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राधा सोच में थी कि आखिर ऐसी क्या बात हो गयी? उसकी मां उसे यूँ अचानक अकेला छोड़कर दुनिया से चली गयी। उसका मन हो रहा था कि...
राधा सोच में थी कि आखिर ऐसी क्या बात हो गयी? उसकी मां उसे यूँ अचानक अकेला छोड़कर दुनिया से चली गयी। उसका मन हो रहा था कि वो अपने भाई-भाभी से ये प्रश्न करे कि उन लोगों ने उसके कहने पर भी उसको मां के आखिरी दर्शन क्यों नहीं कराए?
“हलो! मां कैसी हो? तबियत तो ठीक है ना… भैया-भाभी, बच्चे सब कैसे हैं? भैया तो जैसे मुझे भूल हीं चुके हैं। कभी फोन नही करते, और मेरे फोन करने पर वो व्यस्त रहते हैं”, राधा ने फोन पर अपनी मां कमला जी से पूछा।
“ठीक हूं, बाकी सब भी ठीक हैं, हाँ रमेश (राधा का भाई) आजकल कुछ ज्यादा हीं व्यस्त रहता है। बिटिया बस तेरी याद आती है। तुझे देखने का मन होता है। बस चंद सांसे हीं बची हैं। सोचती हूं सांस बंद होने से पहले एक बार तुझे देख लूँ”, कमला जी ने कहा।
“कैसी बातें करती हो मां? जरा भी नहीं प्यार करती हो तुम मुझे, मुझे सब पता है। वरना ऐसी बातें कभी बोलती हीं नहीं। अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं कैसे जिंदा रहूंगी मां? कभी ये भी सोचा है… किससे अपने दिल की बातें करूँगी? एक तुम्हीं तो हो जिससे अपने दिल की हर बात मैं बिना किसी संकोच के कह सकती हूं।” आंखों में आंसू लिए भर्राए गले से राधा ने कहा।
“अरे तू तो रोने लगी। मैं बिना तुझसे मिले कहीं नही जाने वाली। तू चिंता मत कर! अच्छा बता तो जरा मेरे नात-नातिन कैसे हैं?” कमला जी ने कहा।
“सब ठीक हैं माँ। सिया (राधा की बेटी) ने तो बोलकर रखा है इस बार जरूर नानी के घर चलेंगे।” राधा ने कहा।
“हाँ मेरा भी बहुत मन होता है देखने का। तुझे देखे दो साल हो गए”, कहते हुए कमला जी के आवाज़ में उदासी छा गयी।
“मां तुम तो जानती हो, माँ जी को जब से पैरालिसिस अटैक आया है। तब से कहीं आना-जाना नहीं हो पाता। मुम्बई से वाराणसी इतना दूर है कि मैं एक दिन में मिलकर आ-जा भी नही सकती। और तुम मेरे घर आओगी नहीं बेटी का ससुराल है। तो क्या करूं मैं? अच्छा माँ भाभी आस-पास हो तो जरा बात कराना, बहुत दिन हो गए उनसे बात किये हुए।” राधा ने कहा।
“अरे तेरी भाभी तो रसोई में कुछ काम कर रही है। बाद में बात कर लेना, अच्छा सुन! बिटिया तू समधन जी का अच्छे से ख्याल रखना। साथ हीं अपना और बच्चों का भी ध्यान रखना।”
“हाँ मां तुम भी अपना ध्यान रखना, अच्छा अब रखती हूं फोन।”
लेकिन राधा के मन में मां से बात करते हुए ऐसा लगता था कि वो कुछ छिपा रही हैं। आज भी भाभी के लिए बहाना बना दिया। ये सारी उलझनों को सोचते हुए राधा फोन रखने ही जा रही थी कि उसे भाभी के चिल्लाने की आवाज आई। शायद कमला जी फोन काटना भूल गयी थीं।
“कर ली बेटी से हमारी चुगली मिल गयी कलेजे को ठंडक या कुछ और भी बाकी है? तो वो भी कर ली होती मेरे आते ही फोन क्यों रख दिया? ताकि मैं सुन ना लूं कि आपकी प्यारी बेटी राधा आपको क्या-क्या गुरु मंत्र देती है। सब जानती हूं ऐसी घर बिगाड़ने वाली बेटियों को। प्यार से बोल कर जिंदगी में जहर घोल देती है। जब देखो तब बिना मतलब टेसुए बहाती रहती है।”
भाभी की बात सुनकर उस का मन हुआ कि उनसे पूछे कि फिर वो क्यों अपनी मां को फोन करती है। क्या उनकी वजह से ही उनके भाइयों के बीच बंटवारा हुआ? और हमेशा के लिए उनकी ये जिज्ञासा शांत कर दे। उसने तय किया कि वो आज रात ही अपने भैया से बात करेगी। आखिर भाभी की मुश्किल क्या है? उसकी भाभी रीना को राधा और कमला जी का फोन पर बात करना भी नहीं भाता था।
तभी उसी दिन रात के 11 बजे रमेश ने राधा को फोन किया। अपने भाई का फोन देखकर राधा ने फोन उठाया और बिना फॉर्मल बात-चीत के उसने सीधा बोलना शुरू किया।
“अच्छा हुआ भैया आपने फोन कर दिया मैं आज आपको फोन करने ही वाली थी कि आपका फोन आ गया। सुबह ही मैंने मां से बात की तो वो कह रही थी कि…”
तब तक रमेश ने कहा, “राधा, मां हम को छोड़कर हमेशा के लिए चली गयी।”
“क्या? नहीं ऐसा कैसे हो सकता है? सुबह तक तो सब ठीक था फिर अचानक क्या हो गया मां को?” चीखते हुए राधा बोली और दहाड़े मारकर रोने लगी। उसके हाथ से फोन छूट कर गिर गया।
राधा के रोने की आवाज़ सुनकर उसके पति अमर ने उसको सम्भाला और रमेश से कहा, “मैं राधा को फ्लाइट से भेज रहा हूं तब तक आप उसका इंतजार करना, राधा को कम से कम माँजी के अंतिम दर्शन करा दीजिएगा।”
अमर ने राधा से कहा, “तुम्हारा जाना जरूरी है तुम जाओ मैं यहाँ सब सम्भाल लूंगा।”
राधा की किस्मत पति और ससुराल के मामले में अच्छी रही सब उसको प्यार करते और उसके जज्बात समझते थे। राधा अकेली फ्लाइट से घर पहुंची। लेकिन तब तक रमेश ने कमला जी का अंतिम संस्कार कर दिया था। ये बात जानकर राधा खूब रोई। रोते-रोते सिर्फ इतना कहा, “इतनी भी जल्दी क्या थी भैया? कम से कम मुझे अंतिम दर्शन तो कर लेने दिया होता। मां… मां… तुम क्यों चली गई, मुझे अकेला छोड़कर मां।”
बिना मां के वो घर उसके लिए बेगानों का घर लग रहा था। वो अकेली रो रही थी। लेकिन उसकी भाभी उसके नजदीक नहीं आयी। रमेश ने सिर्फ इतना कहा, “अब भगवान के आगे किसकी चली है? सबको तो एक ना एक दिन जाना ही है।”
राधा सोच में थी कि आखिर ऐसी क्या बात हो गयी? उसकी मां उसे यू अचानक अकेला छोड़कर दुनिया से चली गयी। उसका मन हो रहा था कि वो अपने भाई भाभी से ये प्रश्न करे कि उनलोगों ने उसके कहने पर भी उसको मां के आखिरी दर्शन क्यों नहीं कराए? क्यों आनन फानन में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया? पूरी जिंदगी कठिन और विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत न हारने वाली मेरी माँ आख़िर अचानक दिल से इतनी कमजोर कैसे हो गयी?
तभी राधा को घर के बाहर चबूतरे पर बैठा देखकर घर में काम करने वाली बाई राधा के नजदीक आयी और उसने कहा, “बिटिया रो नहीं अच्छा हुआ कि उनको इस नरक भरी जिंदगी से मुक्ति मिल गयी, कैद से मुक्त होकर वो आजाद हो गयी।”
उसने उसके भैया-भाभी की करतूतों का कच्चा-चिट्ठा उसके सामने खोल कर रख दिया – कैसे उन्स्की माँ का कहीं भी आना-जाना बंद कर दिया गया था और उसको धमकाया गया कि उसने कुछ कहने की कोशिश की तो उसे वृद्ध-आश्रम भेज दिया जाएगा। पिछले एक साल से तो भाभी के साथ-साथ भैया ने अपने बच्चे सहित उनसे से बात करनी बंद कर रखी थी।
राधा के तो जैसे होश ही उड़ गए, ये सारी बातें सुनकर। आज उसने तय किया कि वो सारे सवालों के जवाब लेकर रहेगी। चाहें मां के साथ उसका मायका ही खत्म क्यों न हो जाए। भले हीं आज उसे भाई बहन के रिश्ते को त्यागना पड़े।
वो अपने आंसू को पोंछ कर सीधा भाई-भाभी के कमरे में गई। जहां हंसी-ठिठोली हो रही थी। अचानक राधा को दरवाजे पर देखकर उसके भाई-भाभी चौंक गए।
“क्या हुआ राधा?” रमेश ने पूछा
राधा ने कहां, “भैया आप मां से बात क्यों नहीं करते थे?”
“मतलब?”
“भैया, सवाल के बदले आज मैं सवाल नही जवाब जानना चाहती हूं”, राधा ने कहा।
रमेश ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे ऐसा कुछ नही है वो इधर कुछ महीनो से मम्मी किसी बात को समझना नही चाहती थी। हमारे बोलने से उन्हें और बुरा ही लग जाता था। तो मैंने सोचा ना कोई बात होगी और न उन्हें बुरी लगेगी। बस इसीलिए बातचीत बंद कर दी थी।”
इतना सुनते हीं राधा का गुस्सा आज सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। खुद को संयमित करते हुए उसने बोला, “अच्छा इस तरह तो आपको और भाभी को भी कई बार एक दूसरे की बात बुरी लग जाती होगी। यहां तक की बच्चों की बात भी बुरी लग जाती होगी। तो क्या आप सब एक दूसरे से बातचीत बंद कर देते थे? या ये नियम सिर्फ मेरी मां के लिए बनाया गया था क्यों सही कह रही हूं ना मैं? नियमत: आप और भाभी को भी बहुत पहले बात करनी बंद कर देनी चाहिए थी। क्योंकि आप दोनों की तो बात-बात पर बहस हो जाती थी।
भैया छोटा मुँह बड़ी बात और आज तक मैं आपसी रिश्ते का लिहाज कर चुप रहती थी। लेकिन अब नहीं किसी का भी लिहाज नही करूंगी। एक ही घर में रहते हुए बेटे-बहू और पोते-पोती से मिली। अबोलेपन की ये सज़ा मेरी माँ के लिए कितनी तकलीफ़देह रही होगी। मेरी माँ के लिए ये चुप्पी बहुत बड़ा त्रास थी। आप लोगों के अत्याचार झेलती मेरी माँ बेहद मानसिक तनाव के कारण अंदर हीं अंदर टूटने लगी थीं। जिसके कारण उसके दिल ने धड़कना बंद कर दिया और उन्हें हार्ट अटैक आ गया।”
तब तक राधा की भाभी ने कहा, “हम चुप-चाप तुम्हारी बेकार की बातें सुन रहे हैं तो इसका मतलब ये नहीं कि तुम्हारा जो मन में आए बोलते जाओ। लेकिन अगर कायदे से देखा जाए तो ये सब कुछ तुम्हारे फोन करने की वजह से हुआ। तुम ही उनसे ससुराल का दुखड़ा रोती रहती थी। हमारे खिलाफ मांजी को भड़काते रहती थी। जिससे उनको हमारी हर अच्छी बात बुरी लगती थी।”
राधा भाभी को अच्छे से समझती थी। लेकिन बड़े होने का लिहाज कर के चुप रहती थी। आज राधा ने अपनी भाभी से कहा, “क्या बात है भाभी? मैं ये तो जानती थी की आपकी सोच घटिया है। अपने आप को पाक-साफ साबित करने के लिए आप किसी को भी बुरा साबित कर सकती हैं। लेकिन इतनी घटिया सोच होगी ये मुझे आज पता चला। आप मां से आजाद होना चाहती थी ना? आपकी मनोकामना पूरी हो गई। मेरी मां चली गई।”
आज राधा का मन खट्टा हो गया हो गया। आज उसने अपने भाभी-भैया से सिर्फ इतना कहा, “मेरी माँ ने पूरी जिंदगी तमाम कठिनाइयों और परेशानियों के बीच कभी आँसू न बहाएं। सभी चुनौतियों का हँसकर मुकाबला किया। तो अब जबकि वे अपने सभी दायित्वों से मुक्त हो चुकी थी उनके सुकून से रहने के दिन थे। मगर आप लोगो ने उन्हें सुकून से नहीं जीने दिया।”
भाभी के सामने आज राधा ने अनगिनत सवालों की श्रृंखला खड़ी कर दी। फिर राधा ने कहा, “मैं अभी इसी वक्त इस घर से जा रही हूं। अब आज के बाद हमारा रिश्ता खत्म। लेकिन आखिरी बात भाभी आपको मां और मेरे फोन पर बात करने से इतनी तकलीफ होती थी, तो आप अपनी मां से क्यों दिनभर फोन लगा कर बात करती रहती हैं? आप भी बात करना छोड़ दो अपनी मां से। लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं की आपने ससुराल की तरह अपने मायके में भी दोनो भाई-बहन का रिश्ता खत्म करा दिया।
आप दोनों आज मेरी एक बात याद रखना, मेरी मां को आप दोनों ने मिलकर जितनी तकलीफ दी है, उतनी ही तकलीफ आप दोनो को भी झेलनी होगी। याद रखना मेरी बात। अब मेरी मां का फोन कभी नहीं बजेगा। और भैया अब मैं कभी फोन नही करूंगी। आज मां के साथ आपने अपनी बहन भी खो दी।”
कहकर राधा वहां से वापिस अपने ससुराल आ गई। और उसके बाद कभी अपने मायके नही गई। ना हीं कोई संपर्क रखा। लेकिन आज इतने सालो बाद जब अपने भाई-भाभी को अपने दरवाजे पर खड़ा देखा तो वर्षों पहले बीती कड़वी यादें आंखों के सामने जीवंत हो उठी।
तभी रमेश ने कहा, “अंदर आने के लिए भी नहीं कहेगी?”
भाई की आवाज से राधा अतीत की यादों से बाहर आयी। तभी उसके पति अमर ने कहा, “अरे आप लोग बाहर क्यों खड़े हैं अंदर आइए ना।”
बेटे ने चाय-पानी और नाश्ता दिया। लेकिन राधा कुछ भी नहीं बोल रही थी। उसकी आंखें तो दोनों लोगो को देखकर जैसे पथरा गयी थी। राधा की बहू ने आकर पैर छुए। बहन का हँसता-खेलता भरा पूरा परिवार देखकर रमेश और रीना एक दूसरे को एक टक देख रहे थे।
तभी रीना ने कहा, “राधा हम अपने गुनाह की माफी मांगने आए हैं। आज जब हम उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुँचे तब हमें समझ आया की हमसे कितनी बड़ी भूल हो गयी। आज हमारे दोनों बच्चें हमसे बात तक नहीं करते। दोनों को बस प्रोपर्टी का लालच है। हमसे किसी को कोई मतलब नहीं।”
रोते-रोते रीना अपना दर्द बताए जा रही थी।
तभी रमेश ने कहा, “राधा तू हमें माफ कर देगी तो हमें लगेगा कि मां ने हमें माफ कर दिया। अब माँ तो है नहीं कि उनसे हम माफी मांग सके। इसलिए तुझसे हाथ जोड़कर बोल तो तेरे पांव भी पड़ता हूं। लेकिन हमें माफ कर दे बहन। बड़ी उम्मीद से हम तेरे पास आये हैं।”
राधा ने सिर्फ दो टूक हीं कहा, “माफ करना मेरे बस में नहीं भैया, क्योंकि जिसके साथ ये गुनाह आप लोगो ने किया था माफ करने का अधिकार भी उसी का है। मुझे माफ़ कीजिए मैं आपकी कोई मदद नहीं कर पाऊंगी।”
राधा सोचने लगी की शायद लोग सही कहते हैं की अपने कर्मो की सजा हमें देर से हीं सही लेकिन जरूर मिलती है।
इमेज सोर्स: Still from short film Maa – Mother’s Day Special 2020 via YouTube
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