कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

भाई साहब, मेरी बेटी तभी सुरक्षित होगी जब आप जैसे लोगों की नज़र बदलेगी…

रमा की बात सुनकर उसके ननद नन्दोई और सास के चेहरे का रंग उड़ गया और अजय ने धीरे से मुस्कुरा कर मौन सहमति रमा को दी।

रमा की बात सुनकर उसके ननद नन्दोई और सास के चेहरे का रंग उड़ गया और अजय ने धीरे से मुस्कुरा कर मौन सहमति रमा को दी।

सुबह-सुबह दस बजे ही रमा की ननद निशा और नन्दोई अखिल घर आए। उन्हें देखते रमा से उसकी सोलह वर्षीय बेटी रुचि ने कहा, “मां आज रविवार का दिन बेकार हो गया। अब सुनो ताने और व्यंग, ऊपर से खुशी दी भी घर पर नहीं है। अब तो पक्का होना है बात का बतंगड़।”

रसोई में नाश्ता बनाती रमा ने बेटी को डांट लगाते हुए कहा, “तू अपना मुँह बन्द रखा कर बहुत बोलती है। अब जाकर चाय नाश्ता दे और बुआ फूफा के पांव छूकर आशीर्वाद ले।”

व्यवहार और कुशलता में निपुण निशा की शादी रूढ़िवादी सोच वाले परिवार में हो गयी थी। जहां बेटे-बेटियों और बहू-बेटियों में आज भी बहुत भेदभाव किया जाता था। लेकिन वो कहते हैं ना कि हम जैसे लोगों के साथ रहते है हमारा व्यवहार भी उनके अनुरूप ही हो जाता है। दो बेटों के जन्म के बाद तो निशा का रवैया भी अखिल की तरह ही हो गया।

रमा की दो बेटियां होने के बाद तो अधिकतर ही उसे कभी सीधे तो कभी इशारों में निशा और अखिल ताने दे ही देते कि वो कितनी मजबूर माँ और उसके पति अजय कमजोर पिता हैं। उन्हें बेटियों को जमाने से बचा कर रखना चाहिए क्योंकि जमाना बहुत खराब है।

पहले जब बेटियां छोटी थी तब ऐसी बातें उन्हें समझ नहीं आती थी लेकिन बढ़ती उम्र के साथ उन्हें ये बाते समझ में आने लगी। निशा और अखिल की बातों का असर उसकी सास गीताजी पर कुछ दिनों तक खूब रहता। उनके जाने के बाद वो रमा की दोनो बेटियों को हर काम में और हर जगह आने-जाने में टोका-टाकी करतीं।

रमा की बड़ी बेटी खुशी एलएलएम की पढ़ाई कर रही थी। वो आज घर पर मौजूद नहीं थी। रमा उनके पास जाकर बैठी हीं थी कि अखिल ने रमा से पहला सवाल खुशी को लेकर किया, “भाभी जी खुशी दिखाई नहीं दे रही शायद घर पर नहीं है… कहीं बाहर गयी है क्या?”

रमा सब कुछ जानते समझते हुए भी सहज भाव मे बोली, “हाँ जीजा जी बाहर गयी है अपनी सहेलियों के साथ।”

“भाभी अच्छे से समझा दिया है ना आपने किसी के हाथ का दिया कुछ खाए नहीं आजकल किसी का कोई भरोसा नहीं कहीं कुछ मिलाकर पिला दिया और कुछ ऐसी-वैसी बात हो गयी, तो पूरे खानदान की बदनामी पूरे समाज मे हो जाएगी”, निशा ने कहा।

रमा ने देखा उसकी सास उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर कर देख रही थी कि तभी उन्होंने कहा, “अरे! तुम दोनों इतनी चिंता करके क्या करोगे जब उनकी माँ को ही उनकी चिंता फिक्र नहीं, सब तुम्हारी तरह जिम्मेदार मां थोड़ी ना होती है। इसने तो खुद ही छूट दे रखी है।”

रमा ने कुछ ना बोलना ही बेहतर समझा और काम का बहाना बनाकर रसोई में चली गयी।

तभी दोपहर बारह बजे टी. वी. पर लगातार एक के बाद एक बलात्कार और छेड़छाड़ की खबर देखते हीं अखिल ने कहा, “देखा साले साहब, अब तो लड़कियों के लिए हमारा समाज बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं रहा। आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। जानते हैं इसका कारण भी आजकल की लड़कियां ही हैं। उनके माँ-बाप ने उन्हें इतनी छूट दे रखी है कि पूछो मत। छोटे कपड़े पहनेंगी और देर रात सड़कों पर घूमेंगी, लेट नाइट पार्टी करेंगी तो ऐसा ही होगा ना।”

रसोई में काम करती रमा ने सबकुछ सुना दरवाजे की आड़ से उसने झांकर देखा तो अखिल की बात सुनकर अजय का चेहरा उतर गया। तभी दामाद का साथ देती गीताजी तपाक से बीच में बोली “अरे! बेटा सच कह रहे हो। अब जमाना बहुत ही खराब है। अब तो घर से निकालना ही मुश्किल हो गया है। आये दिन ऐसी खबरें आती हीं रहती हैं। इससे अच्छा तो मुआँ हमारा पुराना जमाना ही ठीक था। जब ऐसी घटनायें होती हीं नहीं थीं। औरतें लड़कियां आराम से घर में रहती थीं… बिना किसी डर चिंता के।”

पापा के साथ बैठी रुचि खुद को शर्मिंदा महसूस करने लगी, वो उनकी बातें सुनकर वहाँ से उठकर जाने लगी। रुचि को वहाँ से जाता देखकर रमा को अपना अतीत याद आने लगा वो सोचने लगी कभी ये सब बातें उसको और उसकी मां को भी सुनने के लिए मिलता था। जिससे डर कर उसकी मां ने उसे कभी कहीं अकेले नहीं जाने दिया।

बात उन दिनों की थी जब रमा की दादी अक्सर उसकी वजह से उसकी मां को खरी-खोटी सुनाती रहती थीं।वह अक्सर उसकी मां को ताना देती थी।

तुमको काम ही क्या है? बस रोटी बना ली, आटा तो चक्की से पिसकर आ हीं जाता है… हमारे जमाने में घर पर ही पीसना कूटना होता था। सारे दिन जानवर की तरह काम करते थे। कई-कई बच्चों को घर के कामों  के साथ पालना पड़ता था। फिर भी हमारे बच्चें हमारे काबू में रहते थे। एक तुम हो जो तुमसे तुम्हारे दो बच्चे ही नहीं संभलते। बेटा तो फिर भी ठीक है, लेकिन इस अपनी नकचढ़ी बेटी रमा को भी घर के काम-काज जरा सीखा दो और साथ हीं यह भी समझा देना की बेटियों को कम बोलना चाहिए। थोड़ा शर्म लिहाज किया करें किसी के सामने कुछ भी बोलने से पहले। जब देखो तब बाहर खेलते रहती हैं मोहल्ले के लड़कों के साथ। हमारे जमाने में तो लोग अपनी बेटियों और बहुओं को बाहर की दुनिया और पुरुषों से उसको छिपाकर रखा करते हैं। कहावत कही जाती है, घर की बेटी और रोटी सबके सामने नहीं दिखाई जाती। भगवान ने करे, कल को कोई बात हो गयी तो?

पुराने जमाने में अगर कभी किसी औरत या लड़की को घर के ही किसी पुरुष द्वारा उसको अपनी वासना का शिकार बना लिया जाता तो घर की बात बाहर ना चली जाये के डर से उस औरत या लड़की को इतना डरा दिया जाता था। उसे समाज का ऐसा भय दिखाया जाता कि मजाल क्या किसी की जो उफ्फ तक कर सके शिकायत तो दूर की बात थी।”

बढ़ती उम्र के साथ रमा ने जब दादी की बातों का विरोध करना शुरू किया तो उसकी मां उसको ऐसे समझाती जैसे दादी की बातें बहुत अच्छी और सही सीख देने वाली हैं क्योंकि वह उस सबको अच्छा मानती थीं। इसलिए बारहवीं पास करते-करते रमा की शादी कर दी गयी। लेकिन समय के साथ-साथ रमा को अब समझ आने लगा था कि महिलाएं कभी भी सुरक्षित नहीं थी न पहले न आज। चाहे कितनी हीं कुरीतियों को तोड़कर स्त्री ने अपनी योग्यता का डंका पूरे ब्रह्माण्ड में फैलाया हो, चाहे हम खुद को कितना भी आधुनिक समाज का हिस्सा कह लें। लेकिन इस पितृसत्तात्मक समाज को आज भी एक स्त्री की सफलता और प्रसिद्धि कहाँ रास आ रही है?

हमेशा चुप-चाप सबकी बातें सुनने वाली रमा ने आज तय किया की वो अपनी मां की तरह चुप नहीं रहेगी। रमा ने आकर रुचि का हाथ पकड़ा और कहा, “कहाँ जा रही है आ सबके साथ बैठते हैं।”

तब रमा ने मुस्कुराते हुए कहा, “जीजा जी आप बिल्कुल सही कह रहे हैं लेकिन जमाना नहीं ऐसे पुरुषों की घृणित मानसिकता और उनकी सोच खराब है। मेरा तो मानना है सिर्फ औरतें या लड़कियां हीं नहीं बल्कि हमारा तो सम्पूर्ण समाज खतरे में है।

क्योंकि स्त्री के बिना दुनिया का कोई अस्तित्व हीं नहीं। अगर महिला शिक्षित और आत्मनिर्भर नहीं होंगी, तो वो अपने बच्चों की परवरिश कैसे करेंगी? हमारे देश के बुद्धिजीवी ज्ञानी पुरुषों का भी यही कहना है कि एक शिक्षित महिला ही सुरक्षित समाज का निर्माण कर सकती है। इसलिए ये हम सब की जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी संतानों को बेटा-बेटी का लैंगिक भेदभाव मिटाकर एक दूसरे का सम्मान और सुरक्षा करना सिखाएं। आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित और अपराध मुक्त समाज दें। इसके लिए जरूरी है कि हम आज से ही उसकी रूपरेखा का निर्माण शुरू कर दें। खासकर महिलाएं खुद की सुरक्षा और अभिमान की रक्षा करना स्वयं सीखें।”

पास बैठी रुचि ने अपनी मां का साथ देते हुए कहा, “वाह माँ क्या बात कही आपने बिल्कुल सोलह आने सच, क्यों दादी? सही कहा ना मैंने।”

रमा की बात सुनकर उसके ननद नन्दोई और सास के चेहरे का रंग उड़ गया और अजय ने धीरे से मुस्कुरा कर मौन सहमति रमा को दी। तभी रमा ने बेटी से कहा, “तू क्या वाह-वाह कर रही है? स्विमिंग क्लासेज नहीं जाना क्या जा जाकर पता कर आज क्लासेज खुली हैं या बन्द है।”

“मां मुझे याद आया सोनाली ने बुलाया था साइंस प्रोजेक्ट तैयार करना है हमें, मैं जाऊ?”

हां जाओ, आराम से जाना और अपना ध्यान रखना और हाँ कभी किसी भी स्थिति में डरकर नहीं डटकर मुकाबला करना। हमेशा याद रखना तुम्हारी माँ हमेशा तुम्हारे साथ है। ना कभी किसी के साथ गलत करना ना हीं कभी किसी का गलत व्यवहार बर्दाश्त करना।”

रमा ने बेटी के गालों पर प्रेम से हाथ फेरते हुए कहा। आज रमा की बातें सुनकर रुचि के उदास चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक आ गयी।

इमेज सोर्स: Still from short film Chutney, Large Short Films/YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

79 Posts | 1,624,749 Views
All Categories