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जारवा इंसान ही हैं, पर इंसान की तरह माने नहीं जाते…क्यों?

जारवा दर्शन? कोई देवी देवता हैं क्या या फिर कुछ और? ना देवी देवता हैं, ना जानवर हैं। इंसान हैं तुम्हारी हमारी तरह... लेकिन माने नहीं जाते!

“यूं तो मेरी पूरी अंडमान यात्रा ही बेहतरीन थी दीपा, इतने सारे दर्शनीय स्थल, समुद्र का किनारा, प्राकृतिक कलाकारी के बेहतरीन नमूने सब बहुत ही खूबसूरत और सुकून देने वाले! पर”, प्रिया अपनी अंडमान यात्रा का वृत्तांत अपनी सहेली दीपा को सुना रही थी।

“पर, क्या प्रिया?”

“एक चीज बहुत चुभी वहां।”

“वो क्या?”

“जारवा दर्शन।”

“जारवा दर्शन? ये क्या होता है प्रिया? कोई देवी देवता हैं क्या या फिर कुछ और?”

“ना देवी देवता हैं, ना जानवर हैं। इंसान हैं तुम्हारी हमारी तरह दीपा।”

“तो उनका दर्शन? ऐसा क्या विशेष है उनमें जो इंसान, इंसान का दर्शन करने जाएँ?”

“यही तो चुभने वाली बात है दीपा। और तुझे पता है अंडमान यात्रा का एक महत्वपूर्ण पहलू है जारवा दर्शन।”

“तू ऐसे नहीं समझेगी विस्तार से बताती हूं। पहले रूक चाय ले आऊं,” प्रिया ने कहा और किचन की ओर चल दी।

दस मिनट में चाय बिस्कुट और नमकीन के साथ फिर उसने अपनी अंडमान यात्रा की बात शुरू की।

“पहले दिन तो हमारे गाइड ने हमें काला पानी वाले जेल की सैर करवाई। वहां की सारी बातें भी दिल को छूने वाली थी। सजाएं, यातनाएं, जो वहां के कैदियों को दी जाती थी रूह दहला गईं।”

“फिर शाम हमने सी बीच पर बिताई। अगली सुबह हमें जल्दी तैयार रहने को कहा गया था क्योंकि बाराटांग द्वीप की यात्रा करनी थी जो काफी दूर था, और उसी यात्रा का एक प्रमुख आकर्षण था जारवा दर्शन।

हमें एक जगह जो जारवा रिजर्व का प्रवेश द्वार था वहां पर रोक दिया गया। जहां पहले से ही गाड़ियों का हुजूम लगा हुआ था।बताया गया कि जारवा रिजर्व से सारी गाड़ियां एक साथ ही जाती है और एक साथ ही वापस आती है। इसके दो कारण हैं। पहला जारवा की शांति भंग ना हो। दूसरा कि वो अकेली गाड़ी देख आक्रमण ना कर दें।”

“पर, जारवा थे क्या? पहले ये तो बता”, उत्तेजना में दीपा जल्दी जल्दी चाय पिए जा रही थी।

“तुम्हारी मेरी तरह एक इंसान! बस फ़र्क इतना है कि वो अभी भी आदिमानव सी जिंदगी जी रहे हैं। विकास और प्रगति से कोसों दूर, घने जंगल में शिकार करके, फल फूल खाकर। स्त्री पुरुष दोनों अर्ध नग्नावस्था में रहते हैं। छोटा कद, आबनूसी काला रंग, तीर धनुष चलाने वाले, पत्तों और छालों से जारवा स्त्रियां खुद को ढकने की कोशिश करती हैं।”

“अच्छा…क्या सच में? मैंने तो आज तक ऐसा देखा ना सुना। मुझे भी उन्हें देखने का मन हो आया”, दीपा के चेहरे का आश्चर्य देखने लायक था।

“हमारी इसी प्रवृत्ति का तो फायदा उठाती हैं वहां की व्यवस्था। आगे सुन, सभी गाड़ियों में पर्ची बांटी गई जिसमें ये लिखा था- आप जारवा के पास ना जाएं, उनसे संपर्क ना बढ़ाएं, उन्हें खाने पीने ना दें। जैसी कई बातें, मतलब कुल मिलाकर ऐसी बातें मानों वो जानवर हों, सारे निर्देश बिल्कुल उसी तरह जैसे हमें जंगल सफारी पर दिए जाते हैं।”

“टूरिस्ट अपनी अपनी गाड़ियों में अपनी पोजीशन इस तरह बनाने में लगे थे कि दोनों ओर से जंगल दिखे,तो कोई गाड़ी के शीशे चमकाता दिखा ताकि जारवा दर्शन का  सुनहरा मौका वो चूक न जाएं।”

“सारी गाड़ियां इकट्ठे होकर साथ चली। एक दो किलोमीटर के बाद ही हमें वो दिख गए। जारवा!!चार पांच के झुंड में हाथ हिलाकर अभिवादन करते हुए, मुस्कराते हुए। कुछ ने तो हाफ पेंट पहन रखी थी, कुछ ने हाथ पसार रखें थे मानों कुछ चाह रहे हो।”

“गाइड ने बताया कि मना करने के बाद भी कई टूरिस्ट कपड़े और खाने की चीजें फेंक दिया करते हैं। जिनकी इन्हें लत सी पड़ चुकी है और ये जमा होकर आ जाते हैं लालच से।”

“तुझे पता है दीपा, चलती गाड़ी से एक दो मिनट के लिए ही दिखे वो लोग मेरे दिल में बस गए हैं और पूरे सफर में दिमाग पर छाए रहे। गाइड ने कहा, चलिए आपका सफर सफल रहा वरना कई बार कम संख्या होने के कारण ये दिखायी नहीं देते है।”

“सुनकर बहुत दुख हुआ कि इंसान होकर भी वो दर्शनीय स्थल या जानवर बन कर रह गए हैं।”

“पर सरकार कुछ नहीं करती?” चाय का खाली कप मेज पर रखते हुए दीपा ने पूछा।

“सरकार कहती हैं, वो जिन व्यवस्थाओं में रहने के आदी हैं अगर उससे छेड़छाड़ कर उन्हें मुख्यधारा में लाने की कोशिश की गई तो उन्हें कई तरह की दिक्कतें भी आ सकती है और उनकी जान पर भी बन सकती है।”

“ऐसा था तो उनके क्षेत्र से रास्ता ही नहीं बनाना था।”

“हो सकता है उस जंगल के अलावा सरकार के पास और कोई विकल्प न हो रास्ता बनाने का। पर हवाई यात्रा भी एक विकल्प हो सकता था। पर सड़क बनने से उनके साथ तो पक्का बहुत बड़ा अन्याय हुआ। हमारे गाइड ने बताया बाहरी चीजें नहीं खाने के। अभ्यस्त होने के चलते, टूरिस्टों द्वारा फेंके खानों से दो बार इनमें महामारी भी फ़ैल चुकी है तभी ये काफी कम संख्या में रह गए हैं।”

“सच में यार सुनकर ही दुख हो रहा मुझे।”

“देखती तो और दुखी होती। मानवीय संवेदनाओं के साथ मजाक नहीं तो और क्या है ये? इस  अंडमान यात्रा के सफर ने अनगिनत खूबसूरत यादें दी। पर समझ नहीं आता इस याद को क्या विशेषण दूं?”

“सही कहा तुने।”

“सच बताऊं तो भावनात्मक पक्ष देखूं तो लगता है चलो अच्छा है इस कपटी दुनिया से अलग एक खूबसूरत जहां तो है उनका। वहीं नैतिक पक्ष सोचूं तो लगता है, उन्हें भी तो एक इंसान की तरह जीने का हक है। बीहड़ जंगल में शिकार के लिए भटकते, गर्मी, बरसात ठंड में पेड़ों की छांव का आसरा लेते जानवरों की ज़िंदगी क्यों गुजारें वो?”

“इस यादगार सफर की इस घटना ने कई निरूत्तर करने वाले प्रश्न छोड़ दिए हैं मेरे आगे। जानती हूं, उत्तर मिलना मुश्किल है और ढूंढ भी लिया तो बेमानी है। पर जो भी है अविस्मरणीय है दीपा, कभी नहीं भूलने वाला।”

दीपा भी गहन सोच में डूब गई।

इमेज सोर्स : आदिमानव का जीवन /Andaman Jarawa Tribe/Andaman and Nicobar islands tourism video by Shweta, YouTube

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