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"बेटा! तू नहीं जानता आजकल की लड़कियों को। अपनी मौसी की हालत देखी है ना? क्या बना दिया उनकी बहू ने।" फिर सुरेश जी ने कहा...
“बेटा! तू नहीं जानता आजकल की लड़कियों को। अपनी मौसी की हालत देखी है ना? क्या बना दिया उनकी बहू ने।”
फिर सुरेश जी ने कहा, “तुम किसी और को देख के अपना घर क्यों बिगाड़ रही हो? हर कोई एक जैसा नहीं होता।”
बहुत देर तक शकुंतला जी को फोन पे बात करते हुए देख कर उनके पति सुरेश जी ने कहा, “अब बस भी करो भाग्यवान… नाश्ता खत्म कर लो पहले।”
इतना सुनते ही शकुंतला जी गुस्से में बोलीं, “आप भी ना हद करते हैं। बीच मे बोलने की आदत जाएगी नहीं आपकी। कोई काम तो बचा नहीं आपको। तो ले दे के मेरे पीछे ही पड़े रहते हैं। कितनी जरूरी बात कर रही थी मैं अपनी जीजी से। रख दिया फोन बिचारी ने, आप की आवाज़ सुन के। ह्म्म्म!”
“हाँ! जानता हूँ… क्या जरूरी बात थी। वो अपनी बहू की शिकायत करे और यहाँ तुम अपनी बहू से दिन भर काम कराओ। फोन रख के जरा घर के कामो में भी बहु के हाथ बंटा दोगी, तो तुम्हारी सेहत भी ठीक रहेगी और हड्डियों में भी ताक़त बनी रहेगी। और बहू की कुछ मदद भी हो जाएगी। वरना बैठे-बैठे जंग लग जाएंगे और बीमारियां भी पकड़ लेंगी।”
“हाँ… हाँ … ये क्यों नही कहते कि तुमको मेरा आराम देखा नहीं जाता। अपनी जवानी में मैने भी बहुत काम किये हैं। तब तो तुम्हारी जुबान नहीं खुलती थी।”
“अच्छा! जो मन मे आये वो करो। मैं चलता हूँ।”
शंकुतला जी मुँह फूला के बैठ गयीं अनशन पे। दोष आया उनकी बहू मधु पे। जिसको शादी कर के आये सिर्फ 6 महीने ही हुए थे। लेकिन घर की सारी जिम्मेदारी, सारा काम मधु के जिम्मे था। शकुंतला जी तो सिर्फ आराम करतीं और फ़ोन पर बात। लेकिन बीच-बीच में मधु को ये बताना कभी नहीं भूलती थी कि उन्होंने कितने काम किये जब वो बहू थीं। अब तो उनके किये काम का आधा काम भी नहीं घर में।
मधु ने बहुत कोशिश की उनको मनाने की। लेकिन वो नहीं मानीं। रात को जब उनका बेटा मनोज घर आया तो उसे पता चला कि माँ नाराज़ हैं और खाना नहीं खाया है। मधु और मनोज दोनों उनके कमरे में खाना ले के गए। तो मनोज ने अपनी माँ शकुंतला जी से खाना खाने के लिए कहा। तो वो बेटे को देखते रोने लगी। औऱ सारी बातें बढ़ा-चढ़ा कर बताने लगीं।
अंत में उन्होंने कहा, “तू ही बोल बेटा, क्या मधु को मैं सताती हूँ? जब देख तेरे बाबु जी मुझे मधु के पीछे सुनाते ही रहते हैं। मधु को कोई परेशानी हो तो मुझे कहे, ससुर से कहने की क्या जरूरत?”
ये सब कुछ मधु देख के तंग आ चुकी थी।
उसे समझ नहीं आता था कि आखिर शकुंतला जी चाहती क्या थीं? आखिर उसने बोलने का फैसला लिया। और कहा, “लेकिन माँ जी ये सब कुछ तो हुआ हीं नहीं था और मैंने तो कुछ कहा ही नहीं बाबु जी से।”
“अच्छा! देख बेटा तेरे सामने ही ये मुझे झूठा साबित कर रही है।”
“मधु माँ से माफी मांगो।” मनोज ने कहा।
“लेकिन मनोज कैसी माफी और किस बात की माफी? जब मैने कुछ किया ही नहीं। मैं माफी नहीं माँगूंगी”
“मधु जितना कहा जाय उतना ही सुना करो।”
“क्यों भाई? सही ही तो कह रही है। जब उसने कुछ किया हीं नहीं तो वो माफी क्यों मांगे?” सुरेश जी ने पीछे से कहा।
“बाबु जी आप!”
“हाँ! बेटा मैं।”
“बहु तुम अपने कमरे में जाओ।”
“बाबु जी आप भी ना! आपको क्या जरूरत थी मधु के पीछे कुछ कहने की?”
“इनकी वजह से बेटा अब मधु भी मेरी इज़्ज़त नहीं करती”, शकुंतला जी ने कहा।
“क्यों बिना बात के बात बढ़ा रही हो? इज्जत डर और झुठ से नहीं प्यार से कमाया जाता है।”
“बाबु जी अब बस भी कीजिये। माँ मैं आप से माफी मांगता हूं, मधु की तरफ से चलिये खाना खा लीजिये। वरना मैं भी नहीं खाऊंगा।”
“ऐसा मत कह बेटा! चल तेरे लिए मैं खाना खा लेती हूं।”
रात को सुरेश जी ने अपने बेटे को बुलाया और कहा, “बाहर आ मुझे कुछ बात करनी है।”
“जी बाबु जी कहिये।”
“बेटा! मैं जानता हूँ कि तू अपनी मां को बहुत प्यार करता है। लेकिन इस बात को साबित करने के लिए बिना वजह मधु को नीचा दिखाना गलत है। अब मधु भी तेरी जिम्मेदारी है। तेरी माँ भी बुरी नहीं। बस अभी उसके सिर पे सास बनने का भूत सवार है। सब को देख के।”
“मैं किसी का पक्ष नहीं ले रहा। बल्कि ये चाहता हूँ कि अपना परिवार पहले की तरह खुशहाल हो जाये। तेरी माँ इस बात को स्वीकार करे कि मधु कोई बाहर वाली लड़की नहीं अब इस घर की सदस्य है और इस काम को मैं बिना तुम्हारे सहयोग के नहीं कर सकता। आखिर वो भी किसी की बेटी है। और हमारी बहु भी।”
“ठीक है बाबु जी! क्या करना होगा?”
अगले दिन मधु की तबियत ठीक नहीं थी वो देर से सो के उठी। तो शकुंतला जी ने हंगामा मचाना शुरू कर दिया। उन्होंने मधु को कहा, “इतनी देर तक कौन सोता है? नौ बज गए और अभी तक चाय भी नहीं मिली।”
तब तक मनोज ने कहा, “क्या हुआ माँ?”
“अच्छा हुआ बेटा तू आ गया! अपनी आंखों से देख अभी तक सो रही थी। और मुझे घूर रही है। चाय भी नहीं मिली अभी तक।”
“ये लो मां अपनी चाय! माफ करना मेरी गलती है। देर हो गयी।”
शकुंतला जी ने पलट के देखा तो उनके चेहरे का रंग उड़ गया।
“तूने चाय बनायी?”
“हाँ! शकुंतला जी और ये नाश्ता भी और आज का खाना भी हम हीं बनाएँगे।”
“बहु, तुम नाश्ता ले के रूम में जाओ खा के आराम करो।”
शकुंतला जी ने गुस्से में कहा, “बहू की इतनी सेवा करना अच्छी बात नहीं। सर पे चढ़ गई तो उतारना मुश्किल होगा। बहू है, तुम्हारी बेटी नहीं… समझे!”
“क्यों शकुंतला जी? बहू बेटी नहीं हो सकती? मनोज ने और मैंने क्या आज पहली बार काम किया है? इससे पहले भी बहुत बार आपकी तबियत ठीक नहीं रहने पर हमने ये सब काम किये हैं ना। तो आज क्या बदल गया?”
फिर मनोज ने कहा, “माँ! आप और दादी कितने प्यार से रहती थी। तो आप और मधु क्यों नहीं रहते?”
फिर सुरेश जी ने कहा, “तुम किसी और को देख के अपना घर क्यों बिगाड़ रही हो? हर कोई एक जैसा नहीं होता। और अच्छे बुरे लोग तो हर समय में और हर रूप में रिश्ते में हो सकते हैं।”
मनोज ने कहा, “मुझे पूरा विश्वास है मधु आपका वैसे हीं ख्याल रखेगी जैसे आप दादी का रखती थी। बस आप भी दादी जैसी सास बन जाओ।”
ये सब बातें मधु ने सुन लीं। आज उसको अपने पति और पिता रूपी ससुर पे गर्व महसूस हो रहा था।
तभी शकुंतला जी ने थोड़ा सोचा, फिर कहा, “सही कह रहे हैं आप दोनो। मैं भी ना जाने किन बातों में आ गयी। अब मधु को क्या बोलूँ? समझ नहीं आ रहा। क्या सोचती होगी मेरे बारे में?”
“कुछ नही माँ! बस एक बार गले से लगा लीजिये” मधु ने कहा।
शकुंतला जी ने मधु को गले से लगा लिया और कहा, “मुझे माफ़ कर दे बेटा।”
“कैसी बातें कर रही हैं माँ? बड़े सिर्फ आशीर्वाद देते हैं। माफी नहीं मांगते।”
तभी सुरेश जी ने कहा, “अब अगर सास-बहू मिलाप हो गया हो तो हम कुछ खा ले?”
और सब हँस पड़े।
इमेज सोर्स: Still from short film Seedi/Life Tak, YouTube
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