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रामदेवी चौधरी, जिन्हें उड़ीसा के आम लोग मां कहते थे

राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पटल पर भले ही अधिकांश लोग रामदेवी चौधरी को नहीं जानते हों पर उड़ीसा के जनसामन्य में वह आज भी मौजूद हैं। 

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राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पटल पर भले ही अधिकांश लोग रामदेवी चौधरी को नहीं जानते हों पर उड़ीसा के जनसामन्य में वह आज भी मौजूद हैं। 

प्रभु जगन्नाथ और अपने संस्कृतिक धरोहर के कारण विशिष्ट स्थान रखने वाला प्रदेश उड़ीसा देश का वह राज्य है जिसकी चर्चा मुख्यधारा के राजनीति या खबरों में निरंतरता के साथ नहीं होती है। परंतु, उड़ीसा जिसकी सांस्कृतिक और देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने की जड़ें काफी गहरी हैं, उसी उड़ीसा में रामदेवी चौधरी, लोगों के ज़ेहन में छपा हुआ वह नाम है जिनके पदचिन्ह आज भी उड़ीसा के लोगों के लिए देशभक्ति और समाजसेवा की प्रेरणा है।

रामदेवी चौधरी का आज़ादी के संघर्ष में महत्वपूर्ण योगदान इसलिए भी अग्रणी है क्यूंकि उन्होंने केंद्रीय स्तर की जगह पर राज्य के स्तर पर लोगों के साथ मिलकर सेवा दलों के लोगों के साथ जोड़कर लोगों को जागृत करने और आजादी क्यों जरूरी है के महत्व को आम लोगों के मध्य स्थापित करने का प्रयास किया। उड़ीसा के लोगों और जनसमूहों में रामदेवी चौधरी “मां” के नाम से प्रसिद्ध हुई और लोगों के दिलों में बस गई। उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में रामदेवी विमेंस यूनिवर्सीटी आज भी उनकी महान देशभक्ति को पुर्नजीवित कर देती है।

पिता गोपाल बल्व दास-मां बसंत कुमारी देवी और चाचा प्रसिद्ध वकील-समाज सेवी उत्कल गौरव मधुसुदन दास के घर 3 दिसबंर 1899 को रामदेवी का जन्म हुआ। पारिवारिक महौल में ही उनकी प्रारंभिक और पारंपरिक शिक्षा-दीक्षा हुई। किताबों और स्कूल जाने का मौका मिले बगैर मात्र 15 साल के उम्र में उनका गोपाबंधु चौधरी के साथ विवाह हुआ, जो डिप्पी कलेक्ट के पद पर कार्यरत थे।

बपपन में ही घर में रामदेवी से समाजसेवा का महौल देख लिया था, जिसका असर उनके जीवन पर भी था, पर वह सिर्फ जरूरतमंद लोगों के मदद करने तक सीमित था। महात्मा गांधी से मिलने के बाद रामदेवी चौधरी के सेवाभाव सोच को व्यापक विस्तार मिला जो उड़ीसा के जनमानव पर ममतामयी मां के रूप में छा गया।

पति-पत्नी दोनों साथ में महात्मा गांधी से मिलते थे दोनों गांव-गांव घूमकर लोगों को आजादी के लिए संघर्ष करने और लड़ाई में शामिल होने के लिए जागृत करते। महात्मा गांधी से मिली प्रेरणा ने रामदेवी और गोपाबंधु चौधरी को कांग्रेस में शामिल करवा दिया। उसके बाद उड़ीसा में रहकर ही उन दोनों ने कांग्रेस के नेतृत्व में हर आंदोलन की बागडौर अपने हाथों में ले ली।

1920-42 तक दोनों पति-पत्नी कितने ही बार जेल गए। दोनों ने मिलकर उड़ीसा की बाड़ी में “सेवाघर” के नाम से आश्रम भी बनवाया। असहयोग आंदोलन के दौरान रामदेवी तब अकेली पड़ गई जब उनके पति का देहांत हो गया। महात्मा गांधी और कस्तूबरा गांधी ने रामदेवी को उड़ीसा में कस्तूबरा ट्रस्ट की स्थापना करने की सलाह दी, साथ ही साथ शिक्षा और छूआ-छूत पर काम करने के लिए राजी किया।

आजादी के बाद भूमिहीन किसानों और मजदूरों के लिए जयप्रकाश नारायण और विनोवाभावे के मागदर्शन में भू-दान और ग्रामदाम आंदोलन में वे सक्रिय रहीं और उड़ीसा के लोगों के जीवन को समान्य करने का प्रयास किया, जिसके लिए उन्होंने 4000 किलोमीटर पैदल पद यात्रा की।

महिलाओं और ग्रामीण भारत में रहने वाले लोगों के जीवन में सुधार लाने के लिए वह लगातार संघर्ष करती रहीं। खादी मंडल के साथ मिलकर ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर और शिक्षण प्रशिक्षण के माध्यम से गांव के लोगों को शिक्षित करने का प्रयास किया।

प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए इन्होंने शीशु और वीर नाम से स्कूल खोले और इनके शिक्षकों को शिक्षित करने के लिए ट्रेनिंग स्कूल की स्थापना की। रामदेवी चौधरी ने ही कैंसर इलाज के लिए अस्पताल बनवाया जो कटक में है।

आदिवासी लोगों के अधिकार के संरक्षण और आदिवासी जीवन में बिना किसी छेड़छाड़ के उनका सामाजिक विकास हो सके, पंडित नेहरू के इस सोच के पीछे रमादेवी का बहुत बड़ा हाथ था। उड़ीसा का समाज प्राकृतिक आपदाओं से घिरा रहने वाला समाज है उन्होंने राज्य सरकार को इसलिए एक स्थायी रिलीफ कमेटी बनाने की सलाह दी, जो प्राकृतिक आपदाओं के समय लोगों को राहत पहुंचा सके।

आजादी के संघर्ष के दौरान ही अपनी बात लाखों लोगों तक पहुंचाने के लिए उन्होंने ग्राम सेवक प्रेस को शुरू किया, जिसको आपातकाल के दौरान काफी सख्ती का सामन करना पड़ा। उत्कल यूनिवर्सिटी ने उनको मानद उपाधी प्रदान की और जमनालाल बजाज ने उनको समाज-सेवा के लिए सम्मानित किया।

22 जुलाई 1985 को उड़ीसा की मां रमादेवी चौधरी का निधन हुआ। उन्होंने उड़ीसा के समाज के लिए जो सपना देखा, वो आज भी उड़ीसा के लोगों में जीवित है।

राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पटल पर भले ही अधिकांश लोग उनको नहीं जानते हों पर उड़ीसा के जनसामन्य में वह आज भी मौजूद हैं और उड़ीसा के लोगों का मार्गदर्शन कर रही हैं।

इमेज सोर्स: Wikipedia 

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