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दाल-चावल, रोटी-सब्जी इत्यादि बना लेती हूँ। यहाँ हम ये खाना नहीं खाते और हाँ आपके पति देव को भी आपका गरीबों वाला खाना नहीं पसंद।
प्रीति जब अपने ससुराल विदा हो कर आई तो ससुराल में घर के सदस्य उसके लिए एक पहेली की तरह थें। जहाँ सास सुगन्धा जी स्वभाव से नरम एवं ममतामयी सीधी-साधी महिला थी। वहीं दोनो ननदें तेज-तर्रार और घमंडी स्वभाव की थी। कहने के लिए तो सास सुगन्धा जी थी लेकिन हुक्म ननदों के थे।
जहाँ ननदों का स्टैंडर्ड के नाम पर सिर्फ दिखावा था। फिर चाहे बात खाने की हो या कपड़ों की। वहीं उसके उलट सास को इन सब से कोई मतलब नहीं कि कौन क्या सोचेगा।
सुबह से लोगों का आना-जाना लगा हुआ था। प्रीति इन सब के बीच में बहुत थक गयी थी और भूख भी लगी हुई थी। उसे अपनी माँ की बहुत याद आ रही थी। तभी दोपहर के दो बजे सुगन्धा जी चुपके से प्रीति के कमरे में आयी। साड़ी के पल्लू से कुछ ढका हुआ ला के जमीन पर रख दिया। और कमरे की कुंडी लगा दी कि कोई आ ना सके।
फिर धीरे से प्रीति को कहा, “बेटा सुनो! खाना लायी हूं। सुबह से ऐसे हीं हो कुछ खा लो। रस्में होती रहेंगी।” और थाली प्रीति को दे दिया।
प्रीति ने देखा तो थाली में दाल-चावल, अचार और पापड़ थे। उसने भी बिना कुछ बोले खाना खा लिया। शाम हुई बड़ी ननद ने आ के कहा, “ये कपड़े बदल लीजिए। हमारे ससुराल से मेहमान आने वाले हैं।”
प्रीति ने देखा तो साड़ी बहुत हैवी वर्क किये हुए थे। तो उसने पूछा, “क्या कोई हल्की आरामदायक साड़ी पहन सकती हूँ? तो उन्होंने कहा बड़े घर की बेटी बहु को ऐसे हीं कपड़े पहनने होते हैं। आदत डाल लो।”
रात के खाने पर सभी साथ बैठे। तभी बड़ी ननद ने बोला, “भाभी टेबल की सजावट और खाना रखने का तरीका देख लीजिए। हम सब शाही खाना पसंद करते हैं।”
प्रीति ने देखा तो होटलों के टेबल की तरह प्लेट्स सजी थी। खाने के नाम पर चाइनीज और इटैलियन व्यंजन ही थे।
तब प्रीति ने कहा, “दीदी मुझे तो ऐसे व्यंजन बनाने नहीं आते, लेकिन सादा भोजन जैसे दाल-चावल, रोटी-सब्जी इत्यादि बना लेती हूँ।”
“क्या कहा? लेकिन हमारे यहाँ हम ये खाना नहीं खाते और हाँ आपके पति देव को भी आपका गरीबों वाला खाना नहीं पसंद।”
“तो क्या आप सब यहीं खाना हर रोज़ खाते हैं? क्योंकि वैसे भी ये रोज खाना स्वास्थ्य के लिए तो हानिकारक होगा। हमारे भारतीय व्यंजन तो स्वास्थ्य और स्वाद दोनो में हीं अच्छे होते हैं।”
इतना सुनते हीं ननद का गुस्सा सातवें आसमान पर हो गया। फिर उन्होंने बोला, “लेकिन हम दोनों जब भी ससुराल से आएंगे। यहाँ हमें ऐसे हीं व्यवस्था और सब व्यवस्थित चाहिए। दाल-चावल और अचार, पापड़ गरीबो के खाने हैं हम नहीं खाएंगे।”
प्रीति को अपने दोपहर के खाने की याद आयी। उसने सासू माँ की तरफ देखा तो उनकी नजरें झुकी हुई थीं। प्रीति को कुछ समझ नहीं आया वो चुप रही। और सबके साथ खाना खा लिया।
अगले दिन उसने देखा कि सासू माँ पर दोनों ननदें चिल्ला रहीं थीं, “क्या जरूरत थी खाना ले जा के देने की? वो तो अच्छा हुआ जो सबके सामने उसने कुछ बोला नहीं। वरना हमारी क्या इज़्ज़त रह जाती?”
तभी सासू माँ की नजर प्रीति पर पड़ी जो दरवाजे पर खड़ी थी। सुगन्धा जी ने प्रीति को अंदर आने का इशारा किया और पूछा, “कुछ चाहिए था बहू?”
“हाँ! माँ कुछ कहना था।”
“हाँ! बोलो”, ननद ने तपाक से बोलो!
“दीदी! पहली बात मुझे दाल-चावल, अचार, पापड़ खाना बहुत पसंद है। और कल जब माँ मेरे लिए खाना ले कर आयी तो उस खाने में मेरे लिए प्यार था… दिखावा नहीं। खाना-खाना होता है। खाने को अन्नपूर्णा कहते हैं। ना कि गरीब या अमीर। यहीं मुझे मेरे माता-पिता ने बताया है। और रही बात माँ के खाना देने की तो अब मैं इस परिवार की सदस्य हुँ। और परिवार के लोगो के साथ दिखावा नहीं करते। रही बात आपकी तो आप दोनों का बहुत-बहुत धन्यवाद अपनी पसंद बताने के लिए क्योंकि घर आये मेहमानों की खातिरदारी करना बहु का कर्तव्य होता है। जो मैं जरूर करूँगी। उसकी चिंता आप दोनों बिल्कुल ना करें। चलती हूँ।
धन्यवाद! माँ मुझे अपना मानने के लिए। और उस प्यार भरे स्वादिष्ट भोजन के लिए भी।”
दोनो बहनें शर्म से गर्दन झुकाए निरुत्तर प्रीति को देखती रह गयी।
इमेज सोर्स: SnowWhiteImages from Getty Images via Canva Pro
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