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मतलब घर से बाहर के काम, काम हैं उन्हीं से थकान होती है? ऐसा कहने वाली घर की कोई बड़ी स्त्री ही होती है, जो बस अपने ज़माने के कामों का बखान करती है।
हमारे समाज में व्याप्त लिंग भेद को बढ़ावा देते कुछ वाक्य….
मर्द को दर्द नहीं होता
ऐसा कह हम उससे उसकी भावनात्मक अभिव्यक्ति का अधिकार छीन लेते हैं।
क्या लड़कियों की तरह रो रहा है
ऐसा कह आप लड़के को सशक्त नहीं अपितु लड़कियों में उनके कमजोर होने का एहसास जगा रहे हैं।
क्या लड़कों की तरह व्यवहार करती हो लड़की हो लकड़ियों की तरह रहो
इस वाक्य से हम खुद ही लिंग भेद को जन्म देते हैं, आचरण तो दोनों का ही शालीनता भरा होना चाहिए फिर ये जिम्मेदारी लड़कियों पे ही क्यों।
घर के काम सीखो वरना ससुराल में जा कर नाक कटाओगी
गोया नाक ना हुई ग़ुब्बारा हो गया जो ज़रा सी पीन से फूट जाएगा, घर दोनों का है जनाब तो दोनों ही मिलकर काम क्यूँ नहीं कर सकते? दोनों को सीखना चाहिए, गाड़ी के एक भी टायर में हवा कम हो तो गड़ी चलाने में भारी हो जाती है।
पति कुछ कहा करें तो सुन लिया करो दिन भर काम से थक के आता है
ये सीख बेटों को नहीं दी जाती यानी खाना बनाना, घर, बच्चे, काम वाले इन सब को संभालने में कोई मेहनत नहीं लगती, ये सब बैठे बैठे हो जाता है? मतलब घर से बाहर के काम, काम हैं उन्हीं से थकान होती है और ऐसा कहने वाली भी घर की कोई बड़ी बूढ़ी स्त्री ही होती है, जो सारे दिन अपने ज़माने के कामों का बखान करती हैं।
अब वक़्त आ गया है इस सोच को बदलने का सोच बदलेंगे तो समाज बदलेगा।
इमेज सोर्स: Still from HealthPhone ad, YouTube
Dr.Manishaa Yadava is an Author/poet/storyteller and writer/Reiki Master/Dowser/angels card reader/Motivational speaker/Meditater/Art of living volunteer and Member of Indian Literature society. She has done Phd in economics. read more...
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