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एक नयी कविता जो अभी मन के झरोखे से निकली है। क्या शांति में ही सदैव समझदारी है - दो लघु कविताएं।
एक नयी कविता जो अभी मन के झरोखे से निकली है। क्या शांति में ही सदैव समझदारी है – दो लघु कविताएं।
एक नई कविता
आखर अभी गर्म है। शब्दों से उठ रही है सोच का सहमा सा धुआँ। रात की बाँसी पंक्तियों को रसोई में पका कर उसने परोसा है तुम्हे नाश्ते में, सबह सबेेरे। के, चखलो आज एक नई कविता।।
समझदारी
शांति में समझदारी है- जिसे रटते हुुुए रोज़ एक दिन मैं, भूल गयी लड़ने की उन वजहों को, जिन्हें कभी मैं अधिकार कहा करती थी।
मूल चित्र : pexels
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