दिन भी तुम लोग क्या घर के बाहर घूमोगे? क्यों बेवजह फालतू का खर्चा कर रहे हो। इससे अच्छा तो अपनी चारों बहनों को यहां बुला लो। वह भी काफी दिनों से यहां नहीं आई है तो वो लोग भी खुश हो जाएंगी।

आखिर मन मारकर समर को अपनी चारों बहनों को फोन करना पड़ा। चारों ननदे अपने पतियों और बच्चों के साथ घर पर आ चुकी थीं। सास तो सास, यहाँ तो ननदें भी एक से बढ़कर एक थीं।

“अरे दीदी, मेरी शादी के बाद तो आप लोग अब आ रहे हो”, समर ने कहा।

“क्यों? हमारा घर है, कभी भी आएँ। वैसे भी मां-बाप है तो बुला रहे हैं। भाई के भरोसे तो हम आते भी नहीं”, छोटी बहन ने तुनकते हुए कहा।

“अरे नहीं नहीं दीदी, इनका यह मतलब नहीं था”, आंचल ने कहा।

“अब तुम उसकी तरफदारी मत करो। सब जानते हम शादी के बाद लड़के बदल जाते हैं”, बड़ी दीदी ने कहा।

उनकी बात सुनकर आंचल चुप हो गई। इतने में सासु माँ ने कहा, “अरे आँचल, खड़ी खड़ी देख क्या रही हो? सबके चाय नाश्ते का प्रबंध करो। आखिर तुम्हारे ननद नंदोई तुम्हारे जन्मदिन पर तुम से मिलने इतनी दूर से यहाँ तक आए हैं।”

“जी मम्मी जी!”

ऐसा कह कर वह सब के चाय नाश्ते के प्रबंध में लग गई। कहाँ तो सोचा था कि पति के साथ जन्मदिन मनाएगी और कहाँ खुद की ही रेल बन गई। चाय नाश्ते के बाद दोपहर के खाने की तैयारी। कभी कौन फरमाइश करता, तो कभी कौन, और सब की फरमाइश पूरी करने में ही आँचल का आधा दिन निकल गया। ऐसे जन्मदिन की तो उसने कल्पना भी नहीं की थी। आखिरकार समर को ही उस पर तरस आया।

जैसे ही सासू मां ने कहा, “आँचल, शाम के खाने की तैयारी भी साथ की साथ देख लो”, समर ने जवाब दिया, “नहीं मां, अब हम घर पर नहीं बल्कि होटल में ही खाना खाएंगे।”

“पर बेटा फालतू का खर्चा क्यों करना?”

“कोई बात नहीं मां, आंचल के जन्मदिन पर इतना तो बनता है।”

तब जाकर आंचल की जान में जान आई।

“हां भाई, अब तो भाई बीवी के लिए खर्चा भी करेगा”, इतने में एक बहन ने ताना मार ही दिया, पर समर ने बात मजाक में उड़ा दी।

शाम को तैयार हो सब लोग होटल में गए और होटल में खाना खाने के बाद जब वापस घर आने लगे तो सासु माँ ने कहा, “अरे आँचल, हम बाजार में ही है तो एक काम करो अपनी ननदों को रिटर्न गिफ्ट भी यहीं से दिला दो।”

“पर मम्मी जी, अभी तो मेरे पास सब साड़ियां नई की नई है। घर में से ही निकाल कर दे देंगे। क्यों बेवजह का खर्चा करना?”

“ऐसे कैसे तुम मेरी बेटियों को घर में से साड़ियां निकाल कर दे दोगी? उनके लिए तो फ्रेश साड़ी मार्केट से ही खरीदनी पड़ेगी। तुम मेरे होते अभी मेरी बेटियों के साथ इस तरह का व्यवहार करोगी तो मेरे मरने के बाद क्या होगा?”

समर ने आंचल को चुप रहने का इशारा किया तो आंचल चुप हो गई। बाजार में समर अपनी बहनों को शॉपिंग कराने लेकर गया तो किसी को भी किसी एक दुकान से तो कोई सामान पसंद ही नहीं आ रहा था।। कहीं उनको कलर कम लगता तो कहीं पर कपड़ा ही पसंद नहीं आता।

आखिरकार सभी बहनों और उनके पति और बच्चों को रिटर्न गिफ्ट दिलाते दिलाते समर के आराम से चालीस पचास हजार रुपए खर्च हो गए। उसके बाद घर आए तो रिटर्न गिफ्ट के साथ-साथ मिठाई के डब्बे और शगुन के पैसे पैक करवा कर देने पड़े।

फिर भी कभी किसका मुंह फूल रहा है तो कभी कौन रूठ रहा है। सबके नखरे उठाते-उठाते आखिर समर और आंचल की तो हालत ही खराब हो गई। जब सभी बहनें विदा हो गई तब जाकर समर और आंचल की जान में जान आई।

सासु मां के कहे अनुसार खर्चा बचाने के चक्कर में दुगना तिगुना खर्चा हो गया। और फिर भी सब के ताने सुने वो अलग। इसलिए एक वह दिन था और एक आज का दिन है। समर और आंचल में तो कान ही पकड़ लिए कि अब जन्मदिन पर लोगों के नखरे उठाने से अच्छा है कि कहीं बाहर घूम कर आएं।

इमेज सोर्स: Still from short film Kaash-Life Tak via YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

26 Posts | 432,418 Views
All Categories