कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
"देखिए माँजी, आप गलत न समझें। मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं है लेकिन वक्त का कोई पता नहीं होता है, तो अपने बुरे वक्त के लिए खुद को तैयार करना गलत थोड़ी ना है।"
“देखिए माँजी, आप गलत न समझें। मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं है लेकिन वक्त का कोई पता नहीं होता है, तो अपने बुरे वक्त के लिए खुद को तैयार करना गलत थोड़ी ना है।”
नेहा जब कमरे में आई तो देखा सरला जी फोन पर किसी से बात कर रही थीं। शायद मौसी सास थीं।
जैसे ही नेहा को सरला जी ने अपने कमरे में देखा, वैसे ही उन्होंने फोन पर जोरों से बोलना शुरु कर दिया, “हमने तो अपने दम पर ही सब कुछ किया, पर अपने पति के पीछे कभी ना पड़े कि हमारी सुरक्षा के लिए कोई फालतू का खर्चा करो। भगवान हमारे से दिन किसी को ना दिखाएं, पर ये आजकल की लड़कियां ना जाने क्या समझती हैं अपने आप को?” नेहा को देखकर सरला जी बड़बड़ाई।
पर नेहा ने उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और चुपचाप अपने कामों में लगी रही।
जब सरला जी ने देखा कि नेहा को उनकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं है तो उन्होंने फोन पर अपना बड़बड़ाना और तेज कर दिया, “आजकल की लड़कियों को तो बैठे-बिठाए सब कुछ चाहिए। कभी हाथ पैर नहीं चलाए इन लोगों ने। पति से अपनी सुरक्षा की बात करती हैं। ऐसा नहीं कि पति की सुरक्षा के लिए व्रत और पूजा करें। दान धर्म करें। अरे यही सब तो पति की आयु को लंबा करेगा। फिर भला किसी और सुरक्षा की क्या जरूरत है?”
अभी भी नेहा ने कोई जवाब नहीं दिया। बल्कि उसे कल रात का मंजर याद हो आया।
दरअसल नेहा तीन दिन पहले अपने मायके गई थी। वहां उसकी मुलाकात अपनी बचपन की सहेली अनुपमा से हुई। वहां उसे पता चला कि अनुपमा के पति की दो महीने पहले ही मृत्यु हो गई। और उसके बाद अनुपमा को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि अनुपमा के पति ने जो एलआईसी करवा रखी थी, उसमें नॉमिनी उसकी सास थी।
अपनी सास पर विश्वास कर अनुपमा ने भी कोई ऑब्जेक्शन नहीं उठाया, इसलिए सारा पैसा उसकी सास को मिला। यहां तक कि अनुपमा को अपने पति के किसी भी लेन-देन का कोई हिसाब पता तक नहीं। अगर उन्होंने कोई और इंश्योरेंस या इंवेस्टमेंट करा भी रखा होगा तो उसका भी उसे कोई ज्ञान नहीं था।
कर्जदार पैसे लेने के लिए दरवाजे पर खड़े थे, वो अलग। यहां तक कि ससुराल वालों ने भी उससे मुंह मोड़ लिया। बीस दिन बाद ही अनुपमा को मायके भिजवा दिया गया। कर्जदारों का कर्जा आखिरकार अनुपमा ने अपने जेवर देकर चुकाए।
पर आज अनुपमा अपने तीन साल की बेटी के साथ बिल्कुल अकेली हो गई थी। और अब अनुपमा के माता-पिता उसके ससुराल वालों से कोर्ट केस लड़ रहे हैं ताकि उनकी बेटी को कुछ हिस्सा मिल सके।
कल रात को नेहा की पीयूष से इसी बात को लेकर बहस हुई थी, “कम से कम मुझे यह तो पता होना चाहिए कि तुम कब कहां इन्वेस्ट कर रहे हो। और नहीं तो कम से कम तुम्हारी इंश्योरेंस पॉलिसीज तो मुझे पता होनी चाहिए। कल कुछ गलत हुआ तो कम से कम मेरा भविष्य भी सुरक्षित रहे। कहीं मेरा हाल भी अनुपमा जैसा न हो।”
पर पीयूष बार-बार यही कहता रहा, “तुम्हें क्या चिंता है? मैं बैठा तो हूं।”
यह बात सरला जी ने सुन ली। उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा कि नेहा उनके बेटे से इस तरह से बात कर रही है। बस, तब से वह उसी बात को पकड़ कर बैठ गईं और अब नेहा को सुनाये जा रही थीं।
और नेहा उनसे इस बारे में कोई बहस नहीं करना चाहती थी इसलिए चुपचाप उस कमरे से अपने कमरे में आ गई। जब सरला जी ने देखा कि नेहा अपने कमरे में चली गई तो गुस्से में वह भी फोन पटक कर नेहा के कमरे में आ गईं।
“तुम्हें कुछ सुनाई दे रहा है या नहीं?”
“आप मुझसे कुछ कह रही है माँजी?”
“तो और किस से कह रही हूं? शर्म नहीं आती तुम्हें पीयूष के पीछे पड़ते हुए और उससे इस तरह से बात करते हुए?”
“मैंने ऐसा क्या कह दिया माँजी?”
“वह तुम्हारा पति है। तुम उम्मीद भी कैसे कर सकती हो कि उसके साथ कुछ गलत हो जाएगा। एक पत्नी तो अपने पति की लंबी आयु के लिए क्या से क्या कर जाती है और तुम हो कि… छी: कहते हुए भी शर्म आती है।”
“इसमें गलत क्या है माँजी? अपनी सुरक्षा के लिए हर किसी को सोचने का अधिकार है!”
“पति के बारे में गलत सोच कर कौन सी सुरक्षा की बात कर रही हो तुम?”
“तुम मेरे बेटे के लिए इतना गलत कैसे बोल सकती हो? तुम्हें पता है जब तुम्हारे ससुर जी की मृत्यु हुई थी, उस समय पीयूष केवल दस साल का था। मुझे तो बिल्कुल भी पता नहीं था कि मेरे हिस्से में प्रॉपर्टी से क्या-क्या आएगा? ससुराल वालों ने एक तिनका तक नहीं दिया, पर मैंने फिर भी उफ तक नहीं की। मैंने अपने कंधों पर पूरा भार उठाया है, लेकिन चुप रही। मासूमियत और इज्जत से अपने पूरे घर को चलाया। और एक तुम हो, जो मेरे बेटे से अपने भविष्य को लेकर लड़ने को तैयार हो गईं?”
“माफ करना माँजी, आपका और मेरे समय अलग है। मैं आपकी तरह अपने कंधों पर अपनी बेवकूफी को मासूमियत का नाम देकर भार नहीं उठाती सकती।”
“तुम यह कहना चाहती हो कि मैंने बेवकूफी की है?”
“नहीं माँजी, मैं यह तो बिल्कुल नहीं कहना चाहती कि आपने बेवकूफी की है। आपको यह नहीं पता था कि आपके हिस्से में क्या-क्या आएगा? पर मैं आज की औरत हूं। आपके साथ जो गलत हुआ, उसके बावजूद भी अगर सबक ना लूं तो इससे बड़ी बेवकूफी क्या होगी? वक्त का कोई पता नहीं होता। बाद में खुद को बेचारी कहलाने से बेहतर है कि पहले ही आगे की सोच कर चलो। कम से कम आप को देख कर तो मुझे यही लगता है। आपने जो जिंदगी देखी है, क्या आप यह चाहेंगी कि आपकी तरह आपकी बहू और पोते-पोती ऐसी जिंदगी देखें? क्या आपने पिताजी के लिए व्रत और उपवास नहीं किए थे। पर जो भाग्य में लिखा होता है वह तो होकर ही रहता है। तो बेहतर है ना कि अपनी सुरक्षा का मार्ग तो कम से कम तैयार हो।”
नेहा की बातों का सरला जी के पास कोई जवाब नहीं था इसलिए वे चुपचाप कमरे से बाहर चली गईं। पर मन ही मन कहीं ना कहीं यह बात तो जरूर थी कि आखिरकार अपने भविष्य की सुरक्षा के बारे में सोचना गलत तो नहीं है।
इमेज सोर्स: Still from Women’s Safety begins at home (Short Film on the issue of Gender Based Violence), rhombusfactor/YouTube
read more...
Please enter your email address