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लकी या अनलकी-क्या नाम दें ऐसे वैचारिक सम्बोधनों को!

सबको साथ लेकर चलने की कोशिश और मानवता, कुछ तो मापदंड होंगे, जो मान भी लिए जाएँ, तो लकी या अनलकी होने की श्रेणी में डालते होंगे, पैसे की बरकत नहीं।

सबको साथ लेकर चलने की कोशिश और मानवता, कुछ तो मापदंड होंगे, जो मान भी लिए जाएँ, तो लकी या अनलकी होने की श्रेणी में डालते होंगे, पैसे की बरकत नहीं।

संवैधानिक चेतावनी : ये ब्लॉग लड़का या लड़की के मतभेद के परिपेक्ष्य में कुछ नहीं कहता और ये मात्र एक सामान्य विचारधारा है जो हमारे आसपास देखने को मिल जाती है।

‘गुप्ता जी के बेटे की शादी होते ही उसकी सरकारी नौकरी लग गयी, भई बहु के पगफेरे अच्छे हैं।’ गुप्ता जी के बेटे ने कुछ ना किया? और तो और जो ना हुआ होता चयन तो बहु के पैर अच्छे ना हैं।

‘उस महिला के पैर अंदर की तरफ पड़ते हैं, घर में सुख-समृद्धि लाएगी(जो केवल पैसे से तोली जायगी)।’

‘बेटी के होने के बाद ही नौकरी, घर, गाड़ी सब हो गया, लकी है।’

‘मेरा पोता होने के बाद मेरे घर के सब बिगड़ते काम बनते चले गए।’

जुमले, तर्क, बरकत मानक, खुशियों के मापक या क्या नाम दूँ समझ नहीं आता ऐसे वैचारिक सम्बोधनों को!

पहली बात, खुशियों का सीधा-सीधा मेल पैसों से करना मेरी समझ से परे है।

मेरे पड़ोस में दो बहुएँ हैं। बड़ी पढ़ी-लिखी नहीं लेकिन पैर उसके लक्ष्मी के हैं। घर में आते ही उनके पतिदेव बड़े वकील हो गए। पर घर आये मेहमान से सीधे बात करने का सलीका नहीं उनमें। उनके सास-ससुर दो वक़्त की रोटी के लिए तरसते रहे पर कभी अपने पति के घर को अपना घर ना समझ पायी वो। दूसरी तरफ छोटी बहु, पूरी ज़िन्दगी संघर्षों में निकाल दी, छोटी-छोटी ज़रूरतों को भी पूरा लिए भी तरस के रह जाती थी वो, लेकिन पूरे परिवार के लिए उन्होंने अपनी पढ़ाई, समय, प्रतिभा सब किनारे कर दिया। आज उनका स्नेह और प्यार परिवार की खुशियों की नींव है। चाहे पैसों की दृष्टि से वो उन सब सुख-सुविधाओं से अछूते हैं, लेकिन थोड़े में पूरा आनंद ले लेने का नजरिया उन्हें खुश रखता है।

हम अपने नौनिहालों को भी अक्सर इस श्रेणी में रखते हुए देखते हैं। किसी अच्छी या सुखद एहसास को किसी के जन्म से जोड़ने की कोशिश करते हैं। प्रश्न ये है कि जिन बालकों या बालिकाओं के जन्म पर कुछ ख़ास शुभ नहीं होता या जिस बहु के घर में कदम रखने पर कोई शुभ समाचार नहीं आता, वो हमारी भ्रांतियों में कहाँ स्थान पाते हैं?

किसी भी व्यक्ति का चरित्र, उतार और चढ़ाव में भी संयम रखने कि क्षमता, हर परिस्थिति में मुस्कुराने का जज़्बा, निरंतर जीवन की इस दौड़ में सबको साथ लेकर चलने की कोशिश और मानवता, कुछ मापदंड होंगे जो मान भी लिए जाएँ तो लकी या अनलकी होने की श्रेणी में डालता होगा, पैसे की बरकत नहीं।

किसी भी माँ के लिए कोई बच्चा अनलकी नहीं हो सकता।

और बच्चे! वो तो ईश्वर की सबसे अनमोल देन हैं जो किसी के भी घर कदम रखें, सौभाग्य ही लाएंगे। उनका हमारे जीवन में होना अपने आप में एक बहुत बड़ा खज़ाना है फिर हमें किसी और खज़ाने की क्या ज़रूरत?

क्यों? सही है ना!

 

About the Author

Shweta Vyas

Now a days ..Vihaan's Mum...Wanderer at heart,extremely unstable in thoughts,readholic; which has cure only in blogs and books...my pen have words about parenting,women empowerment and wellness..love to delve read more...

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