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"पापा कुछ भी हो बुआ जी की इस गलती ने एक बहुत ही खूबसूरत सरप्राइस दिया और दीदी को तो ऐसा लग रहा होगा जैसे सच में उनके लॉटरी लग गई।"
सावित्री देवी अपने छोटे भाई बलराम जी से कहती हैं, “बल्लू! अब मैं ही नताशा के लिए लड़का फाइनल करूँगी बस। दो साल हो गए हैं, तुम्हें लड़के ढूंढते-ढूंढते…अब तुम्हारे नाटक बिल्कुल नहीं चलेगें।”
“दीदी, ऐसी बात नहीं है बस कोई लड़का नताशा को पसंद ही नहीं आता और कभी कोई और कारण बन जाता है।”
“मैं दुनिया के लोगों की रिश्ते करवाती हूँ और यहाँ मेरे खुद के भाई की बेटी की शादी नहीं हो रही है। लोग मुझे ताना देते हैं, अब बहुत हुआ मैं जल्द ही कोई अच्छा रिश्ता ढूंढ कर भेजती हूँ और अब मुझे इसमें कोई भी नाटक नहीं चाहिए।”
यह कहकर वह फोन काट देती हैं।
“क्या कह रही थी दीदी?” सुशीला जी ने पूछा।
“नताशा की शादी के बारे में कि वह लड़का खुद देखेंगी।”
“देखिए जी मेरे एक ही बेटी है और मैं इस तरह से किसी भी लड़के के साथ उसकी शादी नहीं कर सकती।”
“सुशीला! तुम अच्छी तरह जानती तो हो… दीदी की बात मैं नहीं काट सकता और वैसे भी हमें लड़का ढूंढते हुए दो साल हो चुके हैं। अगर दीदी कोई अच्छा रिश्ता भेज रहीं हैं तो इसमें बुराई क्या है भला?”
सुशीला जी ने कहा, “बुराई तो सिर्फ इतनी ही है कि आप अपने दीदी के भेजे हुए रिश्ते में कमी नहीं निकाल सकते, वह जो कहेगीं बस हमें हाँ ही करना पड़ेगा।”
बलराम जी ने यह बात बोलकर खत्म कर दी, “नताशा की बुआ हैं, कोई दुश्मन नहीं जो कोई ऐसा वैसा रिश्ता भेजेगीं। जब रिश्ता आएगा तब देखा जाएगा।”
बलराम जी और सुशीला के दो बच्चे हैं। बड़ी बेटी नताशा और छोटा बेटा नकुल। नताशा एक पढ़ी-लिखी सुंदर और समझदार बच्ची है, जिसके लिए वो रिश्ता बराबरी का ढूंढना चाहते हैं। बलराम जी की बहन सावित्री जी उनकी सबसे बड़ी बहन हैं, उनकी माँ की मृत्यु के बाद सभी भाई और बहनों को माँ की तरह उन्होंने ही पाला था इसलिए आज भी वो उनकी इज्जत करते हैं और उनकी किसी बात का अनादर नहीं करते हैं।
नताशा ने कहा, “मम्मी! बुआ का रिश्ता अगर मुझे पसंद नहीं आया तो आप मुझसे जबरदस्ती तो नहीं करोगी?”
“बेटा बुआ जी के सामने मेरी क्या? तेरे पापा की भी नहीं चलती। मुझे भी अब यही डर सता रहा है कि ना जाने वह कैसा रिश्ता भेजेगीं?” सुशीला देवी चिंतित स्वर में बोलीं।
“मुझे क्या मेरा जीवन साथी चुनने का अधिकार भी नहीं है माँ? यह अन्याय मैं सहन नहीं कर सकती।” नताशा यह कहकर गुस्से में अपने कमरे में चली जाती है।
दो हफ्ते बाद सावित्री जी एक फोटोग्राफ बायोडाटा के साथ भेजती हैं।
“नताशा जरा देखना तुम्हारी बुआ ने भेजा है, शायद लड़के की फ़ोटो हो।” सुशीला देवी कहती हैं।
“देखती हूँ माँ…”
फ़ोटो देखते ही नताशा गुस्से में बोली, “माँ! मैं आजीवन कुमारी रह जाऊँगी लेकिन इस लड़के से शादी नहीं करूंगी।..क्या देखकर बुआ जी ने इस लड़के को मेरे लिए पसंद किया है? यह तो शायद उम्र में मुझसे दस साल बड़ा होगा?”
सुशीला जी नताशा से फोटो लेतीं हैं और फ़ोटो देखकर कहती हैं, “अरे! यह कैसा रिश्ता भेजा दीदी ने? नताशा आने दो तुम्हारे पापा को तुम चिंता मत करो।”
शाम को जब बलराम जी घर पर लौटते हैं तो सुशीला देवी उनको लड़के की फ़ोटो दिखातीं हैं और कहती हैं, “देखिए क्या रिश्ता भेजा है आपकी बहन ने… क्या मेरी बेटी को रिश्तो की कमी हैं? आप फ़ोन लगा कर कह दीजिए कि रिश्ता मंजूर नहीं है।”
“ठीक है तुम परेशान मत हो। जब दीदी का फ़ोन आएगा, मैं बात कर लूंगा।” बलराम जी बोलते हैं।
रात को सावित्री जी का फोन आता है।
“बल्लू मैंने लड़के की फोटो और बायोडाटा भेज दिया है। मेरे पास नताशा की फोटो थी जो उन लोगो को मैंने भेज दी थी, उन्हें पसंद भी आ गई है और दो दिन बाद उनका परिवार तुम्हारे घर पर आ रहा है।”
“पर दीदी लड़का नताशा से उम्र में काफी बड़ा है।” बलराम जी बोले।
“देखो बल्लू मैंने सब कुछ देख लिया है। यह नखरे जरूर सुशीला कर रही है। एक बार लड़के वालों को आने दो। लड़का बहुत ही सुंदर, सुशील और संस्कारी है। दीया लेकर ढूंढोगे तब भी तुम्हें ऐसा लड़का नहीं मिलेगा। अब लड़के वालों के आने की तैयारी करो समझे… फिर, बाद में बात करते हैं।” सावित्री जी ने यह कहकर फ़ोन काट दिया।
“क्या बात हुई आपकी दीदी से? मना कर दिया ना?” सुशीला ने पूछा।
“सुशीला! दीदी ने कुछ सुना ही नहीं। उन्होंने कहा है कि लड़के वाले दो दिन बाद नताशा को देखने आ रहे हैं और यह कहकर फ़ोन काट दिया।”
“देखिए दीदी बहुत समझदार हैं, उन्होंने हमेशा ही हम सबका ध्यान रखा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारी बेटी के लिए हम किसी भी लड़के को किसी के दबाव में आकर हाँ कह देंगे।”
“ठीक है, आने दो फिर देखते हैं।” यह कहकर बलराम जी सोने चले गए।
अगले दो दिन सभी के लिए बहुत भारी थे सभी को यह बात समझ नहीं आ रही थी कि जो लड़का नताशा से उम्र में इतना बड़ा है। बुआ जी ने कैसे उसके लिए हाँ कर दी और आगे वह कैसे लड़के वालों को मना करेंगे।
आज लड़के वाले आने वाले हैं, गयारह बजे घर के बाहर एक गाड़ी आकर रुकती है।
“आइए! आइए! अंदर आइए!” बलराम जी और सुशीला जी उनका स्वागत करते हैं।
देखने में वह लड़के के माता-पिता लग रहे थे। साथ में लड़के की बहन और जीजा जी भी थे लेकिन लड़का अभी तक अंदर नहीं आया था।
“क्या बात है आपका बेटा अंदर नहीं आया?” बलराम जी ने पूछा।
“शायद ऑफिस से फोन आ गया होगा! आता ही होगा।” लड़के के पिता जी बोले।
नताशा ने अपने भाई को नीचे खड़ा कर रखा था और कहा था, “तुम्हें लड़का देख कर मुझे बताना है, अगर सही नहीं हुआ तो मैं नीचे ही नहीं जाऊँगी।”
इतने में लड़का अंदर आ जाता है।
“जी नमस्कार! ऑफिस से ज़रूरी फ़ोन आ गया था, इस वजह से थोड़ा समय लग गया।” लड़के ने जवाब दिया।
नताशा का भाई नकुल दौड़ते हुए ऊपर जाता है और नताशा से कहता है, “दीदी!आपकी तो लॉटरी लग गई। जो लड़का आपको देखने आया है, वह तो बिल्कुल हीरो जैसा लग रहा है। पता नहीं फ़ोटो किसकी भेजी थी बुआ जी ने?”
“तू सच कह रहा है?”
“दीदी मैं सच बोल रहा हूँ! आपको भी बहुत पसंद आएंगे।”
नताशा को लड़का पसंद आया और फिर उनका रिश्ता पक्का हो गया।
“दीदी आपने बहुत अच्छा रिश्ता भेजा और नताशा को भी पसंद भी आ गया… बात पक्की हो गई है। बहुत-बहुत बधाई हो!” बलराम जी खुशी के साथ बोले।
सावित्री जी ने कहा, “मैंने कहा था न कि ऐसा रिश्ता भेजा है तुम्हें जो तुम सबको पसंद आएगा लेकिन तुम तो सब पहले ना करने लग जाते हो।”
बलराम जी ने कहा, “पर दीदी! जिसकी फ़ोटो आपने भेजी थी…वह लड़का तो कोई और ही था, जो उम्र में नताशा से बहुत ही बड़ा लग रहा था इसलिए थोड़ा असमंजस हुआ।”
“क्या मतलब है तुम्हारा?”
“दीदी! जिस लड़के की फ़ोटो आपने भेजी थी और जो लड़का आया था दोनों अलग-अलग थे। जिसकी फोटो भेजी थी वह लड़का नताशा से उम्र में बड़ा था।”
“अरे! बल्लू मुझसे तो बहुत बड़ी गलती हो गई… मैंने दो लिफाफे पोस्ट किए थे। एक नताशा के लिए और एक मेरी दूर के रिश्तेदार की लड़की के लिए। वो उम्र में बड़ी है और इसलिए उन्हें लड़का भी उम्र में बड़ा चाहिए था। तेरे को तो बड़े उम्र के लड़के की फोटो भेजी थी पर लड़का तो सही पहुंच गया। अब उनका क्या होगा जिसको गलती से मैंने तुम्हारे होने वाले दामाद की फोटो भेज दी है?”
“दीदी इस गलती का तो बम तब छूटेगा जब उनके घर कोई दूसरा लड़का पहुँचेगा।”
“सही बोला छोटे मैं पहले ही उनको फोन करके हकीकत से वाकिफ करवा कर अपनी गलती को दूर करती हूँ।”
नकुल ने कहा, “पापा! कुछ भी हो बुआ जी की इस गलती ने एक बहुत ही खूबसूरत सरप्राइस दिया और दीदी को तो ऐसा लग रहा होगा जैसे सच में उनके लॉटरी लग गई।”
यह सुनकर सब खिलखिला कर हँस पड़े और बलराम जी ने कहा, “अंत भला तो सब भला।”
इमेज सोर्स : Still from short film Kaande Pohe /Youtube
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