कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

वो हंसते मुस्कुराते दोस्त, ना जाने तुम कहाँ खो गए!

जब घर लौटती हूँ और पुरानी एल्बम खंगालती हूँ, साथ बिताए एक-एक पल मन में फिर से जीती हूँ... वो मिल कर टिफ़िन खाना मुझे सब याद आता है!

जीवन में दोस्तों का रिश्ता ऐसा होता है जो खून के रिश्तों से भी ज्यादा कीमती होता है, क्योंकि वो जन्म से नहीं मन से बना रिश्ता होता है। बचपन के ये रिश्ते हमेशा याद आते हैं, ऐसी हीं दोस्ती को समर्पित कविता…

मेरे दोस्त मुझे तुम बहुत याद आते हो

जब थक के बैठती हूँ और चाय बनाती हूँ,

चाय की प्याली में तुम सब को ढूँढती हूँ।

अपने पुराने स्कूल के बाहर वो चाट के ठेले

बिन बात हम सहेलियों का खिलखिलाना,

बेफिक्री में पूरे शहर के चक्कर लगाना।

जब घर लौटती हूँ और पुरानी एल्बम खंगालती हूँ

साथ बिताए एक-एक पल मन में फिर से जीती हूँ,

वो मिल कर टिफ़िन खाना मुझे सब याद आता है।

वो हर संडे मिलना वो सिनेमा जाना मुझे याद आता है

कैंटीन के समोसे साथ में इमली की चटनी खाना,

वो घंटों बाज़ार में घूमना और कुछ ना लाना भी

घंटों मोल भाव करना मुझे सब याद आता है।

जब भी कोई चुटकुले सुनाता है, मुझे तुम याद आते हो

काम करते या ख़ाली बैठते मुझे तुम बहुत याद आते हो।

वो हँसते मुस्कुराते दोस्त, ना जाने तुम कहाँ खो हो गए।

जिन्दगी के इस दौड़ में, अपने आप में गुम हो गए।

अपने-अपने कामों में सुनहरे बचपन को भूल गए,

याद करती हूँ पुराने दिन तो तुम सब बहुत याद आते हो।

उन पुराने दिनों को साथ में फिर से जीना चाहती हूँ,

ज्यादा नहीं साथ में स्कूल के दिन दोहराना चाहती हूँ।

इमेज सोर्स: Fredy_Martinez_Photograph (pixabay)

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

SHALINI VERMA

I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...

49 Posts | 168,991 Views
All Categories