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कत्थक एक ऐसी नृत्य शैली है जो हिंदू और मुस्लिम संस्कृति को जोड़ती है। मुग़ल काल में यह नृत्य मंदिरों से निकल कर दरबारों में प्रस्तुत होने लगा।
जब प्यार किया तो डरना क्या की मधुबाला, इन आँखों की मस्ती के वाली रेखा या ढाई शाम रोक लई की माधुरी, तीनों को यह गाने ऑनस्क्रीन देख कर मानो आँखों को सुकून मिलता है। हम में से कितने इनकी अदाएँ, भावमुद्रा और अदाकारी के कायल हैं। पर क्या आप जानते हैं कि मुगल-ए-आज़म, पाकीजा, उमराव जान, देवदास या नए की बात करें तो कलंक इन सारी मूवी के गाने यह शास्त्रीय नृत्य कत्थक से प्रेरित हैं।
शास्त्रीय नृत्य भारतीय संस्कृति और अध्यात्म को एक तरह से हमें जुड़ा रखता है। कत्थक नृत्य को उनके घराने से जाना जाता है। इसके कुल चार घराने हैं-
1) लखनऊ घराना– हालांकि कथक के लखनऊ घराने का जनक ईश्वरी प्रसाद को माना जाता है, पर वाजिद अली शाहजी ने अपने विशिष्ट शैली से इस नृत्य को नये आयाम दिए। अभिनय पक्ष में माहिर माने गए हैं इस घराने के कलाकार। लखनऊ घराना कथक नृत्य शैली का प्रमुख घराना है। ठुमरी गा कर भाव बताना इस घराने की विशेषता है, जिसके प्रचार का प्रमुख श्रेय महाराज बिंदादीन को है।
2) जयपुर घराना– जयपुर घराने के संस्थापक भानुजी थे, जिन्होंने किसी संत द्वारा तांडव नृत्य की शिक्षा ली थी। फिर उनके पुत्रों द्वारा यह नृत्यशैली आगे बढ़ती गयी। बोल बंदिश से बनी है इनकी पहचान। इनके द्वारा तत्कार में कठिन लयकारयों का प्रदर्शन बहुत प्रसिद्ध है। भाव प्रदर्शन में सात्विकता रहती है और ठुमरी की अपेक्षा भजन पदों पर भाव दिखाये जाते हैं।
3) बनारस घराना– यह घराना जानकी प्रसाद घराना के नाम से भी प्रसिद्ध है। जानकी प्रसाद घराना शुद्ध नृत्य के बोल, सात्विक भाव और तत्कार पर ही आधारित है। जहां अन्य घरानों में तिगदा तिग तिग में चार बार पैर मारे जाते हैं, वही यहाँ ६ पैर मारने की प्रथा है। इस घराने में भाव की शुद्धता का विशेष ख़याल रखा जाता है। बनारस घराना पैरों की तराश के लिए भी जाना जाता है।
4) रायगढ़ घराना– १९७८ में रायगढ़ नरेश चकधर सिंहजी के देखरेख में रायगढ़ घराना प्रचारित -प्रसारित हुआ। नृत्य-संगीत के प्रायः सभी घरानों के गंभीर अध्ययन और विद्वानों के साथ चिन्तन -मनन के पश्चात यह नृत्य शैली रायगढ़ कथक घरानाने का निर्माण हुआ। भाव अभिनय नृत्य व विशेष बंदिशों के लिए प्रसिद्ध है यह घराना। इस दरबार ने कार्तिक, कल्याण, फिरतू, बर्मन और रामलाल जैसे श्रेष्ठ कथक नर्तक तैयार किये।
कत्थक एक ऐसी नृत्य शैली है जो हिंदू और मुस्लिम संस्कृति को जोड़ती है। मुग़ल काल में यह नृत्य मंदिरों से निकल कर दरबारों में प्रस्तुत होने लगी।
कत्थक नृत्य की विशेषता के बारे में अगर कहे इसके दो प्रमुख भाग होते है एक लास्य और तांडव। इसमें ध्र्रुपद संगीत का गायन होता है। कहा जाता है कत्थक में तराना, ठुमरी और ग़ज़लों की शुरुआत मुगलोंने की। कत्थक में २५ से लेकर १०० से अधिक घुँगरूओ को पैरो में बांधकर तबला और इतर वाद्यों के साथ, ताल में लयबद्ध होकर, विभिन्न कथाओं को अपने भाव, अभिनय से कलाकार सादर करते है।
कथक को रंगमंच और घरानों से जनमानस में पहुँचाने में बॉलीवुड का बड़ा योगदान रहा है। वैजयंती माला से लेकर आलिया भट तक सबने इस नृत्य शैली में गाने किए हुए है। हालांकि बॉलीवुड में दिखाया जाने वाला कथक पूरी तरह से शास्त्र शुद्ध नहीं होता। उसे हम सेमी कत्थक कह सकते हैं।
अभी के दौर में जहां हिपहॉप, कंटेम्पररी और भी विदेशी नृत्य शैली की क्रेज है, वही कही लोग ऐसे भी है जिन्होंने हमारी इस कला को अपने द्वारे सिर्फ जिंदा ही नहीं रखा बल्कि देश विदेश में प्रसिद्ध किया।
भारत के १३ ऐसे पुरुष नर्तक है जिन्होंने यह सिद्ध किया की कथक की दुनिया में स्त्री-पुरुष ऐसी कोई बाधा नहीं है।
महाराज बिन्दादीन, लच्छू महाराज, कालकाप्रसाद, शंभु महराज, अच्छन महराज, पंडित बिरजू महाराज, गोपी कृष्णा इन्होंने कत्थक को देश विदेश में फैलाया।
कई सारी भारतीय महिलाए भी है जिन्होंने अपने अनोखे नृत्य से पुरे विश्व में अपने नाम का डंका बजाया है। सुनयना हजारीलाल, शोवना नारायण, कुमुदिनी लाखिया, रानी कर्ना, प्रेरणा श्रीमाला इनके नाम कथक की दुनिया में आदर से लिया जाता है।
फ़िलहाल अगर नए जनरेशन में देखें तो कुमार शर्मा अभी अपनी नृत्य से युवा पीढ़ी को प्रेरित कर रहे हैं। कुमार शर्माजी भारत के संस्कृति मंत्रालय से कथक में राष्ट्रीय छात्रवृत्ति धारक हैं। उन्होंने अपना कथक रॉकर्स करके एक नृत्यदल बनाया है। जहा वो शुद्ध प्राचीन नृत्य के साथ ही कथक फ्यूजन में पुराने और नए नृत्य का मनमोहक प्रदर्शन करते हैं। कुमार शर्मा सदैव अपने इंस्टाग्राम हैंडल के जरिए अपने दर्शको के जुड़े रहते हैं।
रियलिटी शोज के दुनिया में कथक और लावणी, इन दो शैली का अनोखा संगम हम आशीष पाटिल के नृत्य में देख सकते है।
पूर्ण कत्थक विशारद बनने के लिए ७ वर्ष का समय लगता है। आप किसी भी नृत्य संस्था से यह सिख सकती है।
अब आप कथक क्यों सीखना चाहती हैं, इसपे भी गौर फरमाएँ। अगर आप करिअर के हिसाब से वो चुनना चाहती हैं, तो आप वो कर सकती हैं। फिर कही आप अपना डांस क्लास ले सकती हैं, कही स्टेज परफॉर्मन्स दे सकती हैं या कहीं बैकग्राउंड डांसर बन सकती हैं। पर क्या आप यह सब करके अपने इस कला को न्याय दे सकती हैं? कोई भी कला एक साधना होती है, और साधना को साधन का जरिया नहीं बनाया जाता।
मैं नहीं कहती कि यह बुरा है, पर जब आप किसी को सीखाने जाओ तो यह पहले देख लो आप कितने सिख पाए हो। आजकल की इस चकाचौंद दुनिया में जहाँ ग्लैमर, फेम की भड़मार है वहाँ कोई भी कला अपनी आत्मतृप्ति के लिए नहीं हॉबी समझ कर सीखी जाती है।
नृत्य अपने आप में एक नशा है, अगर यह नशा लगे तो पूरी दुनिया सुहानी लगती है। यह वो नशा है जो आपके ह्रदय से अंदर तक उतर कर आपके रूह से आपको मिला देती है। इस भाव से किया हुआ नृत्य आपके भवताल कितना भी दुःख, परेशानी हो, नृत्य कभी आपको उसका एहसास नहीं होने देता। जब भी नृत्य करते है हमारे अंदर के हर भाव अपने आप ही हमारे चेहरे पे उमड़ आते है।
इस तन्मयता से किया हुआ नृत्य सबको आनंद देता है। कत्थक वो आनंद दुनिया तक पहुँचाने का जरिया है। तो यह जरूर सोचीए की कथक करना है या करियर। कथक करना है तो अपनी रूह से पूरी साधना के साथ करिये, करियर अपने आप बन जायेगा। जैसे की आमिर खान ने ३ इडियट्स में कहा है, कामयाब होने के लिए, काबिल होने लिए पढ़ो। वैसे ही किसी और के लिए नहीं, खुद के लिए सीखो, वो अपने आप दुसरो तक पहुँच जायेगा।
हॅपी डांसिंग, गर्ल्स !!
इमेज सोर्स : Sujay Govindraaj from Getty Images Signature via Canva Pro
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