नव्या दुल्हन के जोड़े में सजी माँ की बातें सुन रही थी-"ससुराल में जल्दी उठना, बड़ों से बहस ना करना, उल्टे जवाब मत देना, सभी कामों को अच्छी तरह करना।"
नव्या दुल्हन के जोड़े में सजी माँ की बातें सुन रही थी-“ससुराल में जल्दी उठना, बड़ों से बहस ना करना, उल्टे जवाब मत देना, सभी कामों को अच्छी तरह करना।”
नव्या दुल्हन के जोड़े में सजी माँ की बातें सुन रही थी-“ससुराल में जल्दी उठना, बड़ों से बहस ना करना, उल्टे जवाब मत देना, सभी कामों को अच्छी तरह करना।”
इतने निर्देश सुन कर नव्या की हालत और भी खराब हो रही थी। सखियों से उनके ससुराल के बारे मे सुनी बातें भी याद आ रही थीं जो कि अधिकतर ससुराल वालों के ज़ुल्म और नकारात्मकता से ओत-प्रोत ही थी। और अब, मां की भी बातें सुन कर उसे लगा कि वो किसी जंग पर जा रही है और सब उसको तैयार करने में लगे हुए हैं।
यही सब सोचते हुए कब शादी की रस्में पूरी हुईं और वो विदा होकर अपने ससुराल आ गई पता ही नहीं चला।
बड़े प्यार से उसका गृह-प्रवेश करवाया गया। सासु-मां ने बलाएं ली, ढेर सारे आशीर्वाद दिए। नन्द, देवर आगे पीछे घूम कर ख्याल रख रहे थे-भाभी क्या चाहिए, क्या लाऐं आपके लिए। ससुर जी और सभी रिश्तेदारों ने उसके स्वागत और ख्याल रखने मे कोई कसर नहीं रखी।
कुछ देर पहले तक मायके में सुनी नकारात्मक बातों से बोझिल हुए मन से चली नव्या अब ससुराल और अपने नए परिवार के साथ सहज हो चली थी। वो ये भी समझ चुकी थी कि सुनी बातों के आधार पर अवधारणा बना लेना ठीक नहीं है। जिस तरह से, दुनिया में हर तरह के लोग होते हैं, वैसे ही ससुराल के लोग भी अच्छे और गलत दोनों तरह के हो सकते हैं। सबको एक ही पैमाने पर रखना ठीक नहीं।
ये सोच नव्या उठ खड़ी हुई, अपने व्यवहार से ससुराल में सभी का मन जीतने के लिए। उन सबने तो उसका मन जीत ही लिया था। अब उसकी बारी थी।