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"माँजी क्या सारे फर्ज सिर्फ बच्चे की मौसी के होते हैं। तो बाकी के रिश्तों का क्या? घर बैठी बुआ और दादी का कोई फ़र्ज़ नहीं है क्या?"
“माँजी क्या सारे फर्ज सिर्फ बच्चे की मौसी के होते हैं। तो बाकी के रिश्तों का क्या? घर बैठी बुआ और दादी का कोई फ़र्ज़ नहीं है क्या?”
रागिनी को जब पता चला कि वो माँ बनने वाली है तो उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। ये बात उसने तुरंत फोन करके अपने पति भावेश को बताई। उसके बाद सभी घर वालों को। सब के सब पहले बच्चे के आने से बहुत खुश थे। तीन साल से बच्चे का इंतजार करती रागिनी के हिस्से में आखिर ये खुशियां आ ही गयी थीं। उसे हमेशा से छोटे बच्चों से बहुत प्यार था।
रागिनी के ससुराल में उसके सास-ससुर और दो नन्दे थी। बड़ी ननद सुमन की शादी हो चुकी थी और छोटी ननद सुरभि कॉलेज में अभी पढ़ाई कर रही थी। रागिनी के मायके में वो तीन बहनें और एक भाई। उसकी सबसे छोटी बहन पल्लवी की शादी नहीं हुई थी।
रागिनी गर्भवती होने से पहले घर के हर काम करती थी। उसकी ननद या सास कभी कोई उसकी मदद नहीं करते थे। छोटी ननद के तो कई बार कपड़े भी रागिनी को धोने होते। लेकिन उसने कभी कोई शिकायत नहीं की। क्योंकि उसके पति भावेश का कहना था कि घर में कभी तुम्हारी वजह से झगड़ा नहीं होना चाहिए।
रागिनी के जैसे-जैसे गर्भावस्था के दिन बढ़ने लगे उसकी शारीरिक परेशानियां भी बढ़ने लगी। तीसरे महीने से उसे बहुत ज्यादा उल्टियां होने लगी। उसको खाना भी अच्छा नहीं लगता। जिस कारण वो खाना भी कम हीं खाती। लेकिन घर के काम कम नहीं हुए थे। अब शारीरिक परेशानी और थकान के कारण उससे काम भी नहीं हो पाता।
एक दिन रागिनी की आंख सुबह 7 बजे खुली देखा तो उसकी सास उमा जी जोर-जोर से चिल्ला रही थी।
“हद हो गयी बेशर्मी की! सुबह के सात बजे तक क्या किसी के घर की बहू सोयी रहती है?”
तब भावेश ने कहा, “मां उसको रात में उल्टियां हो रही थी। पैरों और कमर में काफी दर्द भी हो रहा था। जिस वजह से देर रात तक जागती रही। और क्या हुआ आज देर तक सो गयी तो? आज तो रविवार है वैसे भी किसी को कही जाना नहीं है, सब घर पर हीं हैं।”
बेटे की बात सुनकर गुस्से में गरजती हुई उमा जी ने कहा, “तू मुझे ज्यादा मत समझा… मैंने भी तीन बच्चे बड़े किए हैं। तुम लोग ऐसे हीं नहीं बड़े हो गए।”
रागिनी फ़टाफ़ट उठकर बाथरूम गयी और नहा-धोकर रसोई में आयी और सबके लिए नाश्ता बनाया। उसने सुरभि को नाश्ते के लिए आवाज लगायी। तो उमा जी ने, जो मुँह फुलाए नाश्ता करने बैठी थीं, रूखे स्वर में कहा, “उसका नाश्ता ढक कर रख दो बिचारी अभी सो रही है। उठेगी तब गर्म करके देना।”
रागिनी की नजर घड़ी पर गयी तो देखा नौ बजने वाले थे। रागिनी और सुरभि की उम्र में सिर्फ दो साल का अंतर था। लेकिन जिम्मेदारियों के मामले में सुरभि अभी भी बच्ची हीं कही जाती थी, जिस वजह से वो घर का कोई काम नहीं करती थी।
एक दिन रागिनी ने रात को अपने कमरे में भावेश से कहा, “भावेश मैं सोच रही हूं कि मैं अपने घर चली जाऊं क्योंकि अब मुझसे घर के काम नहीं हो पाते और डॉक्टर ने भी तो तुम्हारे सामने आराम करने और ज्यादा तनाव ना लेने की बात की थी, बस इसलिए सोच रही थी।”
तब भावेश ने कहा, “हम्म… सुबह मां से बात करता हूं! देखता हूं क्या बोलती है?”
अगले दिन भावेश ने अपनी मां से कहा, “मां मैं सोच रहा हूं रागिनी अपने मायके चली जाए। जब बच्चा हो जाएगा तब आ जाएगी। क्योंकि उसकी तबियत अभी ठीक नही रहती और डॉक्टर ने भी उसे आराम करने के लिए बोला है।”
इतना सुनते हीं उमा जी ने तपाक से कहा, “अरे इसके लिए मायके क्यों जाना? उससे बोलो अपनी छोटी बहन पल्लवी को यहाँ बुला ले। रागिनी को आराम भी मिल जाएगा और मन भी लगा रहेगा। आखिर बच्चे के जन्म के समय तो उसको आना हीं होगा। वरना रागिनी बच्चे के साथ घर के काम कैसे करेगी? उनको सम्भालने के लिए कोई तो चाहिए ना।”
भावेश ने रागिनी से कहा, “रागिनी मां ने कहा है तुम पल्लवी को यहाँ बुला लो। मायके में गर्भवती बेटी का रहना अच्छा नहीं लगता औऱ इतने साल बाद खुशखबरी मिली है तो माँ चाहती है कि बच्चा यहीं हो।”
पल्लवी का नाम सुनते रागिनी का चेहरा उतर गया। उसे दो साल पुरानी बात याद आ गयी। उसने भावेश से कहा, “भावेश पल्लवी को मैं यहाँ नहीं बुलाऊंगी। भले मुझे पूरे नौ महीने काम करने पड़े। उसके बाद तो…”
तब तक कमरे में उमा जी आ गयी और रागिनी की बातें सुनते हीं उन्होंने कहा, “उसके बाद क्या रागिनी? पल्लवी भी तो मौसी बनने वाली है और मौसी तो माँ समान होती है। आखिर उसका भी तो कुछ फ़र्ज़ बनता है ना अपनी बहन और उसके बच्चे के प्रति। आखिर बहनें होती क्यों है। इसीलिए तो की बहन की तकलीफ में काम आए।”
रागिनी उमा जी की चालाकी अच्छे से समझ रही थी कि उनको और सुरभि को घर के काम ना करना पड़ें, इसलिए वो रागिनी की बहन को बुलाना चाहती थीं। एक तीर से दो निशाने लगाने में माहिर उमा जी को हमेशा चुप-चाप उनकी बात सुन लेने वाली रागिनी ने सीधा ना में जवाब दिया और कहा, “माँ जी क्या सारे फर्ज सिर्फ मौसी के ही होते हैं? तो बाकी के रिश्तों का क्या? और दूसरी बात ये बात तो हर बहन पर लागू होती है कि वो दुःख या तकलीफ में एक दूसरे का साथ दे।” उसने सुरभि की तरफ इशारा करते हुए कहा।
खुद की परेशानी को दूर करने के लिए इस बार उसने अपनी बहन को परेशानी में ना डालने का निश्चय किया। इसीलिए उसने इस बार सीधे तौर पर मना कर दिया कि उसकी बहन नहीं आएगी।
कहकर वो कमरे से बाहर निकल गयी।
क्रमश:
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