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बहू, अब तुम हमारी ज़िंदगी का हिस्सा हो…

"तुम कब और कैसे हमारे घर आईं, हमसे जुड़ी और कब हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गईं, ना हमें इसका एहसास रहा ना तुमने कभी एहसास दिलाया।"

“प्रिया, एक बार रिशिता की विदाई वाली पिटारी चेक कर लेना सब सही तो रखा है ना मैंने?”

“जी मां अभी देखती हूं।”

“प्रिया, जरा मेरी ससुराल फोन कर देना एक बार। वरना ससुरजी को लगेगा किसी ने फोन ही नहीं किया और हां पिंकी को तैयार भी कर देना।”

“जी दीदी।..फोन करके पिंकी को तैयार करती हूं।”

“भाभी… ब्यूटी पार्लर वाली तैयार करने आएगी तो आप वहीं रहकर देखना… कुछ अंटशंट ना लगा दें ,ऐसे ही पिंपल्स ने कबाड़ा किया हुआ है चेहरे का।”

“आप चिंता ना करो दुल्हन रानी, मैं यहीं रहूंगी।”

“यार…कितनी व्यस्त हो और कहां हो? अपने ही घर में फोन करना पड़ रहा है तुम्हें!”

“कुछ नहीं… पापाजी की पगड़ी और विधि विधानों में लगने वाली कुछ साड़ियां कम पड़ गई थीं तो लेने आई थी मार्केट,आप बताओ कुछ काम था?”

“काम के लिए ही याद करूंगा बस क्या तुम्हे? इतनी देर से देखा नहीं तो लगा कहीं हमारी पत्नी जी हमें छोड़कर भाग तो नहीं गईं। सुनो ना मैं आ रहा हूं मार्केट, तुम्हें पिक कर लूंगा कहां हो?”

नितिन को दुकान का एड्रेस बताने के बाद प्रिया बिल करवा कर निकल गई और बाहर खड़ी इंतजार करने लगी। पिछले एक महीने से चैन के चार पल नहीं मिल पाएं हैं छोटी ननद की शादी को लेकर।

बगल में एक जूस की दुकान देख प्रिया वहीं बैठ गई, इसी बहाने थोड़ा सुस्ता भी लेगी और जूस भी पी लेगी।

प्रिया की दो ननदें थी बड़ी नम्रता छोटी रिशिता। सास-ससुर तो गांव वाले घर पर रहते, प्रिया के पास आते-जाते रहते। नम्रता की शादी उसी शहर में हुई थी जहां नितिन नौकरी करता था। एक ही शहर में होने से हर पर्व-त्योहार, छुट्टियों या ऐसे भी नम्रता का आना जाना भाई के घर लगा रहता।

रिशिता की भी पढ़ाई लिखाई से लेकर नौकरी तक नितिन की ही जिम्मेदारी और देख-रेख में हुई और दो दिन बाद हो रही उसकी शादी में भी नितिन और प्रिया का ही प्रमुख योगदान रहा और नितिन अपने ही घर से उसकी शादी भी कर रहा था।

हालांकि प्रिया के प्रति सबका व्यवहार अच्छा था, सास ससुर, ननदें ननदोई या ससुराल के किसी भी अन्य सदस्यों में व्यंग्य कसना, ताने मारना या ग़लत ढंग से बात करना जैसी बातें बिल्कुल नहीं थी।पर हर इंसान सराहना, प्रशंसा और प्रोत्साहन का भूखा होता है। एक नाबोध बच्चा भी माता-पिता के ताली बजाने और प्रोत्साहित करने पर वो प्रक्रिया बार-बार करता है तो किसी भी इंसान को अपनी अच्छाइयों को सतत जारी रखने के लिए सराहना मिले तो उसका उत्साह द्विगुणित हो जाता है।

इसी की कमी थी प्रिया के परिवार में। प्रिया तन मन धन से समर्पित होकर, बिन मुख मलीन किए अपने सारे कर्तव्यों को खुशी खुशी अंजाम देती पर बदले में शाबाशी या तारीफ के बोल ना मिलते तो मन बहुत दुखता उसका। फिर समझा लेती खुद को कि शायद परिवार वालों को उसकी समझदारी पर जरूरत से ज्यादा भरोसा हो, वो उससे परिपक्वता की उम्मीद कर उसकी तारीफ ना करते हों या ये तो उसके कर्तव्य है ये जानकर कुछ ना कहते हों। खैर, जो भी हो कहीं ना कहीं, कभी ना कभी ये कमी उसे खलती और दुखी कर जाती।

जूस खत्म होते होते नितिन आ गए और उसकी सोच का सिलसिला वहीं ठहर गया।
अगले दो दिन काफी व्यस्त रहे। शादी बहुत धूमधाम से और खुशी से निपट गई। विदाई की तैयारियां चल रही थीं। घर मेहमानों से भरा पड़ा था। विदाई के बाद सब लोग निकलने वाले थे।

रिशिता बार बार प्रिया से लिपट रही थी। आंखों में आंसू भरकर बोली, “भाभी! आपका आशीर्वाद चाहिए। आप मुझे दिल से दुआ दो कि आपकी तरह सर्व गुण संपन्न सिद्ध हो पाऊं अपने ससुराल में,आपके जैसी सहनशक्ति और समर्पण मुझमें भी आ जाए।”

“बिल्कुल प्रिया, तुम कब और कैसे हमारे घर आईं, हमसे जुड़ी और कब हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गईं, ना हमें इसका एहसास रहा ना तुमने कभी एहसास दिलाया। हम सबको इतना स्नेह रखा कि मुझे लगा ही नहीं कि मेरा मायका तुम्हारा घर है या मां का घर,” कहते कहते नम्रता की भी आंखें भर आईं।

“मैं तो जानकर बड़ाई नहीं करती अपनी बहू की, लोग कहते हैं मां की नजर सबसे पहले लगती है”, इस बार सासु मां बोली।

प्रिया ने पास खड़ी रिशिता को जोर से खींच कर सीने से लगा लिया और अपनी आंखें बंद कर लीं। विदाई के आंसूओं के बीच उसकी चिर अभिलाषा पूर्ति वाले आंसू की बूंद कौन सी थी, वो ही ना समझ पाई तो और कौन समझ पाता भला।

खचाखच भरे हाॅल में सारे रिश्तेदारों के आगे सास और ननदों द्वारा किया ये इकरारनामा किसी ओलंपिक मेडल से कम नहीं था प्रिया के लिए। उसे इस सराहना की उम्मीद और प्रतीक्षा जाने कब से थी, पर वो इतनी खूबसूरती से और भरी दुनिया के आगे मिलेगा इसकी अपेक्षा बिल्कुल नहीं थी। वो कहते हैं ना देर आए दुरुस्त आए।

इमेज सोर्स:  Still from Short Film Qaid, Blush via YouTube

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