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"बेटा पेट की लाइन तो दिखाना... टेढ़ी है या सीधी। कहते हैं, सीधी लाइन पे लड़का होता है। मीना मेरी सहेली उसकी बहु के सारे लक्षण लड़के के हैं।
“बेटा, पेट की लाइन तो दिखाना… टेढ़ी है या सीधी। कहते हैं, सीधी लाइन पे लड़का होता है। मीना, मेरी सहेली, उसकी बहू के सारे लक्षण लड़के के हैं।”
सुप्रिया की गोद भराई के लिए तैयारियां हो रही थी। पहला बच्चा होने के कारण सुप्रिया भी बहुत उत्सुक और ख़ुश थी। सारी तैयारियां हो चुकी थी। तभी बातों-बातों में सुप्रिया की सास ने सुप्रिया से कहा, “बेटा मैंने तुम्हारी दोस्त रेवा को निमंत्रण पत्र नहीं भेजा है। कुछ पूछे तो बहाना कर देना।”
“पर क्यों माँ जी?” सुप्रिया ने पूछा।
“बेटा उसकी बेटी है ना, तो बेटी के माँ की परछाई अगर पड़े तो बेटी ही होती है। ऐसा नहीं है कि मुझे बेटियों से कोई परेशानी है। वो भी अच्छी होती है, लेकिन पहला बेटा हो जाये तो अच्छा है। पड़ोस वाली मेरी सहेली है ना शुक्ला आंटी… तुम तो जानती हो? वो भी यही कह रही थी।”
सुप्रिया चुप-चाप सासू माँ की बातें सुन रही थी कि तभी दूसरा सवाल आया, “बेटा पेट की लाइन तो दिखाना! टेढ़ी है या सीधी? कहते हैं, सीधी लाइन पे लड़का होता है। मीना मेरी सहेली उसकी बहु के सारे लक्षण लड़के के हैं। देखना तुम उसको लड़का हीं होगा। ये इंटरनेट पर भी देखा था हमने।”
“क्या?” सुप्रिया ने आश्चर्य से पूछा।
“लेकिन माँ जी मेरी पेट पे तो कोई लाइन हीं नहीं, तो फिर मेरे पेट में क्या होगा?”
“राम-राम! शुभ-शुभ बोलो बेटा। ऐसा-वैसा नहीं सोचते।”
“लेकिन माँ जी मुझे तो एक स्वस्थ बच्चा चाहिए बस।”
“मयंक सुना तुमने? माँ जी रेवा को नहीं बुला रही हैं क्योंकि उसको लड़की है। वो हमारे हर खराब समय में हमारे साथ रही है।”
“क्या? बेकार की बाते हैं। क्या फर्क पड़ता है बेटा-बेटी होने से? तुम अपना ख्याल रखो! बेकार की फैंटसी मत बनाओ।”
“हम्म”, लम्बी साँस लेते हुए सुप्रिया ने कहा।
शाम को सभी गोद भराई में आ गए सारी रस्में हुई। बच्चा गोद में देने का समय आया तो रेवा वहाँ आ गयी। उसको देखते हीं सबके चेहरे का रंग उतर गया।
सुप्रिया ने रेवा को अपने पास बुलाया। और उसकी डेढ़ साल की बेटी को गोद में ले लिया।
सुप्रिया की सास गुस्से में बोल पड़ी, “ये क्या था सुप्रिया? मैंने तुम्हें मना किया था कि रेवा को मत बुलाना। कहीं उसकी परछाई पड़ने से तुम्हें बेटी ना हो जाए।”
“माँ जी रेवा हमेशा से मेरी सिर्फ दोस्त हीं नहीं मेरी बहन और परछाई बन कर मेरे साथ रही है। आज भी उसने मना किया था। लेकिन मेरे और मयंक के कहने पर ये यहाँ आयी है। और क्या फर्क पड़ता है लड़का हो या लड़की। हमें तो स्वस्थ बच्चा होने की प्रार्थना करनी चाहिए ना कि लिंग की। पेट गोल या लंबा, लाइन सीधी या टेढ़ी, बच्चे की धड़कन, खट्टा या मीठा, बेटी की परछाई और पता नहीं क्या-क्या जो सिर्फ और सिर्फ हमारी कोरी कल्पना मात्र होती है। जिसका सच में कोई वैज्ञानिक वजूद नहीं। और अपनी फैंटेसी को सच्चाई का जमा पहना देते हैं। क्या हुआ अगर बेटी हो गई तो? बिना जननी के धरा का कोई अस्तित्व नहीं है माँ जी। संसार और परिवार दोनों चलाने के लिए दोनों की समान रूप से आवश्यकता है।”
सभी सुप्रिया का मुँह देख रहे थे। सुप्रिया की सास गुस्से की घूँट पी कर रह गयी।
नवाँ महीना शुरू हुए तीन दिन ही हुए थे कि सुप्रिया को प्रसव और पीड़ा दिन में शुरू हो गयी। मयंक ऑफिस में थे तो मदद के लिए सासू माँ ने रेवा को फ़ोन किया और मयंक को भी सूचना दे दी। रेवा अपनी बेटी को ले कर आई। रेवा ने सुप्रिया को कार में बैठाया और अपनी बेटी को सुप्रिया की सास को पकड़ा कर खुद ड्राइव कर के अस्पताल गयी। इधर सासू माँ का वही राग अलाप चालू था। बेटी ही होगी, देखना।
मयंक ने बोला, “माँ कृपया करके अब तो अपनी कल्पना की दुकान बंद कर दो।”
थोड़ी देर बाद डॉक्टर ने आ कर कहा, “मुबारक हो मिस्टर मयंक! बेटा हुआ है।”
सासू माँ लज्जित हो सुप्रिया से मिलने गयी। तब सुप्रिया ने कहा, “देखा मां! अब तो मान गयी ना कि वो सारी बाते सिर्फ कल्पना थीं।”
“हाँ बेटा सही कहा।”
सुप्रिया की नजर रेवा पर गयी जो दरवाजे पर ही खड़ी थी।
“अरे! रेवा अंदर तो आ।”
तभी सुप्रिया की सासू माँ रेवा के पास जा कर बोलीं, “चल बेटा अंदर, बच्चे पर मौसी का तो पहला हक होता है। ला! गुड़िया को मैं पकड़ती हूं। और हो सके तो मेरे व्यवहार के लिए मुझे माफ़ कर देना।”
“नहीं माँ जी आप ये क्या कह रही हैं। जो हो गया सो हो गया।”
अच्छा सब अंदर तो आओ कि दरवाजे पर हीं आना होगा। फैमिली सेल्फी टाइम और सब एक साथ हँस पड़े।
इमेज सोर्स: Still from short film Methi Ke Laddoo via YouTube
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